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भारतीय इतिहास उन असाधारण महिलाओं से समृद्ध है, जिन्होंने ज्ञान आधारित समाज के निर्माण, राष्ट्र की रक्षा और सामाजिक परिवर्तन के मार्ग को प्रशस्त किया। वैदिक युग की परम ग्यानी दार्शनिक महिलाओं से लेकर आधुनिक युग में प्रशासन, विज्ञान और रक्षा क्षेत्रों में नेतृत्व करने वाली महिलाएँ निरंतर प्रतिकूलताओं को पार कर समाज को आगे बढ़ाती रही हैं। उनकी कहानियाँ केवल इतिहास का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि साहस, दृढ़ संकल्प और समर्पण का अद्वितीय पाठ हैं।
प्राचीन भारत में महिलाओं ने विज्ञान, गणित और दर्शन के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। गार्गी और मैत्रेयी ने वेदांत के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया, लीलावती और खना ने गणित और ज्योतिष में अपना लोहा मनवाया, और अत्रेयी व प्रज्ञावती जैसी विदुषियों ने शिक्षा और अनुसंधान को आगे बढ़ाया। यह स्पष्ट करता है कि भारत का बौद्धिक और वैज्ञानिक इतिहास केवल पुरुषों तक सीमित नहीं था, बल्कि महिलाओं ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
जब विश्व में समानता की चर्चा तो दूर कहीं कहीं सभ्यता भी नहीं थी, तब भारतीय सभ्यता ने महिलाओं को शिक्षा और ज्ञान प्राप्त करने के अवसर दिए।
शास्त्रों में कहा गया है:
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥”(मनुस्मृति 3.56)
अर्थ:”जहाँ महिलाओं का सम्मान किया जाता है, वहाँ देवता प्रसन्न होते हैं। जहाँ उनका सम्मान नहीं किया जाता, वहाँ सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं।”
यह श्लोक समाज में महिलाओं के सम्मान और गरिमा के महत्व को दर्शाता है। वैदिक समाज में महिलाओं की स्थिति ऊँची थी और उन्हें सम्मान देना धार्मिक और सामाजिक कल्याण के लिए आवश्यक माना जाता था। केवल भारतीय ग्रंथों में ही ईश्वर अर्धनारीश्वर रूप में प्रतिष्ठित हैं, जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।
गार्गी वाचकनवी और मैत्रेयी प्राचीन भारत की प्रमुख महिला दार्शनिकों में थीं। गार्गी ने महान ऋषियों के साथ आत्मा और ब्रह्म के स्वरूप पर विचार-विमर्श किया, जिसका उल्लेख बृहदारण्यक उपनिषद में मिलता है। वहीं, मैत्रेयी ने ज्ञान की सर्वोच्चता को स्पष्ट किया और सिद्ध किया कि वास्तविक शक्ति विद्या में निहित है। वैदिक युग से ही इन महिलाओं के विचारों ने भारतीय समाज में ज्ञान प्राप्ति के मार्ग को प्रशस्त किया।
जब भारत विदेशी आक्रमणकारियों के अत्याचारों और आंतरिक संघर्षों का सामना कर रहा था, तब महिलाओं ने भी शस्त्र उठाकर यह सिद्ध कर दिया कि साहस का कोई लिंग नहीं होता।
1303 ईस्वी में, अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ आक्रमण के समय, रानी पद्मिनी और हजारों राजपूत महिलाओं ने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर (आत्माहुति) किया। यह आत्मबलिदान आज भी गौरव और आत्मसम्मान का प्रतीक बना हुआ है।
16वीं शताब्दी में, रानी दुर्गावती ने मुगल सम्राट अकबर के विरुद्ध युद्ध का नेतृत्व किया। उन्होंने वीरगति को स्वीकार किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी।
18वीं शताब्दी में, महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने न केवल युद्ध में बल्कि शासन में भी अपनी अद्वितीय योग्यता सिद्ध की। उनके शासनकाल में कई मंदिर, धर्मशालाएँ और जनसेवा परियोजनाएँ विकसित हुईं।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध का नेतृत्व किया और अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी वीरता की प्रशंसा स्वयं अंग्रेज सेनापति ह्यू रोज़ ने की थी।
1824 में, कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया, जो आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरणा बना।
महिलाएँ केवल योद्धा नहीं, वे भविष्य की निर्मात्री भी थीं
छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई ने उन्हें न्याय, कूटनीति और स्वराज की शिक्षा दी। उनके आदर्शों ने मराठा साम्राज्य की नींव रखी।
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास “देवी चौधरानी” की नायिका ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का प्रतीक थी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की “आजाद हिंद फौज” में कैप्टन लक्ष्मी सहगल रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट की कमांडर थीं।
प्रीतिलता वाडेेदार (1932) पहली भारतीय महिला शहीद क्रांतिकारी थीं, जिन्होंने यूरोपियन क्लब पर हमले के बाद साइनाइड खाकर आत्मबलिदान किया।
मातंगिनी हाजरा (1942) स्वतंत्रता संग्राम में “वंदे मातरम्” का उद्घोष करते हुए अंग्रेजों की गोली से शहीद हुईं।
कनकलता बरुआ (1942) असम में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में शहीद हुईं।
1848 में, सावित्रीबाई फुले ने भारत का पहला बालिका विद्यालय खोला, जिससे महिलाओं की शिक्षा का मार्ग प्रशस्त हुआ।
कादंबिनी गांगुली भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं।
भगीनी निवेदिता ने भारतीय समाज और शिक्षा सुधार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
स्वतंत्र भारत में महिलाओं की सफलता
भारतीय महिलाएँ राजनीति, विज्ञान, खेल और कॉर्पोरेट जगत में निरंतर सफल हो रही हैं।
राजनीति में, द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनीं। विज्ञान में, डॉ. टेसी थॉमस को “मिसाइल वुमन ऑफ इंडिया” कहा जाता है।रितु करिधाल ,इसरो (ISRO) में “मंगलयान” मिशन की प्रमुख वैज्ञानिक, जिन्हें “रॉकेट वुमन ऑफ इंडिया” कहा जाता है।
नंदिनी हरिनाथ ,इसरो की वरिष्ठ वैज्ञानिक, जिन्होंने “मार्स ऑर्बिटर मिशन” में अहम भूमिका निभाई।
खेल में, मैरी कॉम, मिताली राज, पी. वी. सिंधु और सायना नेहवाल ने भारत का नाम रोशन किया।
व्यवसाय में, किरण मजूमदार शॉ (बायोकॉन की संस्थापक) और इंद्रात नूयी (पूर्व CEO, पेप्सिको) ने वैश्विक सफलता हासिल की।
रक्षा क्षेत्र में, भावना कंठ, अवनी चतुर्वेदी भारत की पहली पंक्ति के महिला फाइटर पायलट, जिन्होंने लड़ाकू विमान उड़ाने का गौरव प्राप्त किया।
एक तरफ समाज के जड़ों तक,पर्दा, दहेज , भ्रुण हत्या जैसे जघन्यता पहुंची है वहीं समय के साथ साथ सरकारों ने भी महिला सशक्तिकरण के दिशा में समय समय पर कई कदम उठाए हैं ৷
1. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 इस अधिनियम के माध्यम से हिंदू महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार प्रदान किया गया।
2. महिलाओं के लिए समान वेतन अधिनियम, 1976 यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि महिलाओं और पुरुषों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए।
3. महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा रोकथाम अधिनियम, 2005
घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के लिए यह विशेष कानून बनाया गया।
4. महिलाओं के लिए 50% पंचायत आरक्षण, 2009
ग्रामीण स्थानीय शासन (पंचायत) में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को 33% से बढ़ाकर 50% कर दिया गया।
5. मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017
कार्यरत महिलाओं की मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दी गई।
6. महिला उद्यमिता मंच, 2018महिलाओं को स्टार्टअप और व्यावसायिक उद्यमों में प्रोत्साहित करने के लिए नीति आयोग ने इसे शुरू किया।
7. महिलाओं के लिए 33% आरक्षण विधेयक (महिला आरक्षण विधेयक), 2023 यह विधेयक संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण सुनिश्चित करता है।
इनके उपरांत कुछ ही दिनों प्रारम्भ किया गया बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (2015) ,महिला आरक्षण विधेयक (2023) – लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण, मातृत्व लाभ अधिनियम (2017) – मातृत्व अवकाश को 12 से बढ़ाकर 26 सप्ताह किया गया,महिला उद्यमिता मंच (2018) – महिला उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए नीति आयोग द्वारा स्थापित।यह सभी बदलति समाज की सूचक हैं৷
भारतीय महिलाओं ने अपने साहस, धैर्य, ज्ञान और नेतृत्व क्षमता से समाज को आगे बढ़ाया है। गर्गी-मैत्रेयी से लेकर टेसी थॉमस, द्रौपदी मुर्मू और मैरी कॉम तक, महिलाओं ने यह साबित किया है कि वे केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे राष्ट्र की शक्ति हैं। उनका बलिदान, संघर्ष और सफलता केवल इतिहास के पन्नों में बंद रहने के लिए नहीं हैं, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे। महिला सशक्तिकरण केवल एक नीति नहीं, बल्कि समाज के विकास और राष्ट्र की प्रगति की अनिवार्य शर्त है। भारतीय महिलाएँ भविष्य में भी अपनी प्रतिभा, परिश्रम और नेतृत्व से नई ऊँचाइयों को छूएंगी।
प्राचीन भारत में महिलाओं ने विज्ञान, गणित और दर्शन के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। गार्गी और मैत्रेयी ने वेदांत के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया, लीलावती और खना ने गणित और ज्योतिष में अपना लोहा मनवाया, और अत्रेयी व प्रज्ञावती जैसी विदुषियों ने शिक्षा और अनुसंधान को आगे बढ़ाया। यह स्पष्ट करता है कि भारत का बौद्धिक और वैज्ञानिक इतिहास केवल पुरुषों तक सीमित नहीं था, बल्कि महिलाओं ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारतीय महिलाएँ इतिहास से लेकर वर्तमान तक हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं। वे ज्ञान की निर्मात्री, राष्ट्र की रक्षक और सामाजिक परिवर्तन की वाहक हैं। आज की महिलाएँ विज्ञान, खेल, राजनीति, प्रशासन और उद्यमिता में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही महिला सशक्तिकरण योजनाएँ और समाज की बदलती मानसिकता इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत हैं।
“नारी शक्ति केवल शब्द नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की वास्तविक शक्ति है।”भारतीय महिलाओं के साहस, संघर्ष और सफलता को कोटि नमन!





















