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आपणों मारवाड़ी समाज अर मिलतारुपणो. — (लीकलकोटिया नं.5)

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मिलतारुपणों सीखो,भोत जरुरी है.
आपां न भगवान् मिनख जिनम दियो है,सगला जीवां मांय श्रेष्ठ, पण यदि मिलतारुपणों कोनी तो आपणी श्रेष्ठता चली जावे टीबड़ां पर ढ़ांडा चराणे अर धरी रह जाय पोठां की जिंया आपणी मिनखां जूण.
म्हारो बोलणे को मितलब है सिंगला मं प्रेम,भाई चारो,समझ बूझ,समन्वय चाहिए आपां न सगला मं.
भाईयों मं भी आज अस्सी क नेड़े आग्यो अर सेंचुरी कानी जार्यों हूं .मेरो जिनम अठे आसाम मं होयो,पल्यों,पढ़्यो,बड़ो होयो.
मेरा बापूजी, दादोजी अठे जिन्म्या अठे ही मर गया,बूढ़ा दादोजी भी अठेही शांत होया,जिनम को मने बेरों कोनी,हां बूढ़ी दादी जी को शरीर अठे ही शांत होयो थो.म्हारा बेटा पोता भी अठे ही जिन्म्या है, बोलणे रो मतलब म्हारो परिवार सैंकड़ा बरसा सूं अठे आसाम मं ही है.
पण यदि परिवार का सदस्य अठे का आदि लोगां सूं मेल जोल नहीं राखे,अठे की सामाजिकता अर संस्कृति सूं नहीं जुड़े तो बे लोग आपांने आपका कियां समझेगा.कदे सोचणे की,समझणे की चेष्टा करां हां के.यदि नहीं तो फेरु आपां अठेका होकर के होसी?के सोचो हो ? नहीं ,फुर्सत किने है?तो फेर थे इण लोगां का आपका कोनी बण सको,पराया ही रहस्यो.
पहली टाबरपणे मं खेलता,कोई का घर मं चल्या जाता,कठेई खा लेता,सबसे एक रिश्तों हो,कोई गोगोई कका, सैकियाणी
आयता,भट्ट अंकल,बोरा खूड़ी, सीताराम चाचा आदि का घर आपका सा  होता था और आपणों घर सिंगला टाबरां को.पर आज ?सब बदलग्या.क्यूं?आपका बड़का मेल जोल राखता पण आपां?आज यो मिलतारुपणो खो चूक्या,जद ही भुगतां हां.
आज आपणे मं कित्ता लोग नामघर जावे है,कित्ता बिहू नाच जाणे हैं, कित्ता डांगरीया थान जावे है,बस गावां मं रहे जिका तो फेरूं भी सबकुछ थोड़ा बेसी जाणे हैं पण शहरां मं रहवे है जिका भगवान् ही जाणे.मिलतारुपणें को नाम ही कोनी जाणे,बस जाणे हैं तो…बस एक ही मंत्र…
      टका माता टका भ्राता
      टका ही सर्व देवता.
जणां ही भोगे है भोगणो,अर अवहेलित होवे,कारण मिलतारुपणो कोनी रह्यो.
बस हम जां लुटाते हैं खनकते सिक्कों पर. थारे कने काकोजी है तो थारे सूं सगला मिलतारु है अर काकोजी कोनी तो……तो थे गया बिता हो.
आज ही नहीं,हमेशा सूं ,अर आगीने भी, मिलतारुपणो ही जरुरी है,कित्ता भी सम्मेलन करल्यो,मिलतारुपणो नहीं है तो कुछ भी नहीं है.लोगां को दुख दर्द,हर्ष,विषाद,खुशी महसूस करो, सामिल होवो जद ही आपका सा लागस्यो वरना बाहरी यानि बहिरागत तो थे हो ही,दिल पर हाथ रखकर सोचो. आपको बणनो बणाणो सीखो,मिलतारुपणो सीखो,जिको ही तो जरुरी है.
मं जानूं हूं कि थाने मेरे उपर झाल आ रही है पण मन की बात खड़ंखस लिख्यो हूं कि मिलतारुपणो सीखो.
मुरारी केडिया 9435033060.

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