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क्या कृत्रिम तकनीक की आसान उपलब्धता से शिक्षा का भविष्य खतरे में है? – राजू दास

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वर्तमान विश्व में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence – AI) तीव्र गति से आगे बढ़ रही है। यह हमारे जीवन को अधिक सरल बना रही है, समय और मेहनत की बचत कर रही है, और जटिल तथा विश्लेषणात्मक कार्यों को भी सहजता से पूरा कर रही है। लेकिन इस तकनीकी प्रगति के पीछे एक महत्वपूर्ण प्रश्न छिपा है—क्या इससे शिक्षा के प्रति लोगों की रुचि धीरे-धीरे कम होती जा रही है?

AI की मदद से अब किसी भी प्रश्न का उत्तर तुरंत मिल जाता है। निबंध या शोध-पत्र तक तैयार किया जा सकता है। इसके कारण छात्रों की स्वयं सोचने, अनुसंधान करने और विश्लेषण करने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो रही है। आज बहुत से छात्र किताबों में डूबना नहीं चाहते, जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा खत्म हो रही है, और गहराई से सोचने की प्रवृत्ति भी कमजोर पड़ती जा रही है।

पहले किसी रचना या निबंध को लिखने के लिए छात्रों को सोचना पड़ता था, विभिन्न ग्रंथों और स्रोतों से जानकारी इकट्ठा करनी पड़ती थी। लेकिन आज एक क्लिक पर AI सारी सामग्री तैयार कर देता है। यदि यह सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो भविष्य में छात्र केवल डिग्रीधारी बनेंगे, लेकिन वास्तविक जीवन की जटिल समस्याओं को हल करने में सक्षम नहीं हो पाएंगे।

इसके अलावा, AI पर अत्यधिक निर्भरता छात्रों की रचनात्मकता, विश्लेषणात्मक सोच और कठिन परिश्रम की मानसिकता को भी बाधित कर रही है। वे परीक्षा में अच्छे अंक तो ला सकते हैं, लेकिन क्या जीवन की असली परीक्षा में वे स्वयं को साबित कर पाएंगे? यह प्रश्न आज के समय में अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है।

हालांकि, यह कहना भी उचित नहीं होगा कि AI पूरी तरह से नकारात्मक है। यदि इसका सही और नियंत्रित तरीके से उपयोग किया जाए, तो यह शिक्षा में सहायक की भूमिका निभा सकता है। नवोन्मेषी शिक्षण पद्धतियाँ, संतुलित तकनीकी उपयोग और नैतिक शिक्षा के साथ AI एक शक्तिशाली साथी बन सकता है—परन्तु विकल्प नहीं।

यदि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल संतुलित और विवेकपूर्ण ढंग से किया जाए, तो यह शिक्षा का एक सशक्त माध्यम बन सकता है। लेकिन अगर यह मूल ज्ञान प्राप्ति का विकल्प बन गया, तो आने वाला समय शिक्षा के लिए एक गंभीर संकट का संकेत दे सकता है।

आज हमारी सबसे बड़ी जरूरत है शिक्षा में संतुलन बनाए रखना—जहां तकनीक एक सहायक हो, और चिंतन व अनुसंधान शिक्षा की मूल प्रेरक शक्ति।

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