नई दिल्ली: भारत एक बहुभाषी देश है, जहां सैकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं। भाषाई विविधता देश की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती है, लेकिन कई भाषाओं को अब भी आधिकारिक मान्यता नहीं मिली है। इसी संदर्भ में हाल ही में बिष्णुप्रिया मणिपुरी, दिमासा, हिंदी और संस्कृत भाषाओं को संबद्ध आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की मांग जोर पकड़ रही है।
जिसको न निज भाषा तथा निज देश का अभिमान है,
वह नर नहीं पशु निरा है और मृतक समान है।।
मांग का आधार
समाज के विभिन्न वर्गों और भाषा प्रेमियों का कहना है कि इन भाषाओं को संबद्ध आधिकारिक भाषा का दर्जा मिलना चाहिए ताकि उनका संरक्षण और संवर्धन सुनिश्चित किया जा सके।
- बिष्णुप्रिया मणिपुरी: यह भाषा पूर्वोत्तर भारत के त्रिपुरा, असम और मणिपुर राज्यों में बोली जाती है। इसके संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया जाना आवश्यक है।
- दिमासा: यह असम और नागालैंड के दिमासा समुदाय द्वारा बोली जाने वाली एक प्राचीन भाषा है। इसके संरक्षण की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है।
- हिंदी: राष्ट्रीय भाषा होने के बावजूद, कई राज्यों में हिंदी को अपेक्षित आधिकारिक मान्यता नहीं मिली है। इसे संबद्ध आधिकारिक भाषा बनाने से देश की एकता और संप्रेषण की प्रक्रिया मजबूत होगी।
- संस्कृत: भारतीय संस्कृति और परंपरा की मूल भाषा होने के बावजूद संस्कृत का उपयोग सीमित होता जा रहा है। इसे संबद्ध आधिकारिक भाषा का दर्जा देने से शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन और प्रचार आसान होगा।
बोलि हमारी हमहिं को दीन्हि,
जो सतभाव न भाष सम कीन्हि।।
राजनीतिक और सामाजिक समर्थन
इस मांग को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों, समाजसेवियों और भाषाई संगठनों ने समर्थन दिया है। कई संगठनों ने भारत सरकार से अपील की है कि इन भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल कर संबद्ध आधिकारिक भाषा का दर्जा प्रदान किया जाए।
सरकार की प्रतिक्रिया
भारत सरकार ने अब तक इस विषय पर औपचारिक निर्णय नहीं लिया है, लेकिन भाषा संरक्षण और संवर्धन के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
निष्कर्ष
भाषाएं केवल संचार का माध्यम नहीं होतीं, बल्कि वे एक समुदाय की संस्कृति, पहचान और इतिहास का प्रतिनिधित्व करती हैं। बिष्णुप्रिया मणिपुरी, दिमासा, हिंदी और संस्कृत को संबद्ध आधिकारिक भाषा का दर्जा देने से भारत की भाषाई विरासत और अधिक सशक्त होगी। अब देखना यह है कि सरकार इस महत्वपूर्ण मांग पर कब और क्या निर्णय लेती है।
यहाँ इस विषय से जुड़े कुछ सुंदर दोहे दिए गए हैं:
1. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।।
2. भाषा होती मूल जड़, संस्कृति का उत्थान।
जो इसको विस्मृत करे, वह नर नहीं समान।।
3. संस्कृत, हिंदी, दिमासा, बिष्णुप्रिया मान।
सब भाषा की गरिमा से, भारत बने महान।।
4. जो अपनी भाषा तजे, निज संस्कृति बिसराय।
वह मानवता के लिए, संकट ही बन जाय।।
5. मातृभाषा जो भुला, वह खो बैठे ज्ञान।
उसका जीवन शुष्क है, जैसे जल बिन धान।।





















