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भवन निर्माण की जगह संभ्रांत नागरिक निर्माण पर बल देना उचित– मदन सुमित्रा सिंघल

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इतिहास गवाह है कि हजारों बिघा जमीन अकुत संपत्ति माँ बाप बनाकर चले गए लेकिन निक्कमी पथभ्रष्ट एवं दुराचारी औलाद ने शराब सवाब एवं कबाब में सारी संग्रहित संपत्ति होम करदी। उस समय शिक्षा की बजाय बाजूबल, संपन्नता यश वैभव का बोलबाला था। छोटे छोटे राजा नबाब अपनी सीमा रूतबा एवं एश्वर्य बढाने के लिए दानधर्म परमार्थ एवं सार्वजनिक निर्माण भी करते थे लेकिन मानव निर्माण पर कभी भी ध्यान नही दिया। अपने साम्राज्य को ही दुनिया समझते थे। गरीब किसानों की जमीन हङपना कर वशुली अपराध के कङे अमानवीय दंड आदिम काल से तब तक चलते रहे जब तक उनका अस्तित्व रहा। उत्थान के बाद पतन जन्म के बाद मृत्यु शास्वत सत्य है इसलिए इस प्रकृति की प्रक्रिया से कोई बच नही सका। आज हम उन युगपुरुषों, समाज सुधारकों संत महात्माओं बलिदानियों एवं निकट भविष्य के स्वतंत्रता सैनानियों के जन्मोत्सव एवं पुण्यतिथि इसलिए मनाते है कि उन्होंने समाज देश के लिए कुछ किया। जैसे हम अपने बुजुर्गों का हर साल श्राद्ध उनके प्रति श्रद्धा के लिए करते हैं। यदि हम संतान अथवा युवाओं को संस्कारी शिक्षित एवं किसी भी क्षेत्र में प्रशिक्षित करते हैं तो वो अपने आप परिवार समाज एवं देश के लिए समर्पित भाव से काम करेगा उनके लिए पैतृक संपत्ति कोई मायने नहीं रखती। इसलिए हमें भवन निर्माण की जगह अच्छे नागरिक बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए वो चाहे आपके हों अथवा आपके तहत किसी भी कारण से हो उन्हें अच्छा प्रशिक्षण देकर अच्छा इंसान बनाने से वो खुद कामयाब होगा तो एक से अधिक लोगों को कामयाब बनायेगा।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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