शिलचर, 17 मई:
“सिर्फ असम ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में किसी को भी अपनी भाषा के लिए शहीद न होना पड़े — असम साहित्य सभा यही कामना करती है।” — यह भावपूर्ण वक्तव्य दिया असम साहित्य सभा के अध्यक्ष बसंत कुमार गोस्वामी ने।
वे इस समय “बराक-ब्रह्मपुत्र महा मिलन” की त्रिदिवसीय यात्रा के तहत बराक उपत्यका के दौरे पर हैं। इस यात्रा का उद्देश्य है — भाषिक और सांस्कृतिक समरसता को सशक्त बनाना और असम के दोनों प्रमुख उपत्यकों — बराक और ब्रह्मपुत्र — के बीच सांस्कृतिक सेतु का निर्माण करना।
बसंत कुमार गोस्वामी ने कहा, “हम बराक से देशभर को यह संदेश देना चाहते हैं कि हर जाति को अपनी मातृभाषा के प्रति जागरूक और चिंतनशील होना चाहिए। भाषा के सवाल पर किसी भी भाषा-समुदाय को शहीद न होना पड़े — यही हमारी सच्ची कामना है।”
अध्यक्ष गोस्वामी के नेतृत्व में करीब 15 सदस्यों की यह प्रतिनिधिमंडल बराक उपत्यका के तीन जिलों — काछार, करीमगंज और हैलाकांडी — का दौरा कर रहा है। इस यात्रा के माध्यम से वे बराक-ब्रह्मपुत्र के भावनात्मक एकता का संदेश दे रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा, “बराक उपत्यका के भाषा शहीदों की आत्मा को सच्ची श्रद्धांजलि तभी मिलेगी जब ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। हमें एक ऐसे समाज की ओर बढ़ना है जहां भाषा और संस्कृति को लेकर सम्मान और समन्वय हो, न कि भेदभाव।”
इस अवसर पर उन्होंने एक महत्वपूर्ण घोषणा भी की —
सितंबर 2025 में बराक उपत्यका में असम साहित्य सभा का मध्यकालीन अधिवेशन आयोजित किया जाएगा, जिसे बंगीय साहित्य परिषद का भी सहयोग प्राप्त होगा। यह अधिवेशन महान गायक भूपेन हजारिका की शताब्दी वर्ष के मौके पर असम विश्वविद्यालय में भव्य रूप से आयोजित किया जाएगा। इसमें न केवल असम बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से प्रतिष्ठित साहित्यकारों और सांस्कृतिक व्यक्तित्वों को आमंत्रित किया जाएगा।
बसंत गोस्वामी ने शिलचर रेलवे स्टेशन को “भाषा शहीद स्टेशन” घोषित करने की बराक उपत्यका की जनता की वर्षों पुरानी मांग का समर्थन करते हुए कहा कि असम साहित्य सभा इस जनभावना के साथ पूर्णतः खड़ी है। उन्होंने इस यात्रा को समरसता, एकता और भाषिक अधिकारों के लिए समर्थन का प्रतीक बताया।




















