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शहर से बढ़िके गांव भईल बा।

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पीपर पाकड़ सजी कटाइल
कठिन डगर आ छांव भइल बा।
रंगबाजी अब पांव पसरलस,
शहर से बढिके गाँव भइल बा।।
नेह से भारी नेट भईल बा,
बड़हन सबके पेट भईल बा।
मोबाइल से मेसेज जाता,
महंगा सबसे भेंट भईल बा।।
कहीं पसीना बहत नइखे
पूरवाई अब लहत नइखे
अचखा पचखा मारला बिना
केहू तनिको अब रहत नईखे।।
छांछ दूध अब कहीं ना लउके
छिनल दही सजाव भईल बा।
शहर से बढ़िके गांव भईल बा।।
राजनीति के पनपल चर्चा
पैसा लेके बांटे पर्चा।
भैया दादा खूब कहाये
दिन भर रुपया करे ख़र्चा।।
झंडी बैनर ढोवत रहे,
सबके पाकिट टोवत रहे।
सांझि के पौवा मारि मारि के
बैठि के दुअरा रोवत रहे।।
बरदास केहू अब करत नइखे
खतरा बहुत सुझाव भईल।।
शहर से बढ़िके गांव भईल।।
  *ब्रजेश कुमार त्रिपाठी*
         *कुशीनगर*

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