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वर्तमान महामारी के समय अभय की साधना

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प्रे.सं.शिलचर, ४ जून : वर्तमान समय में शिलचर में तेरापंथ धर्मसंघ की चार साध्वियों का चातुर्मास के अन्तर्गत प्रवास चल रहा है। जिनमें साध्वी श्री संगीतश्री जी, साध्वी श्री शांतिप्रभाजी, साध्वी श्री कमल विभाजी तथा साध्वी श्री मुदिता जी विगत ३ गई को गुवाहाटी, शिलांग होते हुए शिलचर पधारी। चारों साध्वी शिलचर में जब से आई हैं, तब से प्रत्येक दिन अलग अलग घरों में प्रवास करती हैं। इसी श्रृंखला में इनका शिलचर के प्रतिष्ठित समाजसेवी चंद्र प्रकाश एवं शांति लाल डागा के आवास पर ४ जून को प्रवास था। शांतिलालजी के आवास पर ही प्रेरणा भारती के प्रतिनिधि संग उपरोक्त साध्वीश्री से साक्षात्कार हुआ। जिसका विवरण निम्नलिखित है –
प्रमुख साध्वी संगीत श्री जी ने बताया कि ये नार्थईस्ट में उनका तीसरा चातुर्मास चल रहा है, इससे पूर्व नगाँव और गुवाहाटी में दो चातुर्मास पूर्ण हो चुके हैं, आगामी २३ जुलाई २०२१ से यह चातुर्मास चलेगा, उन्होंने बताया कि कोविड प्रोटोकाल के तहत हम कोई बड़ा आयोजन नहीं करेंगे। साध्वीश्री ने तेरापंथ धर्मसंघ के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हमलोग ‘एक आचार, एक विचार, एक प्रणाली, एक संस्कार’ अपने आचार्य श्री महाश्रमणजी के आज्ञा पर चलते हैं। हमारा प्रमुख उद्देश्य अहिंसा परमोधर्म अर्थात किसी को पीड़ा या तकलीफ मत दो। नैतिकता का पालन करो, जीवन में ईमानदारी, व्यसनमुक्त जीवन तथा सभी के साथ प्रेम व्यवहार से रहो, इन सद्विचारों पर जोर देते हैं। क्योंकि हमारे जीवन की यही सबसे बड़ी संपदा है। साध्वी संगीतश्री जी ने बताया कि धर्म से भटके हुए तथा अनावश्यक संग्रह करने वालों को हम समझाते हैं और उन्हें अणुव्रत के ११ नियमों का स्मरण कराते हुए सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
वर्तमान कोविड महामारी के समय इससे बचाव हेतु क्या संदेश है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए साध्वी संगीतश्री ने बताया कि वर्तमान कोविड महामारी से बचने का एक ही उपाय है कि अभय की साधना करो, डरो मत। जो डर गया, वो मर गया। योगासन, प्राणायाम, सात्विक आहार, सकारात्मक दृष्टिकोण तथा मनोबल को ऊंचा रखना है। तभी हम इस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। साधना के मार्ग में चलते हुए कभी कभी मन में भटकाव आता है क्या ? इस पर उत्तर देते हुए साध्वी श्री ने कहा कि हमारे मन में कोई संशय नहीं, साधना के मार्ग में शिथिलता आने का कोई प्रश्न ही नहीं है, हम लोगों का दिनचर्या और जीवनशैली ही त्यागमय है। हमारे लिए महल और झोपड़ी एक समान है। साध्वी श्री ने तेरापंथ धर्मसंघ के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि हमलोग एक गुरु को मानते हैं, भगवान महावीर का सिद्धान्त एक ही है। उन्होंने मोक्ष के चार साधन बताये – ज्ञान, दर्शन, चरित्र तथा तप जिनके द्वारा साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वर्तमान समय में जब पूरा विश्व कोविड महामारी की त्रासदी झेल रहा है, ऐसे में उन्होंने कहा कि अपने भाव शुद्ध रखें, योग-व्यायाम एवं सात्विक आहार पर ध्यान दें। ज्ञात हो कि शिलचर प्रवास कर रही चारों साध्वी १३ महीने से एक दिन के अन्तराल पर भोजन ग्रहण करती हैं। अर्थात एक दिन सूर्योदय से पूर्व भोजन लेती हैं, और दूसरे दिन उपवास रखती हैं। उन्होंने बताया कि जैन धर्म में मुंह पर कपड़ा रखना, पैदल चलना, सूर्यास्त से पूर्व भोजन करना, ये सभी पूर्णतया वैज्ञानिक रुप से स्वस्थ जीवन के लिए प्रामाणित है।
तेरापंथ धर्मसंघ के बारे में एक संक्षिप्त परिचय : तेरापंथ धर्मसंघ आचार्य भिक्षु द्वारा स्थापित अध्यात्म प्रधान धर्मसंघ है, जिसकी स्थापना २९. जून, १७६० को हुई थी। यह जैन धर्म की शाश्वत प्रवहमान धारा का युग-धर्म के रूप में स्थापित एक अर्वाचीन संगठन है, जिसका इतिहास लगभग 260 वर्ष पुराना है। प्रारम्भ में इस धर्म संघ में तेरह साधु तथा तेरह ही श्रावक थे, इसलिए इसका नाम ‘तेरापंथ’ पड़ गया। संस्थापक आचार्य श्री भिक्षु ने उस नाम को स्वीकार करते हुए उसका अर्थ किया -‘हे प्रभो ! यह तेरा पंथ है। तेरापंथ जैन धर्म का एक अत्यंत तेजस्वी और सक्षम संप्रदाय है। आचार्य भिक्षु इसके प्रथम आचार्य थे। इसके बाद क्रमश: दस आचार्य हुए। इसे अनन्य ओजस्विता प्रदान की चतुर्थ आचार्य जयाचार्य ने और नए-नए आयामों से उन्नति के शिखर पर ले जाने का कार्य किया नौवें आचार्य श्री तुलसी ने। उन्होंने अनेक क्रांतिकारी कदम उठाकर इसे सभी जैन संप्रदायों में एक वर्चस्वी संप्रदाय बना दिया। दशवें आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने इस धर्मसंघ को विविध क्षितिज पर प्रतिष्ठित किया और ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमण इसे व्यापक फलक प्रदान कर जन-मानस पर प्रतिष्ठित कर रहे हैं। तेरापंथ का अपना संगठन है, अपना अनुशासन है, अपनी मर्यादा है। इसके प्रति संघ के सभी सदस्य सर्वात्मना समर्पित है। साधु-साध्वियों की व्यवस्था का संपूर्ण प्रभार आचार्य के हाथ में होता है। आचार्य भिक्षु से लेकर वर्तमान आचार्य महाश्रमण तक सभी आचार्यों ने साधु-साध्वियों के लिए विविधमुखी मर्यादाओं का निर्माण किया है।
आचार्य तुलसी द्वारा निर्देशित अणुव्रत आचार-संहिता के 11 नियम:
1. मैं किसी भी निरपराध प्राणी का संकल्पपूर्वक वध नहीं करूंगा।
• आत्म-हत्या नहीं करूंगा। • भूण हत्या नहीं करूंगा।
2. मैं आक्रमण नहीं करूंगा।
• आक्रमण नीति का समर्थन नहीं करूंगा। विश्व शांति तथा निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयत्न करूंगा।
3. मैं हिंसात्मक एवं तोड़फोड़-मूलक प्रवृत्तियों में भाग नहीं लूंगा।
4. मैं मानवीय एकता में विश्वास करूंगा। जाति, रंग आदि के आधार पर किसी को ऊंच-नीच नहीं मानूंगा।
• अस्पृश्य नहीं मानूंगा
5. मैं धार्मिक सहिष्णुता रखूगा। • साम्प्रदायिक उत्तेजना नहीं फैलाऊंगा।
6. मैं व्यवसाय और व्यवहार में प्रामाणिक रहूंगा।
• अपने लाभ के लिए दूसरों को हानि नहीं पहुंचाऊंगा। छलनापूर्ण व्यवहार नहीं करूंगा।
7. मैं ब्रह्मचर्य की साधना और संग्रह की सीमा का निर्धारण करूंगा।
8. मैं चुनाव के सम्बन्ध में अनैतिक आचरण नहीं करूंगा।
9. में सामाजिक कुरूढ़ियों को प्रश्रय नहीं दूंगा।
10. मैं व्यसन-मुक्त जीवन जीऊंगा।
• मादक तथा नशीले पदार्थो-शराब, गांजा, चरस, हीरोइन, भांग, तंबाकू आदि का सेवन नहीं करूंगा।
11. मैं पर्यावरण की समस्या के प्रति जागरूक रहूंगा।
• हरे-भरे वृक्ष नहीं काटूंगा। पानी, बिजली आदि का अपव्यय नहीं करूंगा।

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