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झुठों की मंडली बनी कमंडली खोदा पहाड़ निकली चुहिया ( व्यंग)– मदन सुमित्रा सिंघल

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जिसके पास अनुभव त्याग तपस्या समसरसता पार्दर्शिता इमानदारी हो उसे जगह जगह ना तो भटकना पङता ना ही रुकना एवं अटकना पङता। अपने आप उंट पहाड़ के नीचे आकर समर्पण कर देता है कि मैं यों ही अहंम भ्रम झूठ फरेब तानाशाही चापलुसों से घिर कर थूक बिलोलता रहा अपने अस्तित्व राजशाही एवं प्रतिष्ठा को खोता रहा तो सांस लेकर सोचा कि इस डुबती नैया को चंद्रनाथ जी ही पार करवा सकता है उनकी शरण में आकर नतमस्तक हो गया। चंद्रनाथ बोला भोलूराम तुमने सामाजिकअपराध तो बहुत बङा किया है। सबका दिल दुखाया लोगों के साथ झूठ पर झूठ बोलकर इतना बड़ा पाप किया कि सबको झूठे बनाकर झूठों की मंडली बनाकर घर घर भीक्षाटन करने के लिए कमंडली बना दिया उन्हें लोग भीक्षा की जगह लोग तिरस्कार करके धक्का मारने लगे। किराये के मकान में आकर खुद कब्जा करने लगा तो ऐसे कृत्य में सब कमंडली भी सोचने के लिए बाध्य होने लगे। धीरे धीरे समझ आया तो चंद्रनाथ बोला कि ज्यादा दिन शोसल मिडिया के दौर में लोगों को टोपी नही पहना सकते।  पढेलिखे युवाओं एवं अच्छे घरानों के लोगों का मांइड वाश नहीं कर सकते। यह उचित नहीं बल्कि सामाजिक धार्मिक रुप में अनुचित है। अब तमीज़ एवं कमीज में रहकर उतना ही बोलना जितना दम है जाओ लोगों से माफी मांग कर पश्चाताप करो। भोलूराम रोया कि मैंने कम किया लेकिन लोगो ने मुझे भ्रमित करने के साथ साथ बदनाम किया। खैर देर से सही दुरूस्त एवं तंदुरुस्त होकर स्वस्थ छवि के साथ लौटूंगा।

मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653

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