रानु दत्त शिलचर, 19 मई: 1961 की 19 मई—यह तारीख बराक घाटी के इतिहास में केवल एक दिन नहीं, बल्कि मातृभाषा के सम्मान और अस्तित्व की रक्षा में दिए गए सर्वोच्च बलिदान का प्रतीक है। इसी दिन, बंगला भाषा को सरकारी मान्यता दिलाने और भाषिक आक्रोश के विरोध में हुए जनआंदोलन के दौरान 11 निर्भीक नागरिक पुलिस की गोली से शहीद हुए थे। उनके इस बलिदान की स्मृति में पूरे बराक क्षेत्र में ‘भाषा शहीद दिवस’ श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाया जाता है।
इस वर्ष, उस ऐतिहासिक आंदोलन की 64वीं वर्षगांठ के अवसर पर शिलचर रेलवे स्टेशन समेत पूरे बराक क्षेत्र में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। शिलचर की कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने मिलकर इस दिन को खास रूप से “एकषट्ठि की चौंषठि” के रूप में मनाया। कार्यक्रमों की शुरुआत सुबह 6:30 बजे शहीद वेदी पर माल्यार्पण और ‘বর্ণমালা রদ্দুর’ (अक्षरों की रौशनी) के अनावरण से हुई।
इसके पश्चात 7:20 बजे विभिन्न संगठनों और स्कूलों के छात्र-छात्राओं ने मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। 11 बजे एक विशेष रक्तदान शिविर का आयोजन हुआ, जिसे ‘ঊনিশের রক্তদান শিবির’ नाम दिया गया। दोपहर 2 बजे बच्चों के लिए चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित की गई, और 2:35 पर गांधीबाग स्थित शहीद स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पण एवं 1 मिनट का मौन रखकर शहीदों को नमन किया गया।
सांझ को 11 दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रमों का समापन हुआ, जिसमें नृत्य, संगीत, भाषण, कविता पाठ और विभिन्न भाषायी समूहों के कलाकारों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं। इन कार्यक्रमों में न केवल बराक घाटी बल्कि गुवाहाटी, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों से भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के कलाकार और विचारक सम्मिलित हुए।
इस अवसर पर आयोजकों ने शिलचर रेलवे स्टेशन को “भाषा शहीद स्टेशन” का दर्जा देने और वहां भाषा शहीद स्मारक ग्रंथालय की स्थापना की मांग राज्य सरकार के समक्ष रखी।
शहीद स्मरण समिति ने सभी आम नागरिकों, प्रतिभागियों और संगठनों के सहयोग के लिए आभार व्यक्त करते हुए इसे बराकवासियों की भाषा के प्रति जागरूकता और एकजुटता का प्रतीक बताया।





















