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विशिष्ट मृदंग वादक तथा मणिपुरी नृत्य शिल्पी लक्ष्मण सिन्हा अत्यधिक आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं

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शंकरी चौधुरी, हाइलाकांदी, 18 जून: बराक घाटी के विशिष्ट मृदंग वादक तथा मणिपुरी नृत्य शिल्पी लक्ष्मण सिन्हा अब अत्यधिक आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, जिसके कारण वे इलाज कराने में असमर्थ हैं। एक समय के राष्ट्रीय स्तर के मृदंग वादक एवं नृत्य शिल्पी रहें सिन्हा असम-त्रिपुरा सीमा से लगे पाथारकांदी क्षेत्र की अपने पैतृक गांव नयाडहर में अब बिस्तर पर हैं।
एक समय उनका नाम प्रख्यात नृत्य गुरु एवं मृदंग वादक के रूप में प्रसिद्ध था और उनके शिष्य अब बांग्लादेश, त्रिपुरा, गुवाहाटी एवं बराक घाटी के विभिन्न स्थानों में रहते हुए हैं। उसके एक पड़ोसी ने कहा कि, वार्ध्यक्य जनित समस्याओं के कारण, ‘अब उसके गले में लिपटा मृदंग नहीं है और उसके पैरों पर घुंघरू की आवाज नहीं है। उन्होंने अफसोस जताया कि एक प्रख्यात नृत्य गुरु, जिन्होंने कभी विभिन्न नृत्य कौशल प्रर्दशित कर भारत का प्रतिनिधित्व किया था। लेकिन अब वृद्धावस्था में रोजगार की कोई उपाय नहीं होने के कारण जूज्झ रहे हैं।
अपने जीवन के मध्य में, वह शिलचर के नीलमाधब सिन्हा, गुरु बिपिन सिन्हा एवं सेनारिक राजकुमार के साथ दिल्ली चले गए। हालांकि, दिल्ली जाने से पहले लक्ष्मण सिन्हा ने काछार के अपने गुरु सूर्यमणि सिन्हा से मृदंग वादन एवं मणिपुरी नृत्य का मूल रूप सीखा। उन्होंने दिल्ली में विभिन्न नृत्य गुरुओं के साथ कुछ समय बिताया और विभिन्न नृत्य कौशल हासिल की।
बाद में भारत सरकार के गीत एवं नाटक विभाग के निमंत्रण पर उन्होंने कुछ समय के लिए कोरियोग्राफर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। उन्होंने वहां अलग-अलग अनुष्ठानों में कई डांस ड्रामा भी किया। नृत्य गुरु लक्षण सिन्हा एक समय “मयुर नृत्य” के प्रवर्तक थे, जो पूर्ण मणिपुरी शैली में बनाया गया था। सिन्हा ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि नृत्य का यह रूप अब विलुप्त होने के कगार पर है, जिसका वर्तमान प्रजन्म ने ठीक से अभ्यास नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर यह प्रकाश में नहीं आया तो यह ज्यादा दिन नहीं चलेगा।
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के साथ उनके अच्छे पारिवारिक संबंध थे और सिन्हा ने स्वर्गीय शास्त्री जी के निमंत्रण पर कई कार्यक्रम किए। उनकी बहुमुखी नृत्यकला के कारण उस समय दिल्ली एवं मुंबई के कई फिल्म निर्देशकों ने कोरियोग्राफी के लिए सलाह ली थी। पत्नी की गंभीर बीमारी के कारण उन्हें अपने पैतृक गांव लौटना पड़ा। पत्नी, पांच बेटे और दो बेटियों वाले परिवार के लिए रोटी और मक्खन कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी।
अपने अंतर्मुखी स्वभाव के कारण प्रकाश के रोशनी में नहीं आने वाले प्रविण कलाकार आज के लिए न केवल इस इलाके का गौरव हैं, बल्कि अपने जीवन के अधिकांश समय में उन्होंने भारत के विभिन्न नृत्यों को दुनिया के सामने लाने के लिए अथक परिश्रम किया था वह बात उनके कई शिष्य आज इसे स्वीकार करते हैं। उन्हें खेद है कि राज्य सरकार ने ऐसे प्रतिभाशाली गुरु को आज तक कोई आर्थिक मदद और मान्यता नहीं दी।

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