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अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी “भारत और उसके पड़ोसी: एक बेहतर भविष्य के लिए पहल” संपन्न

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प्रे.स. शिलचर, 29 जनवरी: बड़खोला स्थित सरकारी मॉडल कॉलेज और असम विश्वविद्यालय के “उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण कार्यालय” द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी “भारत और उसके पड़ोसी: एक बेहतर भविष्य के लिए पहल (विज्ञान, समाज, अर्थव्यवस्था, साहित्य और संस्कृति)” 28-29 जनवरी 2025 को सफलता पूर्वक संपन्न हुई।

संगोष्ठी का उद्देश्य और उद्घाटन सत्र

इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य भारत और उसके पड़ोसी देशों के साथ संबंधों के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करना और आपसी समझ व सहयोग को बढ़ावा देना था। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि असम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजीव मोहन पंत थे, जबकि विशेष अतिथि प्रोफेसर गौड़ गोविंद गोस्वामी (प्रो-वाइस चांसलर, उत्तरा विश्वविद्यालय) और डॉ. सहाबुद्दीन अहमद (प्राचार्य, सरकारी मॉडल कॉलेज, बर्खला) थे। संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. दिपेंदु दास ने की, जो उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण विभाग के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में इस आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

संगोष्ठी समन्वयक डॉ. बरुंज्योति चौधरी ने स्वागत भाषण में संगोष्ठी के महत्व और भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डाला।

मुख्य विचार और महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा

प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक और कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर समीर कुमार दास ने उद्घाटन व्याख्यान (Keynote Address) दिया। उन्होंने दक्षिण एशिया की राजनीतिक स्थिति, कूटनीतिक संबंधों और सहयोग की अनिवार्यता पर चर्चा की। उनके अनुसार, ऐतिहासिक संदर्भ, राष्ट्रवादी विचारधारा और आधुनिक कूटनीति की बदलती प्रकृति भारत और उसके पड़ोसी देशों के संबंधों को प्रभावित कर रही है।

विशेष सत्र में प्रो. अशोक कुमार सेन और प्रो. अनुप कुमार दे ने विज्ञान और साहित्य के अंतरराष्ट्रीय संदर्भ और भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंधों की बदलती गतिशीलता पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

अलग-अलग शैक्षणिक सत्रों की अध्यक्षता प्रसिद्ध शिक्षाविदों ने की, जिनमें प्रो. अनिंद्य स्याम चौधुरी (डीन, सुनीति कुमार चटर्जी स्कूल ऑफ इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेज स्टडीज, असम विश्वविद्यालय), प्रो. सौगत कुमार नाथ (अंग्रेजी विभागाध्यक्ष), प्रो. विश्वतोष चौधुरी और प्रो. रामकांत दास (बंगाली विभाग) शामिल थे। इन सत्रों में दक्षिण एशियाई देशों के बीच भाषा, साहित्य और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर गहन चर्चा हुई, जिससे क्षेत्रीय विरासत और आधुनिक चुनौतियों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी स्थापित हुई।

70 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत, अंतरराष्ट्रीय शोध सहयोग को बल

इस संगोष्ठी में लगभग 70 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जिनमें सीमा व्यापार और आर्थिक संपर्क, भारत-बांग्लादेश साहित्यिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान, नदी जल बंटवारा और पर्यावरणीय संकट, महिला शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन, तकनीक की भूमिका, और दक्षिण एशिया में राजनीतिक स्थिरता जैसे महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया गया।

ऑफ़लाइन और ऑनलाइन माध्यम से आयोजित इस संगोष्ठी में विभिन्न देशों के शोधकर्ताओं की भागीदारी देखी गई, जिससे अंतरराष्ट्रीय शोध सहयोग के नए द्वार खुले।

समापन सत्र में भविष्य की योजनाओं पर जोर

समापन सत्र में आयोजन समिति ने इस संगोष्ठी को सीमाओं से परे शैक्षणिक और शोध सहयोग को मजबूत करने वाला एक महत्वपूर्ण मंच बताया। भविष्य में भारत और पड़ोसी देशों के बीच और अधिक शोध व अकादमिक सहयोग को बढ़ावा देने की योजनाएं बनाई गईं।

डॉ. विश्व रंजन रॉय ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए आयोजकों, शोधकर्ताओं, शिक्षकों और विद्यार्थियों का आभार व्यक्त किया।

नए संवाद और सहयोग की उम्मीद

यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी न केवल भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच संबंधों को लेकर गहन चर्चा का मंच बनी, बल्कि इससे अंतरराष्ट्रीय शोध और अकादमिक साझेदारी के नए आयाम भी जुड़े। इस संगोष्ठी के निष्कर्षों और सिफारिशों से क्षेत्रीय सहयोग को और मजबूती मिलने की उम्मीद है, जिससे भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच मैत्रीपूर्ण और प्रगतिशील संबंधों को बढ़ावा मिलेगा।

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