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नल (असम), 30 अप्रैल। कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं प्राचीनाध्ययन विश्वविद्यालय के सर्वदर्शन विभाग द्वारा संगीतमय सर्वदर्शनमंथन परिषद के वैज्ञानिकों द्वारा आयोजित ‘शास्त्रमंथन 108 व्याख्यानमाला’ की चतुर्थ श्रंखला में ‘पंचचरित्र सिद्धांत’ विषय पर एक विशिष्ट शास्त्रीय व्याख्यान का आयोजन साहित्य माध्यम से हुआ। इस वैदुष्यपूर्ण संघ में भारत के विविध आंचलों से लेकर शास्त्र प्रेमी विद्यार्थी, शोधार्थी एवं छात्रगण बड़ी संख्या में शामिल हुए।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित थे डॉ. श्रीकर जी. एन., सहायक, वैज्ञानिक संस्कृत विश्वविद्यालय, अगरतला। उन्होंने वेदान्त की दृष्टि से पंचाकृति सिद्धांतों का विस्तृत विश्लेषण करते हुए उपनिषदों, ब्रह्मसूत्रों और आचार्यों के वर्णनों के माध्यम से विषय के सूक्ष्म तत्वों का समावेश किया। उनके उद्बोधन शास्त्रीय प्रमाण और ईश्वरीय सिद्धांत से समृद्ध थे।
कार्यक्रम की शैक्षिक योग्यता प्रोफेसर प्रह्लाद रा. जोशी ने की। उन्होंने राष्ट्रपति उद्बोधन में वेदांत दर्शन के सिद्धांतों को समकालीन जीवन से जोड़ते हुए कहा, “ऐसे शास्त्रीय विचार न केवल हमारी परंपरा का पुनरुद्धार करते हैं, बल्कि नवाचार की प्रतिष्ठा को भी महत्व देते हैं। विश्वविद्यालय के सर्वदर्शन विभाग का यह प्रयास अत्यंत अपने आप में सिद्ध होता है।”
कार्यक्रम में सर्वदर्शनमंथन परिषद के अध्यक्ष श्री पुलक उपाध्याय, संपादिका कार्यकर्ता जिमी डेका, प्रचार प्रमुख श्री हरिप्रसन्न अधिकारी, विभाग के अतिथि अध्यापिका डॉ. मूरी काकती एवं अतिथि शिक्षक श्री ली काफले की गरिमामयी उपस्थिति रही।
मंगलाचरण विभाग के छात्र गिरिराज शर्मा द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम संचालन परिषद के सचिव और विभाग के पूर्व सचिवालय श्रीमती सीमा बर्मन ने की। विश्र्वशास्त्रीय अमूर्त पाठ विभाग का शोध निष्कर्ष, सास्वर पाठ विभाग का शोध-अध्ययन, सामिष टीका देवी की सप्तवर्षीय सुपुत्री बिंदुजा पोखरेल ने किया।
इस व्याख्यान में डॉ. रंजीत कुमार तिवारी (अध्यक्ष, सर्वदर्शन विभाग), डॉ. चंपक कलिता (अध्यक्ष, मीमांसा विभाग), श्री विवेक आचार्य (अध्यक्ष, पुराणेतिहास विभाग), डॉ. कमल लोचन आत्रेय (साहित्य विभाग), डॉ. लोपामुद्रा गोस्वामी (साध्यापिका, सर्वदर्शन विभाग) में अनेक कल्पित, शोधार्थी एवं छात्रगण उपस्थित रहे।
सत्र के अंत में एक संवाद-प्रश्नोत्तर खंड का भी आयोजन किया गया, जिसमें द लिबरेशन ने पंचचित्र विषय से संबंधित शास्त्रीय जिज्ञासाएं प्रस्तुत कीं। वक्ता ने नामांकन उत्तर दीक्षा विषय को और अधिक गहराई से स्पष्ट किया।
उल्लेखनीय है कि सर्वदर्शनमंथन परिषद, सर्वदर्शन विभाग के वर्तमान शोधार्थियों एवं पूर्व विद्यार्थियों का एक विद्वत मंच है, जिसका उद्देश्य शास्त्रचिंतन की परंपरा को जीवंत बनाए रखना एवं विद्यार्थियों को शास्त्रीय अध्ययन से सक्रिय रूप से जोड़ना है। ‘शास्त्रमंथन 108’ व्याख्यानमाला परिषद की शुरुआत में एक ऐसी ही प्रतिष्ठा है, जो दर्शन, तत्वचिंतन और संवाद की परंपरा को नवजीवन द्वारा प्रदान की जा रही है।





















