गाजियाबाद की ‘गुड्डी मां’ उन मासूमों की ज़िंदगी में उम्मीद की किरण बनकर आईं हैं जिन्हें जन्म देने के बाद मां-बाप ने अपनाया नहीं। ऐसे नवजात और अनाथ बच्चों को घरौंदा बाल आश्रम में सहेजकर पालने का काम कर रही हैं गुड्डी, जो अब तक करीब 100 बच्चों को मां की ममता का अहसास करा चुकी हैं।
गुड्डी का कहना है कि जब कोई नवजात बच्चा आश्रम में आता है तो उसे घंटों अपनी गोद में रखना पड़ता है क्योंकि वह मां की गर्माहट के बिना नहीं रह पाते। बड़े हो चुके बच्चे अब उन्हें ‘मम्मी’ कहकर पुकारते हैं और उसी तरह का अपनापन महसूस करते हैं।
गुड्डी 2012 से आश्रम में बच्चों की सेवा में जुटी हैं। शुरुआत में केवल चार बच्चे थे, लेकिन आज 29 बच्चे आश्रम में हैं, जबकि 65 से अधिक बच्चों को गोद दिया जा चुका है। पहले वह अकेले ही सभी काम करती थीं, लेकिन अब बच्चों की संख्या बढ़ने के साथ कर्मचारी भी रखे गए हैं। फिर भी नवजातों की देखभाल वह स्वयं करती हैं—उन्हें खाना खिलाना, बीमार पड़ने पर डॉक्टर के पास ले जाना और प्यार से सहेजना उनकी दिनचर्या में शामिल है।
जो बच्चे गोद लिए जा चुके हैं, वे भी गुड्डी मां को नहीं भूलते। वीडियो कॉल और फोन के ज़रिये नियमित संपर्क में रहते हैं और समय मिलने पर मिलने भी आते हैं।
बाल गोद प्रक्रिया की देखरेख कनिका गौतम करती हैं, जबकि अंजू 2018 से आश्रम में सुबह से शाम तक बच्चों के खाने, स्कूल भेजने और अन्य कामों में मदद कर रही हैं।
पति को खोया, हिम्मत नहीं — सरोज मिश्रा बनीं आत्मनिर्भरता की मिसाल
— टिफिन सर्विस से शुरू किया सफर, आज खुद का कैफे चलाती हैं, बच्चों को दी बेहतर शिक्षा
गोविंदपुरम की सरोज मिश्रा ने अपने जीवन की सबसे कठिन घड़ी में भी हार नहीं मानी। 2021 में कोविड के दौरान पति के निधन के बाद जब घर की आर्थिक हालत बिगड़ने लगी, तब उन्होंने जिम्मेदारी उठाई और एक गृहणी से उद्यमी बनने का सफर शुरू किया।
सरोज बताती हैं कि उन्होंने कभी घर के बाहर काम नहीं किया था, लेकिन बच्चों की पढ़ाई और घर चलाने के लिए पहले पति के प्रेस के काम को सीखा। तीन साल तक वह काम किया, लेकिन जब वह नहीं चला तो टिफिन सर्विस शुरू की। धीरे-धीरे काम बढ़ा और अब उन्होंने एक छोटा कैफे भी खोल लिया है।
आज उनकी बेटी बीटेक पूरी करके मुंबई में नौकरी कर रही है और बेटा कैफे के संचालन में उनका साथ दे रहा है। सरोज की कहानी उस हर महिला के लिए प्रेरणा है जो कठिन समय में भी हिम्मत से डटकर खड़ी रहना चाहती है।





















