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मातृभाषा के अधिकार की रक्षा के आंदोलन में 1961 के 19 मई को बराक घाटी के 11 सत्याग्रही शहीद हो गए थे। इस घटना के लगभग 65 वर्ष बाद, इस वर्ष पहली बार 19 मई को शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने असम साहित्य सभा का एक प्रतिनिधिमंडल बराक आ रहा है। उनके इस दौरे का स्वागत करने के साथ-साथ बंगालियों की कुछ अन्य मांगों को लेकर सरकार से पैरवी करने का अनुरोध बराक डेमोक्रेटिक फ्रंट (बीडीएफ) ने किया है।
बीडीएफ कार्यालय में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीडीएफ के मुख्य संयोजक प्रदीप दत्त राय ने कहा कि असम साहित्य सभा द्वारा 17 से 19 मई तक बराक घाटी का जो दौरा तय किया गया है, उसका बीडीएफ स्वागत करता है। उनका विश्वास है कि ब्रह्मपुत्र और बराक घाटी के द्विभाषी समुदायों के बीच जो गलतफहमियाँ उत्पन्न हुई हैं, उनके निवारण में असम साहित्य सभा के प्रतिनिधियों का यह दौरा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि बीडीएफ की ओर से पहले ही बराक में असम साहित्य सभा का अधिवेशन आयोजित करने और ब्रह्मपुत्र घाटी में बंगालियों के विभिन्न संगठनों का संयुक्त अधिवेशन आयोजित करने का प्रस्ताव दिया गया था। उनका मानना है कि केवल सच्चे सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से ही दोनों भाषाई समुदायों के बीच समन्वय स्थापित किया जा सकता है। इसलिए इस बार का दौरा उस उद्देश्य की पूर्ति में सहायक होगा।
बीडीएफ के मुख्य संयोजक ने यह भी कहा कि शिलचर रेलवे स्टेशन, जो भाषा शहीदों के खून से रंगा हुआ है, उसका नाम बदलकर “भाषा शहीद स्टेशन” करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। केंद्र सरकार और रेल मंत्रालय की मंजूरी के बावजूद, दिसपुर की निष्क्रियता के कारण यह फाइल अटकी हुई है। उन्होंने असम साहित्य सभा के अधिकारियों से अनुरोध किया कि वे इस मुद्दे पर सरकार से चर्चा करें और 19 मई को इस संबंध में अंतिम घोषणा करें।
प्रदीप दत्त राय ने यह भी बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भाषा शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए एक भाषा शहीद स्मारक संग्रहालय की स्थापना का प्रस्ताव रखा था। बाद में इस परियोजना के लिए सरकारी धन की स्वीकृति के साथ-साथ असम विश्वविद्यालय की ओर से पांच बीघा जमीन भी दी गई थी। लेकिन इस परियोजना में आगे कोई प्रगति नहीं हुई। इसलिए उन्होंने असम साहित्य सभा के प्रतिनिधियों से अनुरोध किया कि वे इस विषय पर भी सरकार से बातचीत करें।
उन्होंने आगे कहा कि बंगाली भाषा को राज्य की सहायक सरकारी भाषा का दर्जा देने का मुद्दा भी अभी अधर में है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा बोडो भाषा को सहायक भाषा का दर्जा दिए जाने का वे स्वागत करते हैं, लेकिन राज्य के बंगालियों की इस जन-आवश्यकता को पूरा करने के लिए सभी को पहल करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि ये कदम उठाए जाते हैं, तो राज्य के बंगाली समुदाय के लोग निश्चित रूप से प्रसन्न होंगे और भाषाई समन्वय का पुल और भी मजबूत होगा।
बीडीएफ मीडिया सेल के संयोजक जयदीप भट्टाचार्य ने भी शहीद दिवस की पूर्व संध्या पर असम साहित्य सभा के प्रतिनिधियों के बराक घाटी दौरे के निर्णय का स्वागत किया है और बराक सहित राज्य के बंगालियों की अन्य जनमांगों को पूरा करने में गंभीरता दिखाने का आह्वान किया है।
बीडीएफ की ओर से संयोजक हराधन दत्त ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह जानकारी दी।




















