फॉलो करें

प्राण का चमत्कारी काव्य 

13 Views
आदरणीय गुणी और गुण ग्राहक मित्रो! यह कुल चार पँक्तियों की बहुत छोटी रचना है किन्तु अर्थपूर्ण और कमाल की रचना है। ऐसी रचनाओं को चित्र काव्य के अन्तर्गत रखते हैं। अर्थ पूर्ण बनाने के कारण ऐसी रचनाओं का सटीक संयोजन बहुत श्रम साध्य हो जाता है। यदि आप इस रचना का अर्थ पहले पढ़ लें तो मुझे लगता है, आपको और भी अच्छा लगेगा।
प्राण का सार्थक वर्ण जाल
================
“थम विषज्ञ फणधर तज अञ्चल,
उठ ऊपर भय ऋक्ष शङ्ख दह।
औघड़   कई   छत्र   आए  बढ़ ,
इस डग ऐन ओढ झट अं अ:।।”
अर्थात – विष के स्वाद को जानने वाले हे नागराज! रुको और इस क्षेत्र को छोड़कर ऊपर बढ़ जाओ । इस क्षेत्र में जंगली रीछ, गहरे पानी के भँवर और उनमें बसने वाले शंखों का भय है। इस कारण ही कई औघढ़ अघोरी सन्त, जिन्हें श्मशान में भी भय नहीं लगता था वे भी अपने – अपने डग बढ़ाते हुए अंग वसन स्वरूप छत्र ‘अं अ:’ जो न तो स्वर हैं और न व्यंजन हैं, अर्थात मौन को ओढ़कर यहाँ आ गए हैं। इसलिए तुम उधर मत जाओ।
 विशेष –
=====
उक्त पँक्तियों में हिन्दी की पूरी वर्णमाला है। केवल ‘व’ पर ‘इ’ की मात्रा है जो शक्ति की और ‘ङ’ और ‘ञ’ स्वर रहित औघढ़ सन्तों के प्रतीक हैं जो अपने छत्रों (अ स्वर) को छोड़कर निर्वसन चले आए हैं। शेष सभी व्यंजन ‘अ’ स्वर सहित हैं और अन्य पूर्ण स्वर हैं, जो सांसारिकों के प्रतीक हैं। इस तरह वर्ण माला का कोई अक्षर छूटा नहीं है। ड़, ढ़, क्ष, त्र और ज्ञ को भी इसमें  स्थान दिया है। आप भी आनन्द लीजिए और बहुत परिश्रम से किए गए इस क्लिष्ट सृजन पर मुझे मन से आशीर्वाद दीजिए।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण” इन्दौर
9424044284
6265196070
================================

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल