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लगे कितना मनमोहक ये नद़ी का तट..!
बैठू मैं जरा इत्मीनान से
करू मैं बाते लतांत से
ये बहती हवाओं शीतल
देने लगी हैं सुकून…
ये नज़ारे, ये हरियालियाँ
बुझाने लगी हैं पहेलियाँ
आसमानो में छायी ये काली घटाँ
बरसा रहीं हैं हल्की सी वर्षा
ये पेड़ की छाया देने लगी हैं
मौन की माया….
ये चारों तरफ चिड़ियो की चहक
मानो जैसे मधुर वाणी की महक
ये सौंधी सी मिट्टी की खुशबू
ये पानी में चम़क रहे जलचर
ये नन्हें से पौधे खिल रहे हैं हँसकर..
ये नद़ी का तट, करा रहीं हैं
नन्दनवन से भेंट
कैसे मैं जाँऊ तजकर
यह मनमोहक स्थल को
हाँ……
लगे कितना प्यारा ये नद़ी का तट।
Anju. S
BCA 1st year
ug no. U19GZ24S0043





















