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भारत में घटी गरीबी : गरीबों की संख्या घटकर 2.3% पर पहुंची, 17.1 करोड़ लोग बाहर आए

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नई दिल्ली. गरीबी उन्मूलन के मोर्चे पर भारत ने ऐतिहासिक सफलता हासिल की है. विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश में अत्यंत गरीबी की दर 2011-12 में 16 प्रतिशत थी, जो अब घटकर मात्र 2.3 प्रतिशत रह गई है. इस दौरान 17.1 करोड़ लोग अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं. विश्व बैंक ने 2.15 डॉलर प्रतिदिन क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के आधार पर अत्यंत गरीबी का आकलन किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक दशक में भारत ने गरीबी घटाने में उल्लेखनीय प्रगति की है.

रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण भारत में अत्यंत गरीबी 18.4 प्रतिशत से गिरकर 2.8 प्रतिशत रह गई है, जबकि शहरी भारत में यह 10.7 प्रतिशत से घटकर 1.1 प्रतिशत पर आ गई है. इससे ग्रामीण और शहरी इलाकों के बीच गरीबी का अंतर भी 7.7 प्रतिशत से घटकर सिर्फ 1.7 प्रतिशत रह गया है, जो कि वार्षिक आधार पर 16 प्रतिशत की गिरावट दर्शाता है. निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) के 3.65 डॉलर प्रतिदिन के गरीबी मापदंड पर भारत ने और भी शानदार प्रदर्शन किया है. इस आधार पर गरीबी दर 61.8त्न से घटकर 28.1 प्रतिशत हो गई है, जिससे 37.8 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं.

निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) के 3.65 डॉलर प्रतिदिन के गरीबी मापदंड पर भारत ने और भी शानदार प्रदर्शन किया है. इस आधार पर गरीबी दर 61.8 प्रतिशतसे घटकर 28.1 प्रतिशत हो गई है, जिससे 37.8 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में एलएमआईसी गरीबी 69 प्रतिशत से गिरकर 32.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 43.5 प्रतिशत से घटकर 17.2 प्रतिशत रह गई है. ग्रामीण-शहरी अंतर भी 25 प्रतिशत से घटकर 15 प्रतिशत पर आ गया है. विश्व बैंक के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के अनुसार, भारत में गैर-मौद्रिक गरीबी 2005-06 में 53.8 प्रतिशत थी, जो 2019-21 में 16.4 प्रतिशत और 2022-23 में घटकर 15.5 प्रतिशत रह गई है.

पूर्व योजना आयोग सचिव एनसी सक्सेना ने कहा कि उपभोग आंकड़ों की तुलना अब कठिन हो गई है, क्योंकि गणना पद्धति में बदलाव हुआ है. उन्होंने स्वतंत्र स्रोतों जैसे जनगणना और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी. विश्व बैंक ने माना कि 2022-23 के पारिवारिक उपभोग सर्वेक्षण में प्रश्नावली निर्माण, सर्वेक्षण कार्यान्वयन और नमूनाकरण में सुधार हुए हैं, जिससे गुणवत्ता बढ़ी है, लेकिन समय के साथ तुलनात्मकता में चुनौतियां भी बनी हुई हैं.

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