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कन्यादान शास्त्रों द्वारा प्रदत्त नाम है जो हिंदुओं में काफी प्रचलित है।

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किसी भी मनुष्य का दान करने एवं ऐसा दान लेने का अधिकार किसी के पास नहीं है। मनुष्य कोई वस्तु नहीं है जो दान किया जा सकें। लेकिन कन्या दान सबसे पहले प्रजापति दक्ष ने किया था। इसका सपष्ट तात्पर्य है कि पिता अपनी बेटी को ऐसे युवक के सुरक्षित हाथों में सौंपकर अपने सर्वाधिकार त्याग कर कन्यादान करता है। यह हिंदुओं में प्राचीनतम परंपरा एवं सर्वाधिक लोकप्रिय है। 

व्हाट्सएप युनिवर्सिटी में वर्तमान में तरह तरह के तर्क वितर्क पढने को मिलते हैं जिसे निशुल्क डाकिये घर घर बांटते रहते हैं उन्हें निंद से उठते ही जब तक दस बीस समूहों में वितरित नहीं किया बिस्तर से उठते नहीं।

कन्या दान को महादान भी कहा जाता है जो धार्मिक एवं सामाजिक रूप से दोनों पक्षों की उपस्थिति में किया जाता है। दान का अर्थ है कि सोच समझ कर किसी द्रव्य वस्तु अथवा कुछ भी देना फिर उस पर कोई अधिकार ना रखना होता है।

वर्तमान में स्थिति बदली है लेकिन परंपरा एवं रिति रिवाजों में शोर्ट कट एवं आधुनिकीकरण अवश्य हुआ है लेकिन आज भी धार्मिक एवं सामाजिक शादी सर्वमान्य होती है। अपने भारत में सैंकड़ों जातियों में अलग अलग व्यवस्था है। अलग अलग धर्म संप्रदाय में अपनी नियमावली के अनुसार शादी विवाह जन्म मरण पर उनकी मान्यता एवं पद्धति है ऐसे में उद्देश्य एक ही होता है भले ही रास्ते अलग अलग हो।

आज कन्या पढ लिखकर देश का पांचवा सतंभ बनने के लिए हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही है ऐसे में अनावश्यक विश्लेषण की जरूरत नहीं है।

मदन सुमित्रा सिंघल,

पत्रकार एवं साहित्यकार

शिलचर, असम

मो 9435073653

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