बांग्लादेश में राजद्रोह के एक मामले में गिरफ्तार किए गए अल्पसंख्यक संन्यासी और इस्कॉन के पूर्व नेता चिन्मयकृष्ण दास को आखिरकार पांच महीने बाद जमानत मिल गई है। बुधवार को ढाका हाई कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका स्वीकार कर ली, जिससे उनकी शीघ्र रिहाई की संभावना बढ़ गई है।
चिन्मयकृष्ण दास को 25 नवंबर 2023 को चटगांव में राष्ट्रीय ध्वज के कथित अपमान के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उनके खिलाफ बांग्लादेश के राजद्रोह कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था और तभी से वह जेल में बंद थे।
उनके अधिवक्ता प्रह्लाद देवनाथ ने बांग्लादेशी समाचार पत्र डेली स्टार को बताया कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद रिहाई की संभावना प्रबल हुई है, लेकिन यदि सुप्रीम कोर्ट इस आदेश पर स्थगन लगा देता है, तो फिलहाल उनकी रिहाई संभव नहीं होगी।
जमानत याचिका पर सुनवाई बुधवार को हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति आतोआर रहमान खान और न्यायमूर्ति अली रेजा की संयुक्त पीठ के समक्ष हुई। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने जमानत मंजूर कर ली।
इससे पहले, 4 फरवरी 2024 को अदालत ने सरकार से जवाब तलब करते हुए पूछा था कि चिन्मयकृष्ण दास को जमानत क्यों नहीं दी जानी चाहिए। इस पर सुनवाई 23 अप्रैल को निर्धारित थी, जिसे बाद में 30 अप्रैल तक के लिए टाल दिया गया।
चिन्मयकृष्ण दास की बार-बार जमानत याचिका खारिज होने से चटगांव अदालत परिसर में तनाव व्याप्त हो गया था। उस दौरान हुई झड़प में एक व्यक्ति की मृत्यु की खबर भी सामने आई थी। इसके अलावा, उनके वकीलों को धमकी दिए जाने के भी आरोप लगे थे।
पिछले वर्ष बांग्लादेश की राजनीतिक सत्ता में बदलाव आया था, जब प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को हटाकर नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया। हालांकि, नई सरकार के आने के बाद भी अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के आरोप थमे नहीं। चिन्मयकृष्ण की गिरफ्तारी ने इस आक्रोश को और भड़का दिया।
उनकी रिहाई की मांग को लेकर देशभर में अल्पसंख्यक समुदाय में व्यापक रोष और विरोध प्रदर्शन हुए। अंततः, पांच महीने के लंबे इंतजार के बाद उनके समर्थकों और मानवाधिकार संगठनों के लिए राहत की खबर आई—चिन्मयकृष्ण दास को जमानत मिल गई है।





















