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थोड़ी आँच बची रहने दो थोड़ा धुआँ निकलने दो

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मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे इस बूढ़े पीपल की छाया में सुस्ताने आएँगे हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेड़ो मत हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आएँगे थोड़ी आँच बची रहने दो थोड़ा धुआँ निकलने दो तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफ़िर आएँगे उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती वे आए तो यहाँ शँख सीपियाँ उठाने आएँगे फिर अतीत के चक्रवात में दृष्टि न उलझा लेना तुम अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आएँगे रह-रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी आगे और बढ़े तो शायद दृश्य सुहाने आएँगे मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे हम क्यों बोलें इस आँधी में कई घरौंदे टूट गए इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जाएँगे हम इतिहास नहीं रच पाए इस पीड़ा में रहते हैं अब जो धारायें पकड़ेंगे इसी मुहाने आएँगे

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