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बसंत पंचमी- सुनील महला

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प्रकृति का यौवन वसंत है ।
ऋतुओं का राजा वसंत है ।।
खिल रही है धूप, खिल रही कोंपलें नई।
वसंती हवाएं हैं, हरितिमा है छाई।।
फिज़ाओं में रंग घुले हैं।
दिलों से दिल आज मिले हैं।।
रंग-बिरंगे फूल खिले,सरसों, राई
और गेहूँ खेत लहलहा रहे हैं।
देखो पंछी मधुर गान में चहचहा रहे हैं।
बावली, मस्तमौला हवाएं।
खुशमिजाज आज सभी फिजाएं।।
झूमते खेत, झूमते पोखर, ताल-तलैया।
प्रकृति है प्राणियों की खिवैया।।
हँसी आज सब दिशाएँ।
आओ हिल-मिल मौज मनाएँ।।
हँसी चमचमाती, मंजरियां सारी खिल-खिल।
कोमल-कच्चे वृन्त करें आज झिलमिल।।
चपल ध्वनि करे कलकल।
मन आज सारे हैं गद्गद्।।
आम्र मंजरियां सुरभिमुखर।
प्रेयसियां भूलीं प्रणय-कहर।।
वृक्ष फुनगियां लहक उठीं ।
नुपूर मुखरित चरण, सुंदरियां जैसे चहक उठीं।।
गन्धमुखर मलयानिल, प्रकृति बेसुध।
मन-आत्मा जैसे हो गई मंत्रमुग्ध।।
नव-पल्लवों पर लद-कद भौंरे।
पलाश के फूल हलचल जैसे छोरे।।
भ्रमरों की पंक्तियां बनी आंखों का अंजन।
सूर्य की लालिमा का महावर, नव-विहान सृजन।।
मदमस्त हरिण हैं, सूखे पत्ते मर्मर।
कोकिल की कूक, फैला मधु स्वर।।
पद्म पराग, सुवासित जल।
लता-वधुएं हिलमिल-हिलमिल।।
चेतन-अचेतन प्रेम-विभोर।
उल्लासित प्रकृति कण-कण, मन हैं सारे मयूर।।
रमणीय वसंत का रूप सौंदर्य।
रमणीय वसंत का रूप सौंदर्य।।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर,
कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
मोबाइल 9828108858

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