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‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ के निहितार्थ  -राधा रमण 

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इस में दो राय नहीं हो सकती कि महाराष्ट्र में महायुति (भाजपा, शिवसेना और एनसीपी) की प्रचंड जीत में कई अन्य कारणों के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक नारे ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सियासी तीर ‘एक हैं तो सेफ हैं’ की अहम् भूमिका रही। दोनों शीर्ष नेताओं ने अपने राजनीतिक नारे से हरियाणा के अलावे झारखंड और महाराष्ट्र के हिन्दू मतदाताओं को न सिर्फ एकजुट किया बल्कि ईवीएम से भर-भर कर वोट बरसाए। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व तो काफी दिनों से देश की राजनीतिक लड़ाई को हिन्दू-मुस्लिम की धरातल पर लड़ने को आतुर था। भाजपा के नेता जानते हैं कि लंबे समय तक शासन करने के लिए अपना मजबूत वोट बैंक बनाना जरूरी है और यह तभी संभव है जब मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग उनके साथ रहे। खास बात यह कि इस नारे को सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वाला बताकर विपक्ष भाजपा के बुने जाल में उलझकर पराजय दर पराजय झेलने को अभिशप्त हो गया।
व्यावहारिक तौर पर भी देखें तो दोनों राजनीतिक नारे तर्क सम्मत हैं। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हम बचपन से यह कहते- सुनते रहे हैं कि ‘बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो ख़ाक की’। योगी जी ने ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ कहकर उसी बात को थोड़ी ऊर्जा के साथ कहने की कोशिश की है। और तो और, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक हैं तो सेफ हैं’ कहकर योगी जी के नारों को ही परिष्कृत तथा शालीनता प्रदान कर दिया है। कहने की जरूरत नहीं कि दोनों ही नारों का उद्देश्य एक ही है। बस कहने का तरीका अलग- अलग है। भले ही अटकलें और अर्थ लगानेवाले अपने हिसाब से इसका विश्लेषण करते रहें। याद कीजिए कि महाराष्ट्र की सियासत में ‘हिन्दू ह्रदय सम्राट’ कहे जानेवाले बाला साहेब ठाकरे ने सबसे पहले 80 के दशक में मुंबई के शिवाजी पार्क स्थित अपनी सार्वजनिक सभा में कहा था कि ‘अगर हमारी सभा में कोई मुसलमान बैठे हों तो कृपया चले जाएँ। इसलिए कि मैं उनके लिए कुछ नहीं कहूँगा और अगर वे बैठे रहे तो बेवजह उन्हें तकलीफ होगी।‘ इतिहास गवाह है कि उसके बाद मुंबई और महाराष्ट्र ने बाला साहेब को कैसे सिर माथे पर बिठाया था। बाद के दिनों में कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, हरियाणा, बिहार, उत्तरप्रदेश समेत कई राज्यों के कुछ भाजपा नेता यह कहकर कि ‘उन्हें मुसलमानों के वोट नहीं चाहिए’, संसद और विधानसभा में पहुँच गए।
लेकिन अब समय बदल गया है और सियासत का मूड भी। राजनीतिक कटुता इतनी कभी नहीं थी, जितनी अब है। मतभेद अब मनभेद में बदल गया है। बात-बात पर मुकदमेबाजी हो रही है। राजनेता एक दूसरे को गुंडा, मवाली और न जाने क्या-क्या कहने लगे हैं। नेताओं की कथनी और करनी में विद्रूपता देखिए कि अपने देश में राजनेता बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन चुनाव जाति, धर्म और संप्रदाय के आधार पर लड़ते हैं। ऐसे में योगी-मोदी ने समाज के एक बड़े वर्ग को अपने साथ लाने के लिए ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का नारा उछाल कर बड़ा दांव चल दिया है। विपक्ष के पास फिलहाल इसका कोई जवाब नहीं दिखाई देता। हरियाणा और महाराष्ट्र की विजय तो इसकी झांकी मात्र है। इसकी धमक और अनुगूंज दूर तलक जाएगी। इस बार भी दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में इस नारे का असर तो दिखा ही उपचुनाओं में भी बड़ा उलटफेर हो गया। बिहार की चारों सीटों पर एनडीए को विजय मिली। इनमें से इमामगंज को छोड़कर बाकी शेष सभी सीटों बेलागंज, रामगढ़ और तरारी पर लंबे समय से राष्ट्रीय जनता दल और माले का कब्ज़ा था। बिहार के चारों सीटों पर उपचुनाव इसीलिए कराया गया था कि वहाँ के विधायक सांसद बन गए थे। उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ के इसी नारे ने मतदाताओं पर इतना असर डाला कि भाजपा नौ में से पाँच सीट हासिल करने में सफल हो गई। एक सीट राष्ट्रीय लोकदल को मिली जो एनडीए का घटक दल है। आश्चर्य तो यह कि भाजपा इस बार मुस्लिम बहुल कुंदरकी की सीट पर पहली बार विजय पताका फहराने में सफल रही और वह भी 1.41 लाख मतों के अंतर से। इसी तरह राजस्थान के झुंझनूं विधानसभा सीट पर लगभग चार दशक से कांग्रेस का कब्ज़ा था। इस बार वह सीट भाजपा के पाले में आ गई। राजस्थान के नागौर जिले के खींवसर विधानसभा सीट पर उस इलाके में अपराजेय समझे जानेवाले आरएलपी सांसद हनुमान बेनीवाल की पत्नी को पराजय का सामना करना पड़ा। क्या इसे इन नारों का असर कहना अतिशयोक्ति होगी! कहने की जरूरत नहीं कि झारखंड में भाजपा बहमत पाने में इसलिए पिछड़ गई कि वहाँ असम के मुख्यमंत्री हिमंता विश्व शर्मा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने घुसपैठ के मुद्दे पर अधिक फोकस किया था, जबकि झारखंड में घुसपैठ कभी प्रभावकारी मुद्दा नहीं रहा। घुसपैठ असम के लिए भले ही प्रभावकारी मसला हो सकता है, झारखंड के संथालपरगना के कुछ इलाकों को छोड़ दिया जाए तो राज्य में इसका कहीं असर नहीं है। बेशक, अगर भाजपा झारखंड में भी ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ के सहारे चुनावी मैदान में जाती तो परिणाम चौंकानेवाले होते।
यह कहना या समझना भी ठीक नहीं होगा कि योगी-मोदी के नये नारे से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहमति नहीं है। भले ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत बार-बार यह कहते हैं कि हिन्दुस्तान में रहनेवाला हर व्यक्ति हिन्दू है। लेकिन संघ प्रमुख की इन बातों से न तो संघ समर्थक अधिकांश स्वयंसेवक इत्तिफाक रखते हैं और न ही मुसलमानी अवाम। संघ भी हमेशा से हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का हिमायती रहा है। उसकी इसी आइडियोलॉजी का तो कथित धर्मनिरपेक्ष दल और मुसलमानों की बड़ी आबादी विरोध करती रही है। वरना संघ के सेवा कार्य, समाज सुधार और योग-कसरत से भला किसे एतराज हो सकता है! यह भी सच है कि अपने स्थापना काल से ही संघ में किसी महिला या मुसलमान को कोई शीर्ष पद नहीं मिला है। यही वजह है कि मुट्ठीभर बुद्धिजीवी मुसलमानों के अलावा मुसलमानों के बड़े तबके का कभी संघ को समर्थन नहीं मिला है।
बहरहाल, ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ नारे की बदौलत महाराष्ट्र के चुनावी समर में विजय पताका फहराने के बाद भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोग इसे आगामी चुनावों में भी भुनाने की पुरजोर कोशिश करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में भाजपा मुख्यालय पर आयोजित आभार समारोह में ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का नारा दोहराकर यह संकेत दे दिया है कि आनेवाले दिनों में भाजपा इसी नैरेटिव को लेकर आगे बढ़ेगी। देश में हताश विपक्ष फिलहाल हक्का-बक्का है। विपक्ष के नेता और कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी ने महाराष्ट्र में पार्टी के प्रदर्शन को अप्रत्याशित बताते हुए परिणाम की समीक्षा करने की बात कही है। राहुल ने हरियाणा की हार के बाद भी यही कहा था। लेकिन अबतक देश की जनता को हरियाणा की कोई समीक्षा रिपोर्ट नहीं मिली है। इस बीच, महाराष्ट्र में कांग्रेस की अबतक की सबसे बुरी हार हो गई। शिवसेना (उद्धव गुट) के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने तो ईवीएम पर ही ठीकरा फोड़ दिया। हाँ, महाराष्ट्र के चार बार मुख्यमंत्री रहे वयोवृद्ध नेता शरद पवार जरूर इस बात को स्वीकारते हैं कि महाअघाड़ी की महा पराजय में मोदी-योगी के नारों की भी अहम् भूमिका रही और लोग इनके बहाव में बह गए।

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