प्रेरणा प्रतिवेदन शिलचर, 24 फरवरी: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग समिति की पहल पर, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज (MAKAIS), इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च (ICSSR), नई दिल्ली और ICSSR-NERC के सहयोग से असम विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग, पश्चिम बंगाल के काजी नजरुल इस्लाम विश्वविद्यालय और शिलचर के राधामाधव कॉलेज की सहभागिता में एक महत्वपूर्ण दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस संगोष्ठी का विषय “समकालीन विश्व में स्वामी विवेकानंद की भूमिका की पुनर्कल्पना: संघर्ष समाधान और शांति निर्माण का मार्ग” रखा गया है। 24 फरवरी को सुबह 10 बजे दीप प्रज्ज्वलन के साथ उद्घाटन समारोह हुआ।
उद्घाटन समारोह में विशिष्ट जनों की उपस्थिति
उद्घाटन सत्र में असम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनुप कुमार दे ने स्वागत भाषण दिया। इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. प्रजीत पालित, रायगंज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दीपक कुमार राय, असम विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. सौगत कुमार नाथ, काजी नजरुल इस्लाम विश्वविद्यालय के प्रो. सजल कुमार भट्टाचार्य, और विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रो. अशोक कुमार सेन (भौतिकी विभाग) ने अपने विचार रखे।
प्रेसिडेंशियल भाषण प्रो. दीपेंदु दास ने दिया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन असम विश्वविद्यालय के बंगाली विभाग के प्रो. बरूणज्योति चौधरी ने किया। उद्घाटन सत्र का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
संगोष्ठी में विचार-विमर्श के प्रमुख बिंदु
संगोष्ठी में कुल पाँच सत्र आयोजित हुए, जिनमें विभिन्न विद्वानों और विशेषज्ञों ने स्वामी विवेकानंद के विचारों को समकालीन संदर्भ में पुनर्परिभाषित किया:
- पहला सत्र: अध्यक्षता प्रो. सजल कुमार भट्टाचार्य ने की, जबकि बीज भाषण सिक्किम विश्वविद्यालय के इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. विनु पंत ने दिया।
- दूसरा सत्र: अध्यक्षता प्रो. विश्वतोष चौधरी (बंगाली विभाग, असम विश्वविद्यालय) ने की, जबकि मुख्य वक्ता इंग्लैंड-निवासी साहित्यकार नवकुमार बसु रहे।
- तीसरा सत्र: अध्यक्षता प्रो. विनु पंत ने की, वक्ता प्रो. सजल कुमार भट्टाचार्य और त्रिपुरा विश्वविद्यालय के प्रो. असीम गुप्ता थे।
- चौथा सत्र: अध्यक्षता रवींद्र भारती विश्वविद्यालय की प्रो. मुनमुन गांगोपाध्याय ने की, वक्ता प्रो. तपन मंडल और प्रो. दीपक कुमार राय रहे।
- पाँचवाँ सत्र: अध्यक्षता असम विश्वविद्यालय की प्रो. बेबी पुष्पा सिन्हा ने की, जबकि वक्ता प्रो. सौगत कुमार नाथ रहे।
स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं की प्रासंगिकता
संगोष्ठी में वक्ताओं ने जोर दिया कि स्वामी विवेकानंद केवल एक दार्शनिक या आध्यात्मिक गुरु ही नहीं थे, बल्कि वे एक महान समाज सुधारक भी थे। उनकी शिक्षाएँ आज भी समकालीन समाज पर गहरा प्रभाव डालती हैं।
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में उनके विचारों को अपनाने से संघर्ष समाधान और शांति स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान मिल सकता है। वे कहते थे, “ऐक्य और सहिष्णुता”, अर्थात् परस्पर सम्मान और प्रेम से ही किसी भी विवाद का समाधान संभव है।
आज जब दुनिया जातीय, धार्मिक और सांस्कृतिक विभाजन से जूझ रही है, तब विवेकानंद का संदेश हमें यह सिखाता है कि “मानवता ही सर्वोपरि है”। वे कहते थे, “जहाँ आध्यात्मिक शक्ति होगी, वहाँ शांति स्थापित होगी।”
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि केवल बाहरी शांति पर्याप्त नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक शांति भी आवश्यक है। उन्होंने कहा था, “शांति बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक होती है।” यानी शांति केवल राजनीतिक या सैन्य समाधान से नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर से उत्पन्न होनी चाहिए।
युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत
वक्ताओं ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएँ आज के युवाओं के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं। यदि युवा उनके विचारों से प्रेरित होकर परस्पर सम्मान और सद्भाव को अपनाएँ, तो समाज में संघर्ष समाधान और शांति स्थापना को बढ़ावा मिलेगा।
पर्यावरणीय संकट और वैश्विक चुनौतियों के इस दौर में, स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएँ हमें सहयोग, सहिष्णुता और आध्यात्मिकता के आधार पर एक शांतिपूर्ण समाज की दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देती हैं।
स्वामी विवेकानंद का जीवन और विचार हमें यही सिखाते हैं कि “सच्ची शांति तभी संभव है जब हम मानवता को केंद्र में रखते हुए परस्पर सम्मान और करुणा का भाव अपनाएँ।”
— प्रेरणा भारती दैनिक




















