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शिलचर के प्रतिष्ठित साधुमार्गी जैन परिवार की बहू सुषमा पारख न केवल एक शिक्षित, संस्कारी और मिलनसार महिला हैं, बल्कि वे एक उभरती हुई साहित्य साधिका के रूप में भी पहचानी जा रही हैं। अपने दांपत्य जीवन को सफलतापूर्वक निभाते हुए, उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है।
उनकी पहली काव्य संग्रह “साहित्य सुषमा” में 79 रचनाएँ शामिल हैं, जो विभिन्न विषयों पर आधारित हैं। यह पुस्तक साहित्यिक गुलदस्ते के समान है, जिसमें हर कविता और लेख मानो अलग-अलग रंग के फूल हैं। उनकी रचनाओं में गहरी कृष्ण भक्ति और जीवन के विविध पहलुओं की झलक मिलती है। यह आश्चर्यजनक है कि जैन धर्म में रची-बसी सुषमा पारख ने कृष्ण भक्ति को अपने लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है।
छह महीने के प्रयास के बाद जब सुषमा पारख मेरे निवेदन पर मेरे घर पधारीं, तो उनका स्वागत उतरीय भेंट से किया गया। हमारी संक्षिप्त बातचीत में मैंने उन्हें सलाह दी कि साहित्य साधना में धैर्य और तपस्या का विशेष महत्व है। दौड़ लगाकर कोई महान साहित्यकार नहीं बनता; यह एक निरंतर साधना और अनुशासन का परिणाम है।
सुषमा पारख भविष्य में एक अद्वितीय साहित्यकार बन सकती हैं, यदि वे धैर्यपूर्वक और सोच-समझकर अपने लेखन में गुणवत्ता बनाए रखें। उनका लेखन न केवल उनकी प्रतिभा का प्रतीक है, बल्कि उनके अंदर की गहरी भक्ति और आध्यात्मिकता का परिचायक भी है।
उत्तम स्वास्थ्य और सकारात्मक चिंतन के साथ, सुषमा पारख को उनके उज्जवल भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।
मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर, असम