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असम विश्वविद्यालय में दिव्यांगों की भागीदारी और प्राचीन भारतीय साहित्य विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

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असम विश्वविद्यालय के सोशल वर्क विभाग और दिव्यांगजन के लिए समर्पित राष्ट्रीय संस्था ‘सक्षम’ के संयुक्त तत्वावधान में, प्राचीन भारतीय साहित्य में दिव्यांगों की भूमिका और समावेशी समाज निर्माण विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम को मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़ (MAKAIAS) द्वारा वित्तीय सहयोग प्रदान किया गया।

संगोष्ठी का उद्घाटन असम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजीव मोहन पंत की अध्यक्षता में हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे भारत सरकार के दिव्यांग मंत्रालय के आयुक्त श्री एस. गोविंदराज, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थे सिलचर के सांसद श्री परिमल शुक्लबैद्य, विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रदोष किरण नाथ, MAKAIAS के निदेशक डॉ. स्वरूप कुमार घोष के प्रतिनिधि और इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. प्रजीत कुमार पालित, सोशल साइंस संकाय की डीन प्रो. जयंती भट्टाचार्य, सक्षम के राष्ट्रीय अध्यक्ष और लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. दयाल सिंह पवार, सक्षम के राष्ट्रीय महासचिव एवं भारत सरकार के सलाहकार उमेश आंधारे तथा शिलचर स्थित सक्षम के दिव्यांग सेवा केंद्र के चेयरमैन उदय शंकर गोस्वामी।

दीप प्रज्वलन के साथ आरंभ इस संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत की सोशल वर्क विभाग की सहायक प्रोफेसर एवं संयोजिका डॉ. ऋत्विका राजेन्द्र ने। स्वागत भाषण दिया सक्षम के राष्ट्रीय महासचिव उमेश आंधारे ने।

सांसद परिमल शुक्लबैद्य ने अपने वक्तव्य में रामायण, महाभारत और वेद-उपनिषदों में दिव्यांगों की उपस्थिति को लेकर आयोजित इस संगोष्ठी की सराहना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘दिव्यांग’ शब्द का चयन इस प्रकार के विचारों को बढ़ावा देने की दिशा में सार्थक कदम है। कुलपति प्रो. राजीव मोहन पंत ने भी इस विषय को दुर्लभ और विचारोत्तेजक बताते हुए आयोजकों को बधाई दी और संगोष्ठी की कार्यवाही को दस्तावेज रूप में संकलित करने का सुझाव दिया।

प्रो. दयाल सिंह पवार ने कहा कि वे इस विषय पर लेख प्रकाशित करने की योजना बना रहे थे, लेकिन असम विश्वविद्यालय ने इस पहल से दिखा दिया कि पूर्वोत्तर भारत में सचमुच विचारों का सूर्योदय पहले होता है। इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. प्रजीत कुमार पालित ने MAKAIAS की ओर से बोलते हुए इस विषय की विशिष्टता की सराहना की और संस्थान द्वारा भारतीय संस्कृति पर अनुसंधान को बढ़ावा देने की जानकारी दी।

आयुक्त एस. गोविंदराज ने अपने वक्तव्य में बताया कि मार्च में पदभार संभालने के बाद यह उनका पहला पूर्वोत्तर दौरा है और इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में आमंत्रण पाकर वे कृतज्ञ हैं। उन्होंने कहा कि ‘समावेशी समाज’ निर्माण के लिए भारत सरकार दिव्यांग अधिकार अधिनियम 2016 के तहत निरंतर प्रयासरत है। महर्षि अष्टावक्र जैसे उदाहरण बताते हैं कि प्राचीन भारतीय व्यवस्था में दिव्यांगजन को भी गरिमामय स्थान प्राप्त था।

डॉ. तरुण विकास सुकाई (विभागाध्यक्ष) ने धन्यवाद ज्ञापन किया और दो दिव्यांग छात्राओं को सम्मानित किया गया, जिन्होंने उच्च माध्यमिक परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्णता प्राप्त की। उनकी स्नातक शिक्षा की फीस डॉ. सुकाई और वरिष्ठ प्रोफेसर एम. तिनेश्वरी देवी व्यक्तिगत रूप से वहन करेंगे।

दो दिवसीय संगोष्ठी में देश के आठ राज्यों से शोधकर्ता, वक्ता, प्रोफेसर व समाजसेवी ऑनलाइन व ऑफलाइन मोड में सम्मिलित हुए और कुल 26 शोध-पत्र प्रस्तुत किए। प्रमुख वक्ताओं में महाराष्ट्र सरकार के सलाहकार कर्नल एस. बिजूर, त्रिपुरा विश्वविद्यालय की प्रो. डॉ. अंजना भट्टाचार्य, उत्तरप्रदेश के स्पेशल बी.एड कॉलेज के कमलकांत पांडे, डॉ. दयाल सिंह पवार, हेमंत डिहिंग मजूमदार और अन्य गणमान्य विद्वान शामिल थे।

प्रस्तुत शोधपत्रों में ऋषि अष्टावक्र, अरुण देव, गरुड़ देव, चाणक्य, धृतराष्ट्र, गंधारी, शाकुनि, भगवान श्रीजगन्नाथ, मां शारदा, स्वामी विवेकानंद, महापुरुष शंकरदेव इत्यादि के माध्यम से दिव्यांगों की उपस्थिति, योगदान और प्रासंगिकता को सामने लाया गया। वैदिक साहित्य और प्राचीन पांडुलिपियों के आधार पर दिव्यांगों के प्रति दृष्टिकोण, व्यवहार और अधिकारों की खोज की गई।

दूसरे दिन समापन समारोह में आरएसएस के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य श्री उल्लास कुलकर्णी, प्रचारक श्री शशिकांत चौथाइवाले, डीन प्रो. डॉ. अनुप कुमार दे, डॉ. तरुण विकास सुकाई समेत अन्य प्रमुख अतिथियों ने सहभागिता की। संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की संयोजक डॉ. मिथुन राय ने और अध्यक्षीय भाषण कुलपति प्रो. पंत ने दिया।

उल्लास कुलकर्णी ने सक्षम के साथ अपने 20 वर्षों के अनुभव को साझा करते हुए पूर्वोत्तर भारत में दिव्यांग कल्याण के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। उन्होंने भगवान विष्णु के वामन अवतार, अष्टावक्र, संत सूरदास, कवि कालिदास आदि के जीवन को प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि ऐसे विषयों पर संगोष्ठी भारत के सांस्कृतिक विमर्श को समृद्ध करेगी।

समापन के अवसर पर सभी शोध प्रस्तुतकर्ताओं को प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। साथ ही कार्यक्रम में NSS स्वयंसेवकों, शोध छात्रों और सक्षम के कार्यकर्ताओं को भी सम्मानित किया गया। समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। संगोष्ठी का विशेष आकर्षण यह था कि सभी अतिथियों का स्वागत दिव्यांगजनों द्वारा किया गया – समावेशी मंच की यह पहल सभी के लिए प्रेरणास्पद रही।

उद्घाटन सत्र के बाद दिव्यांग आयुक्त एस. गोविंदराज ने विश्वविद्यालय के दिव्यांग हेल्प डेस्क पर बराक घाटी के विभिन्न क्षेत्रों से आए दिव्यांगजनों से संवाद किया। उन्होंने रेलवे रियायत, दिव्यांग शौचालय, सहायक मंच और पेंशन से संबंधित समस्याएं उनके समक्ष रखीं और उचित समाधान की मांग की।

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