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इस बार खास होगा दिल्ली विधानसभा चुनाव — मनोज कुमार मिश्र

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देश में होने वाला हर चुनाव खास ही होता है लेकिन महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के करीब दो महीने बाद होने वाला दिल्ली विधानसभा का चुनाव ज्यादा ही खास होने वाला है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे ने देश और खास कर दिल्ली का राजनीतिक समीकरण काफी बदल दिया। 2024 के लोकसभा चुनाव में भले भाजपा नंबर एक पार्टी बनी और लगातार तीसरी बार केन्द्र में भाजपा की अगुवाई में राजग सरकार बनी लेकिन भाजपा की सीटें कम होने से विपक्षी गठबंधन के हौसले बुलंद हुए। उसके बाद हुए जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव में मान लिया गया था कि भाजपा को जीत नहीं मिलेगी। जम्मू एवं कश्मीर में भी भाजपा का प्रदर्शन बेहतर हुआ और हरियाणा में अप्रत्याशित ढंग से भाजपा सारे चुनावी विश्लेषकों के दावों की धज्जियां उड़ा कर पहले से ज्यादा सीटें लेकर सत्ता में आई। सत्ता की दावेदार मानी जा रही कांग्रेस को तो भारी सदमा लगा ही हरियाणा में चमत्कार करने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी (आआपा) को भी भारी झटका लगा। आआपा के संयोजक और सर्वमान्य नेता अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के कई नेताओं को शराब घोटाले के आरोप में जेल जाना पड़ा और वे काफी प्रयास करके सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर बाहर आ पाए। कट्टर ईमानदार होने का दावा करने वाली पार्टी के सामने अपने वजूद को बचाने की चुनौती है। यह चुनौती इसलिए भी बढ़ गई है कि हरियाणा के मूल निवासी केजरीवाल यहां अपनी पार्टी के किसी उम्मीदवार को जीत दिलाना तो दूर पार्टी को दो फीसदी वोट भी नहीं दिलवा पाए।

दिल्ली पर जिन राज्यों का सर्वाधिक प्रभाव है उसमें एक हरियाणा है। वहां भाजपा के तीसरी बार सरकार बनने के मायने गंभीर हैं। इससे दिल्ली में कांग्रेस की उपस्थिति की उम्मीद पर पानी फिरता दिख रहा है, आआपा को भी 2015 और 2020 के नतीजे दुहराने के लिए कठिन मेहनत करनी होगी। भाजपा दिल्ली की लोक सभा की सभी सीटें लगातार तीसरी बार जीत गई। भले केजरीवाल के मुकाबले उसके पास स्थानीय स्तर पर कोई दमदार नाम न हो लेकिन माहौल भाजपा के अभी खिलाफ भी नहीं लग रहा है। लगातार दो बार दिल्ली विधान सभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने वाली आआपा ने दिल्ली के बाद पंजाब और दिल्ली नगर निगम चुनाव जीतने के बाद न केवल राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाया बल्कि अपने को भाजपा के वैकल्पिक दलों में शामिल करवा लिया। पिछले तीन सालों में आआपा के कट्टर ईमानदार होने के दावे को शराब घोटाले में संलिप्तता के आरोपों से भारी नुकसान पहुंचा है। केजरीवाल समेत आआपा के सभी नेता केन्द्र की भाजपा सरकार पर केन्द्रीय जांच एजेंसियों से प्रताड़ित कराने का आरोप लगाते रहे हैं। इसे उन्होंने लोक सभा से लेकर हरियाणा विधान सभा चुनाव में मुद्दा बनाया। इसका लाभ उन्हें दोनों चुनावों में नहीं मिला। जेल से बाहर आकर केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद छोड़ कर अपने सहयोगी आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया। वे फिर से दिल्ली जीतने की रणनीति में जुट गए हैं।

हरियाणा के चुनाव से पहले जो वातावरण बना था, उसे हरियाणा विधानसभा चुनाव नतीजों ने बदल दिया। इस मई में हुए लोक सभा चुनाव में भाजपा की सीटें कम आई। भले उसकी केन्द्र में सरकार बन गई लेकिन भाजपा नेताओं के हौसले पस्त दिखने लगे थे। उसी तरह दिल्ली में कोई सीट न जीतने के बावजूद कांग्रेस और आआपा के हौसले बढ़ गए थे। चुनाव पूर्वानुमानों के उत्साह में कांग्रेस और आआपा अकेले चुनाव लड़े। कांग्रेस को तो भाजपा के 48 के मुकाबले 37 सीटें मिल गई लेकिन आआपा को दो फीसदी से भी कम उसे वोट मिले।

दिल्ली का राजनीतिक समीकरण लगातार बदलता रहा है। 1483 वर्ग किलोमीटर की दिल्ली आजादी से पहले तीन सौ से ज्यादा गांवों और मुगल बादशाह शाहजहां के बसाए शाहजहांनाबाद (पुरानी दिल्ली) के लोगों की थी। देश के विभाजन के बाद बड़ी तादाद में पाकिस्तान से हिंदू और सिख शरणार्थी आए। देश की राजधानी होने के चलते बड़ी तादाद में केन्द्र सरकार के कर्मचारी देशभर से आए। उसी तरह बेहतर शिक्षा के लिए देश के पिछड़े राज्यों से विद्यार्थी आए। उत्तराखंड और पड़ोस के राज्यों से पलायान भी तभी शुरू हो गया था लेकिन बड़े पैमाने पर पलायन 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों के लिए हुए निर्माण कार्यों में मजदूरों की जरूरत से हुआ।

कुछ सालों तक बाहर से आने वाले केवल दिल्ली में काम के लिए आते थे और उनका स्थायी निवास अपने मूल स्थान पर होता था। वे वहीं के मतदाता थे। दूसरी पीढ़ी आने के बाद वे दिल्ली और आसपास के इलाकों (एनसीआर) के मतदाता बने और तीसरी पीढ़ी आने के बाद तो वे सत्ता को प्रभावित करने लगे। पहले हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान आदि प्रदेशों के मूल निवासी दिल्ली में चुनाव लड़ने और जीतने लगे और फिर वह दौर आ गया जब बिहार मूल के महाबल मिश्र और मनोज तिवारी दिल्ली के सांसद बन गए। मनोज तिवारी को तो एक खास वर्ग की पार्टी कही जाने वाली भाजपा ने अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया। यह संख्या और अनुपात लगातार बढ़ता जा रहा है। जो हाल अभी दिल्ली का दिख रहा है यही हरियाणा और पंजाब का भी हो गया है। इसे राजनीतिक कारणों से भले अभी नहीं स्वीकारा जा रहा है लेकिन अगले कुछ सालों में इसे सभी स्वीकारेंगे। अभी हरियाणा विधान सभा चुनाव में कांग्रेस एक जाति विशेष का दबदबा मान कर उसी को साथ लेने में लगी रही और बाकी जातियों ने प्रतिक्रिया में भाजपा को जिता दिया।

दिल्ली में भी आआपा के ताकतवर होने का एक कारण तो फ्री बिजली-पानी देना है लेकिन दूसरा बड़ा कारण खुले मन से प्रवासियों को साथ लाना है। यह काम पहले कांग्रेस करती थी। उसे लगातार दिल्ली में जीत मिलने के बाद लगा कि अब तो प्रवासी उनके स्थाई मतदाता बन गए। उन्होंने उनको महत्व देना कम किया तो उनकी जगह आआपा ने ले लिया। दिल्ली का हर पांचवां मतदाता पूर्वांचल (बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर मूल) का प्रवासी है। उनके समर्थन के बिना दिल्ली नहीं जीती जा सकती। राजनीति के खेल में कई रिकार्ड बनाने वाले आआपा संयोजक और अब दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री बन गए अरविंद केजरीवाल के सामने अपनी और अपनी पार्टी की साख (यूएसपी) बचाने का संकट है। कट्टर ईमानदार होने का दावा करने वाले केजरीवाल और उनकी पार्टी पर भ्रष्टाचार का केवल आरोप नहीं लगा है बल्कि शराब घोटाले के आरोप में केजरीवाल समेत अनेक बड़े नेता जेल भी गए। केजरीवाल को करीब छह महीने जेल में रहने के बाद इसी 13 सितंबर को सशर्त जमानत मिली। उन्होंने शहीदाना अंदाज में अपने पद से इस्तीफा देकर अपनी सहयोगी आतिशी मार्लेन (मार्क्स और लेनिन का संक्षेप) सिंह को मुख्यमंत्री बनाया। घोषणा कर दी कि लोगों की नजरों में आरोप मुक्त होने के बाद ही वे और उनसे पहले उसी तरह की शर्तों के साथ जमानत पाए उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया कोई सरकारी पद नहीं लेंगे। मुख्यमंत्री बनने के साथ ही आतिशी ने कहा कि वे तो दिल्ली विधान सभा चुनाव तक यानी केवल चार महीने के लिए मुख्यमंत्री हैं। उसके बाद फिर से अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बनेंगे। वे तो मुख्यमंत्री दफ्तर में केजरीवाल की कुर्सी के बजाए बगल में दूसरी कुर्सी पर बैठ रही हैं। जिसे भाजपा और विपक्षी दल राजनीतिक नाटक कह रहे हैं।

दिल्ली विधान सभा चुनाव फरवरी, 2025 में होने वाले हैं। केजरीवाल इस बात को छुपा रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के शर्तों में एक शर्त यह भी है कि वे न तो सचिवालय जा सकते हैं और न ही कोई सरकारी फाइल देख सकते हैं। यही आदेश सुप्रीम कोर्ट ने उनके साथ लंबे समय तक उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया को जमानत देते हुए दिए। इससे साफ है कि चाहे आआपा फिर से विधान सभा चुनाव जीत जाए लेकिन अरविंद केजरीवाल अदालत के आदेश के बिना मुख्यमंत्री नहीं बन सकते हैं। यह तय सा है कि दिल्ली में आआपा का कोई भी मुख्यमंत्री हो, सरकार अरविंद केजरीवाल के हिसाब से ही चलेगी और चलती हुई दिख भी रही है। दिल्ली विधान सभा चुनाव से पहले हरियाणा चुनाव को शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा था। शायद इसी के चलते देश भर में चुनाव लड़ने वाली आआपा की ज्यादा सक्रियता महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव में नहीं दिख रही थी। उस चुनाव में तो कांग्रेस की हार हुई और आआपा तो गायब ही हो गई। ऐसे में इस बार का दिल्ली विधान सभा चुनाव दिल्ली की राजनीति के लिए एक और मोड़ साबित होगा।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार के कार्यकारी संपादक हैं।)

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