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शिक्षित समाज में पाकिस्तान समर्थक विचार! अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या देशविरोधिता? — राजु दास

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शिक्षित समाज में पाकिस्तान समर्थक विचार! अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या देशविरोधिता?
पिछले कुछ दिनों से देशभर में एक के बाद एक पुलिस कार्रवाई के तहत ऐसे कुछ व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है, जिन्होंने सोशल मीडिया पर खुलेआम पाकिस्तान के समर्थन में बयान दिया है या भारत के खिलाफ नफरत फैलाई है। इसमें असम भी पीछे नहीं है। हैरानी की बात यह है कि गिरफ्तार किए गए लोगों में बराक घाटी यानी सिलचर शहर के वकील, एक दैनिक समाचार पत्र से जुड़े पत्रकार, और यहां तक कि विश्वविद्यालय के छात्र भी शामिल हैं। सवाल उठता है—क्या ये केवल सरकार के आलोचक हैं, या फिर देश के खिलाफ ही काम कर रहे हैं?
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां सरकार की आलोचना करना नागरिकों का अधिकार है। कोई वर्तमान सरकार की नीतियों से असहमत हो सकता है। कृषि कानूनों से लेकर नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) तक अनेक मुद्दों पर लोगों ने विरोध किया, सड़कों पर उतरे, और यह पूरी तरह से वैध था।
लेकिन अब देखा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुई अमानवीय घटना के बाद या फिर सीमाओं पर सेना की आतंकवाद विरोधी कार्रवाई को लेकर कुछ वर्ग सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के पक्ष में बोल रहे हैं। वे कभी मानवाधिकार का बहाना लेकर, तो कभी अल्पसंख्यकों पर तथाकथित ‘अत्याचार’ की कहानी कहकर भारत की छवि धूमिल करने का प्रयास कर रहे हैं।
कुछ लोग इस तरह की आलोचनात्मक भाषा के आड़ में देश की संप्रभुता, सेना के सम्मान और राष्ट्रीय गौरव पर ही सवाल खड़ा कर रहे हैं। “पाकिस्तान जिंदाबाद” जैसे नारे, या देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं बल्कि प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रविरोध है।
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि कुछ तथाकथित “एक्टिविस्ट” वास्तव में एक प्रकार के सूचना युद्ध में शामिल हैं, जिनका उद्देश्य भारत के अंदर विभाजन और अविश्वास फैलाना है।
जब कोई इन्हें सवाल करता है, तो ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देते हैं। लेकिन इस आज़ादी की आड़ में ये निरंतर सोशल मीडिया पर राष्ट्र के खिलाफ जहर उगलते हैं।
भारत में संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया है, लेकिन यह असीमित नहीं है। राष्ट्र की सुरक्षा, संप्रभुता और सामाजिक अनुशासन के हित में इस अधिकार पर मर्यादा आवश्यक है।
इन सबके बीच सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि समाज जिनसे मार्गदर्शन की उम्मीद करता है—वही शिक्षित वर्ग का एक हिस्सा अब राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्त पाया जा रहा है। जो लोग कानून पढ़ते हैं, समाज को समझते हैं, पत्रकारिता जैसे जिम्मेदार पेशे से जुड़े हैं—अगर वे ही देश के खिलाफ जहर उगलते हैं, तो यह केवल गैरकानूनी ही नहीं बल्कि नैतिक रूप से भी दुर्भाग्यपूर्ण है।
हमें हमेशा याद रखना चाहिए: सरकारें बदलती हैं, लेकिन देश नहीं। सरकार की आलोचना लोकतंत्र की खूबसूरती है, लेकिन राष्ट्र का अपमान कभी भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं हो सकता। आज के युवाओं और हम सभी को यह समझना होगा कि देशभक्ति कोई कट्टरता नहीं, बल्कि जिम्मेदार नागरिकता का प्रमाण है। स्वतंत्रता हमारा अधिकार है, लेकिन अगर उसके उपयोग से ही स्वतंत्र देश खतरे में पड़ जाए—तो उस स्वतंत्रता की कीमत कौन चुकाएगा?
राजु दास।

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