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बराक घाटी के लोकप्रिय व्यक्तित्व इमादूद्दीन बुलबुल का निधन, घाटी में शोक की लहर

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प्रे.स. शिलचर, 14 जनवरी: बराक घाटी के प्रख्यात लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, भाषा सेनानी और समाज सुधारक इमादूद्दीन बुलबुल का शुक्रवार शाम 7 बजे शिलचर के एक निजी नर्सिंग होम में निधन हो गया। 76 वर्षीय बुलबुल का निधन पूरे बराक घाटी के लिए अपूरणीय क्षति है। उनके निधन की खबर ने पूरे क्षेत्र को स्तब्ध कर दिया।
जीवन और योगदान
सितंबर 1949 में काठीघोड़ा के लामारग्राम में जन्मे इमादूद्दीन ने साहित्य, समाज और सांस्कृतिक गतिविधियों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। उन्होंने काछार कॉलेज से स्नातक और गुवाहाटी विश्वविद्यालय से एमए और एलएलबी किया। वकालत के साथ-साथ उन्होंने साहित्यिक और सामाजिक सेवा को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाया।
बचपन से ही साहित्य प्रेमी बुलबुल ने भाषा आंदोलन से लेकर सामाजिक न्याय के मुद्दों पर अपनी लेखनी और सक्रियता से लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने कई ऐतिहासिक और सामाजिक विषयों पर किताबें लिखीं, जिनमें बराक घाटी के इतिहास और भाषा आंदोलन पर आधारित रचनाएँ प्रमुख हैं।
अचानक बिगड़ी तबीयत
शुक्रवार को बुलबुल अपनी दिनचर्या के अनुसार शिलचर बार गए और वहां सहकर्मियों से चर्चा की। दोपहर 2 बजे घर लौटने के बाद उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। पड़ोसियों और परिवार के सदस्यों ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया, लेकिन शाम को उनकी मृत्यु हो गई।
श्रद्धांजलि और शोक संदेश
उनके निधन पर समाज के सभी वर्गों ने गहरी संवेदनाएँ व्यक्त कीं। उनके घर पर श्रद्धांजलि देने के लिए साहित्य, पत्रकारिता और राजनीति से जुड़ी हस्तियों का तांता लगा रहा।
दैनिक युगशंख के संपादक विजयकृष्ण नाथ ने कहा, “इमाद उद्दीन के निधन से बराक घाटी को बड़ी क्षति हुई है। उनका साहित्य और सामाजिक योगदान अमूल्य है।”
वरिष्ठ कवि महुआ चौधरी ने कहा, “वे एक महान साहित्यकार और सच्चे इंसान थे। उनके जैसा दोस्त पाना दुर्लभ है।”
बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुलाल मित्रा ने उन्हें “धर्मनिरपेक्ष और नेकदिल व्यक्तित्व” के रूप में याद किया।
घाटी के लिए अमूल्य धरोहर
इमाद उद्दीन बुलबुल ने अपने जीवनकाल में सामाजिक समरसता और शांति का संदेश फैलाया। उन्होंने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा और बराक घाटी के विकास के लिए अनवरत प्रयास किए। उनकी मृत्यु से घाटी में एक खालीपन आ गया है, जिसे भर पाना मुश्किल है।
उनके परिवार में पत्नी मिनारा बेगम, दो बेटे शाहबाज़ अहमद और सहेल आलम, बेटी सेहली बेगम और अन्य परिजन हैं।
एक युग का अंत
बराक घाटी ने साहित्य, संस्कृति और सामाजिक सुधार का एक अद्वितीय सितारा खो दिया। उनकी स्मृतियाँ और योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।

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