शिलचर के रंगीरखारी इलाके के बड़े से घर में मुखर्जी परिवार रहता था। उच्च मध्यवर्गीय लोग, आय भी अच्छी थी। परिवार संयुक्त था। घर में उमा मुखर्जी, शंकर मुखर्जी और उनके दो बेटे सजल और सौरभ। दोनों की शादी हो चुकी थी। बड़ी बहु तुली सजल की और पायल सौरभ की पत्नी बन इस घर में आई थी। दोनों ही पढ़ी लिखी और कमाने वाली बहुएं थी। पर तुली क्योंकि एक साधारण से मास्टर की बेटी थी तो पायल के पिता शहर के म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में अच्छे पद से सेवा निवृत्त थे और अच्छी पेंशन मिला करती थी। यही कारण है कि उमा जी और शंकर जी अपनी छोटी बहु पायल को थोड़ा ज्यादा ही मानते थे। पायल अच्छा कामती थी वहीं तुली ज्यादा पढ़ी लिखी होने के बावजूद भी एक छोटे से कॉलेज में मामूली वेतन ही लाती थी। वैसे उसको अपना कैरियर बनाने के कई अवसर मिले थे लेकिन सास उमा जी हमेशा किसी न किसी बहाने से उसकी राह में अड़ंगा लगा ही देती थी। कभी बच्चा न होने के कारण तो कभी परिवार का वास्ता देकर उससे रोक लेती थी। वहीं सजल भी तुली जो हमेशा से ही अपनी चालाकियों से दबाए रखता था क्योंकि वो घर में थी सबसे होनहार और समझदार। लेकिन क्योंकि उसकी खूबियां ही सबकी कुंठा की वजह थी। दूसरी बात यह थी कि शादी के इतने साल हुए पर तुली को बच्चा नहीं हुआ था जिस कारण उसे यदा कदा कुछ कटु बातें भी सुननी पड़ जाती। वहीं अब पायल मां बनने वाली थी।
२
आज घर में रूपोशी व्रत की पूजा थी। घर में नया मेहमान जो आया है। खुशी की बात है लेकिन घर में सभी के चेहरे पर मायूसी छाई हुई है। क्योंकि कुछ दिन पहले पायल ने बच्चे को जन्म तो दिया लेकिन वो जन्म के महज सात दिन बाद ही भगवान को प्यारी हो गई। बात यह थी कि शहर के अस्पताल में अच्छी सुविधा न होने के कारण उससे गुवाहाटी ले जाना पड़ा लेकिन खराब रास्तों के कारण पायल को समय पर अस्पताल नहीं ले जाना हुआ और पायल सप्ताह भर ने नन्हे बेटे को छोड़ भगवान के पास चली गई। उसके माता पिता और दोनों बहनें आज मुखर्जी परिवार के घर आया हुआ था। वहीं तुली की मां भी आई हुई थी। बच्चा होने के एक महीने बाद यह रूपोशी व्रत करना हर सिलेठी परिवारों का नियम होता था। पायल का अंतिम संस्कार हो चुका था। व्रत क्या था महज एक छोटी सी पूजा ही थी जो केवल घर की महिलाएं ही करती हैं। पूजा के संपन्न होने पर पायल के माता –पिता और उमा जी, सौरभ नन्हे बच्चे को गोद में लेकर उसे दूध पिलाने की जद्दोजहद में थे। बच्चे ने पैदा होकर अपनी मां का दूध पिया तो था मगर अब उसकी मां नहीं थी तो वह अनजाने में ही जिसके भी गोद जाता तो अनजाने में ही मां का दूध टटोलने के लिए छाती पर मुंह खोले रहता और रोता रहता। किसी तरह मुश्किल से सौरभ ने बोतल में फॉर्मूला वाला दूध बनाकर पिलाया तो वह शांत हुआ । उसे अस्पताल वालो ने सिखा दिया था जो आज काम आ रहा था। वहीं दूसरे कमरे में तुली बैठी हुई थी। वह भी दुखी थी जिसके दो कारण थे। एक पुचकू के दुख और दूसरे ससुराल वालों के बुरे व्यवहार से क्योंकि उसने बच्चे को अपने हाथों से दूध पिलाने और सुलाने की बात कही थी जिस पर उमा जी ने उसे बेरुखी आवाज़ में दो यह कर दिया था कि वह नहीं कर पाएगी क्योंकि उसने कभी बच्चा नहीं जन्मा है। वह एक उधेड़बुन में थी कि तभी सजल आकर उससे फटकारते हुए सबके लिए चाय बनाने का आदेश देता है। तुली ये नहीं समझ पाती है कि सजल आखिर चिल्ला क्यों रहा है। जबकि सबका खाना हो चुका है और अभी चाय का समय हुआ नहीं है। वह सजल से पूछती है – क्या हुआ तुम इस तरह क्यों चिल्ला रहे हो मुझ पर?
सजल – दिमाग मत खराब करो। जाओ सबके लिए चाय बनाओ। देख नहीं रही हो सब लोग पुचकू को लेकर कितने परेशान है।
तुली – तो इसमें मैं क्या कर सकती हूं? जब मैंने कहा कि पुचकू को मैं ही संभाल लूंगी और तुम सब लोग आराम करो तो किसी ने भी मुझे बच्चे को हाथ तक लगाने नहीं दिया।
सजल – बच्चे तो तुम क्या संभालोगी? तुमने पैदा किया है क्या? एक तो बांझ ऊपर से ढोंग दिखने आई हो की बच्चा तुम सम्भाल लोगी। खुद का तो एक काम होता नहीं है। सब बोलकर देना पड़ता है।
तुली– तो क्या हुआ जो मैं बच्चा जन्मी नहीं हूं। क्या मैं एक बच्चा सम्भाल नहीं सकती। मेरी मां ने तीन तीन बच्चे अकेले ही पाले है और मैंने भी अपनी कई ममेरी और चचेरी बहनों के बच्चों को कई बार संभाला है जब वे हमारे घर घूमने आते थे। लेकिन मुझे दुख इसी बात का है कि आज इतने सालों से ही मैं देख रही हूं कि तुम लोग मुझे इस बात का ताना देते रहते हो। ऊपर से पायल के बच्चे को छूने भी नहीं देते। मैं क्या कोई डायन हूं जो उसके बच्चे को खा जाऊंगी। जब डिलिवरी हो रही थी तब भी तुम लोगों ने मुझे अस्पताल आने से ही रोक दिया था। मगर मैं जिद करके आई। पुचकू को बाहर लाया गया तो सबने उसको बारी बारी से गोद लिया लेकिन मुझे किसी ने भी उसे देखने तक नहीं दिया। बार बार सो गया हे कहकर मुझे वहां से हटाते रहे। बस पायल की मौत के दिन तुम सब दुखी थे तो कुछ देर के लिए पुचकू के पास रही। पर वह भी तुमसे सहन नहीं हुआ और मुझे तुम न जाने किस बात के गुस्से में घसीट कर बाहर ले गए। अरे क्या मेरे कारण ये सब हुआ? आज भी मैंने मदद करनी चाही तो मुझे सुना दिया ताना।
सजल – ऑफ हो। ज्यादा बहस मत करो। मेरा दिमाग अभी खराब हो रहा है। ज्यादा बकोगी तो जुड़ दूंगा। तुमसे तो बात ही करना बेकार है। घर में इतना सब कुछ हो गया मगर इस को बस अपनी ही पड़ी है। इतने में तुली कुछ कहने को होती है कि सजल उस पर चिल्ला देता है।
घर के सभी लोग वहां आते है तो तुली से उसके ससुर पूछते है कि क्या हुआ तब वह सबके सामने अपनी बात रोते रोते रखती है– आप सबको लगता है कि मैंने बच्चा नहीं जना तो मैं किसी और के बच्चे को सम्भाल ही नहीं सकती है ना। आपको लगता है कि मेरे में ममता होगी ही नहीं। इतना ही नहीं आप लोग मुझे पुचकू को छूने तक नहीं देते। उसके पास भी जाती हूं तो बहाने से हटा देते है। एक महीने से यही सब तो हो रहा है। वहीं आप लोग कम चालाक नहीं है। लोगों को दिखाने के लिए दोनों बहुओं के साथ एक जैसा व्यवहार करने का नाटक करते है और घर में आपकी क्या असलियत है यह कोई नहीं जानता। मेरी जगह पायल होती तो क्या आप उसके साथ ऐसा करते नहीं ना। क्या में इस बच्चे की बड़ी मां नहीं हूं। क्यों मां आपने तो बड़े नाक ऊंची करके अस्पताल की नर्स को बता रही थी। ये है आपकी असलियत। सच में आप लोग सिर्फ दिखावा करना जानते है। पर एक बांझ में भी मां का दिल हो सकता है और उसके भी दुख होता है वो समझ में ही नहीं आता है आप लोगों को।
सभी तुली की बात सुनकर चुप खड़े थे। कोई भी कुछ नहीं कह पा रहा था। पायल के माता पिता भी अवाक थे।
डॉ मधुछंदा चक्रवर्ती
सरकारी प्रथम दर्जा कॉलेज के आर पूरम बेंगलुरु





















