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बनारस जाने के लिए 27 जनवरी को चौरीचौरा से रिजर्वेशन करवाया था.. RAC 78 मिला था। सोचा कंफर्म नही होगा तो by road निकल जाऊंगा लेकिन शाम होते होते कनफर्म हो गया।
ऊपर की सीट मिली थी। ट्रेन चलते ही झपकी आ गई। साढ़े बारह बजे देवरिया पहुंची तो अचानक एक हंगामा सुनकर नींद खुल गई। एक सज्जन हर शख्स को उठाकर पूछ रहे थे – “ये B 30 है क्या? ऐसा लगा जैसे गब्बर पूछ रहा हो – होली कब है? कब है होली??”
पचास के आसपास उम्र रही होगी और शराब के नशे में डगमग लग रहे थे। उनके साथ बीस इक्कीस साल की एक लड़की थी। कंपार्टमेंट में रोशनी कम थी लेकिन साये दिखाई दे रहे थे।
मैंने उनसे पूछा ‘मेरा है B 30, बताइए आपको क्या कष्ट है?’
उन्होंने कहा – “उतरिए, ये सीट मेरी बच्ची की है।”
मैंने फोन ऑन किया और दोबारा मेसेज देखकर पुष्टि की। मेरी सीट कंफर्म थी।
मैंने उनसे बताया तो उन्होंने अपनी बिटिया से कहा – ‘ दिखाओ इनको बेटा!’ …. ठीक वैसे ही जैसे कृष्ण ने जयद्रथ के वध के समय अर्जुन से कहा था – ‘पार्थ वो देखो, सूर्य देवता जी अभी डूबे नहीं है। उठाओ गांडीव!’
बिटिया ने गांडीव … अर्थात मोबाइल निकाला और टिकट का स्क्रीन शॉट निकालकर ऊपर करना शुरू किया। ऊपर सीट पर बैठे मुझे अंधेरे में अपनी तरफ लपकती मोबाइल स्क्रीन शोले बरसाती गोली की तरह दिख रही थी। मैंने धुंधली आंखों से देखा – 27 जनवरी B-30 … इसके बाद मेरी आंखें कुछ और देखने योग्य न बची थीं।
मैंने थूक निगलते हुए कहा – “ऐसा कैसे हो सकता है? रेलवे ऐसा कैसे कर सकता है?? आप जाइए टीटीई से बात कीजिए।”
तबतक ट्रेन ने सीटी दे दी। लड़की ने कहा – “पापा आप जाइए, मैं टीटी से बात करती हूं।”
अबतक गरज रहे उस भीमकाय व्यक्ति की आवाज अचानक बहुत दयनीय हो गई। वो बोला – ‘ऐसे कैसे चले जाएं बेटा? तुम जाओगी कैसे??’
नींद की खुमारी और इस व्यवधान से तिलमिलाया मैं तुरंत सजग हुआ। पिता की बेबसी ने मुझे झकझोर दिया। मैंने मधुर स्वर में कहा – “आप जाइए। मैं अपनी सीट छोड़ देता हूं, बच्ची आराम से जायेगी। निश्चिंत रहिए। “
उन्होंने मुझसे कंफरमेशन लिया – पक्का न!
मैने कहा – पक्का।
और वह झट से कांपर्टमेंट से बाहर निकल गए।
चूंकि उन्होंने कंपार्टमेंट के सभी यात्रियों को जगा दिया था। इसलिए सब मिलकर रेलवे को कोसने लगे। मैं सीट से नीचे उतर आया और खाली साइड लोअर पर अपना सामान रख दिया। कंपार्टमेंट के एक सजग सज्जन ने पंच की भूमिका स्वीकार करते हुए कहा – आप लोग अपना अपना pnr number बताइए। कोई टीटी को बुलाकर लाओ।
मैंने लड़की से कहा – बहिनी अपना टिकट फिर से दिखाओ। उसने दिखाया तो वहां 27 जनवरी 2024 को 0:30 मिनट लिखा था। मैंने पंच परमेश्वर को रोका और लड़की से कहा – बहिनी तुम्हारी ट्रेन कल की थी। आज 28 जनवरी है। तुम बिना टिकट यात्रा कर रही हो। चुपचाप सो जाओ।
वो एकदम से शांत हो गई और अपने पिता को फोन मिलाने लगी। मैंने उसके पिता को आश्वस्त करके भेजा था इसलिए जिम्मेदारी के अहसास से दबा हुआ था। वह अपने पिता से आशंका व्यक्त कर रही थी कि कहीं उसका चालान न हो जाए! मैंने उससे कहा – सो जाओ, कोई बात होगी तो मैं देख लूंगा।
इस तरह से मेरे कष्टमय चार घंटों के सफर की शुरुआत हुई। जब कोई स्टेशन आता तो मैं जिस खाली सीट पर बैठा हुआ रहता, उसी का असली मालिक चढ़ता था और निर्ममता से मुझे किसी और सीट पर भगा देता था। बनारस पहुंचने पर मैंने लड़की का चेहरा देखा। वह खूब आराम से सोते हुए आई थी। हालांकि उसने मुझसे शुक्रिया अदा करना भी जरूरी नहीं समझा।
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अतुल शुक्ल