प्रे.स. शिलचर, 26 फरवरी: आसाम विश्वविद्यालय के एनएसएस सेल के सहयोग से सेंटर फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम्स ने “भारतीय ज्ञान व्यवस्था: समसामयिक समय में अवसर और चुनौतियाँ” विषय पर एक सफल कार्यशाला का आयोजन किया।
कार्यशाला का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति, प्रो. अशोक सेन ने किया, क्योंकि कुलपति प्रो. राजीव मोहन पंत आधिकारिक कार्यों में व्यस्त थे। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. सेन ने भारत की विशाल बौद्धिक परंपरा, उसकी प्रासंगिकता और संभावनाओं पर विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा, शासन और सतत जीवनशैली सहित कई क्षेत्रों में समृद्ध परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती है। आधुनिक वैश्विक चुनौतियों के बीच इन पारंपरिक ज्ञान संरचनाओं को समकालीन विज्ञान से जोड़ने की आवश्यकता को भी उन्होंने रेखांकित किया।
प्रमुख अतिथियों की उपस्थिति
कार्यशाला में कई प्रतिष्ठित विद्वानों और विशेषज्ञों ने भाग लिया, जिनमें शामिल थे:
- डॉ. टोंकेश्वर नाथ (आसाम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट)
- श्री नरेश कुमार (इस्कॉन, गुवाहाटी)
- श्री शुभंकर साहा व श्री तुतुल दास (निरामया योग शिक्षा संस्थान, शिलचर)
- प्रो. सौगत नाथ (अध्यक्ष, अंग्रेज़ी विभाग, आसाम विश्वविद्यालय)
- श्री मोहन कानन (संस्कृत भारती संगठन, सचिव)
- प्रो. शांति पोखरेल (अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, आसाम विश्वविद्यालय)
कार्यशाला के प्रमुख विषय
कार्यशाला में भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) के विविध पहलुओं पर गहन चर्चा की गई। योग और ध्यान पर व्यावहारिक प्रदर्शन हुआ, जिसमें मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योग की महत्ता को दर्शाया गया। आधुनिक संदर्भ में IKS की भूमिका को स्पष्ट किया गया, खासकर खाद्य, स्वास्थ्य और सतत विकास से जुड़े विषयों पर चर्चा हुई।
पूर्वोत्तर भारत में भारतीय ज्ञान प्रणाली की संभावनाओं पर विशेष ध्यान दिया गया। इसके साथ ही सामाजिक विकास में संस्कृत भाषा और साहित्य की भूमिका को रेखांकित किया गया। कार्यशाला में प्रतिभागियों को IKS के आध्यात्मिक पहलुओं से भी अवगत कराया गया, जिससे समग्र स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन को बनाए रखने में इसकी उपयोगिता सिद्ध हो सके।
संस्कृति और स्वदेशी परंपराओं की झलक
कार्यशाला में शोधार्थियों, छात्रों और विशेषज्ञों को भारतीय पारंपरिक ज्ञान की समसामयिक प्रासंगिकता पर विचार-विमर्श करने का अवसर मिला। सांस्कृतिक सत्र के दौरान स्थानीय कलाकारों द्वारा योग प्रदर्शन किया गया, जिसने सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इसके अलावा, परिसर में विभिन्न स्वयं सहायता समूहों द्वारा हथकरघा उत्पादों, पारंपरिक व्यंजनों और स्थानीय रसोइयों के स्टॉल लगाए गए। इससे न केवल स्थानीय शिल्पकारों और उद्यमियों को प्रोत्साहन मिला, बल्कि भारतीय पारंपरिक जीवनशैली की समृद्धि भी प्रदर्शित हुई।
कार्यशाला के समापन अवसर पर आसाम विश्वविद्यालय के एनएसएस संयोजक एवं समाजकार्य विभाग के प्रो. एम. गंगाभूषण ने सभी प्रतिभागियों, आयोजकों और सहयोगियों को धन्यवाद दिया। कार्यशाला का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
सारांश
इस कार्यशाला ने भारतीय ज्ञान प्रणाली के विविध पहलुओं को गहराई से समझने और आधुनिक समाज में इसकी प्रासंगिकता को नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर प्रदान किया। प्रतिभागियों ने इसे ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक अनुभव बताया।





















