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लघु कथा: गलतफहमी दूर भी होती है

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असम के एक छोटे से कस्बे में, दीपक नामक युवक कहीं दूर से आकर एक किराए के कमरे में रहने लगा। वह एक प्रतिष्ठित सामाजिक संगठन से जुड़ा हुआ था, और सेवा ही उसका जीवनधर्म था। अपनी सहजता, कर्मठता और निःस्वार्थ सेवा भाव से दीपक जल्द ही गांव के लोगों का प्रिय बन गया। कोई त्योहार हो या संकट की घड़ी—दीपक हर जगह उपस्थित रहता। उसका सहज व्यवहार, स्नेहिल संवाद और कर्तव्यनिष्ठा लोगों को भावुक कर देती थी।

वह जिस घर में किराए पर रहता था, वहां की मालकिन की छोटी बहन मानवी भी उसी घर में रहती थी। पेशे से वह एक स्कूल शिक्षिका थी, और अपने एक वर्षीय बेटे के साथ मायके में ही रह रही थी। पति से अलगाव की वजह उसकी विवशता थी, जिसे वह बहुत कम शब्दों में ही प्रकट करती थी।

मानवी की गंभीरता, उसकी नारी-सुलभ कोमलता और सामाजिक कार्यों में रुचि ने दीपक को बहुत प्रभावित किया। धीरे-धीरे दोनों के बीच एक गहरी समझदारी और निकटता पनपने लगी। दीपक को जब यह पता चला कि मानवी का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं था, तो उसे गहरी सहानुभूति हुई। यह सहानुभूति कब प्रेम में बदल गई, उसे खुद भी पता नहीं चला। उसने निश्चय कर लिया कि वह मानवी को जीवनसाथी बनाएगा और उसके जीवन को नई दिशा देगा।

लेकिन गांव की हवा कुछ और ही करवट लेने लगी थी। कुछ लोगों ने दोनों की नजदीकी को गलत अर्थों में लिया और कानाफूसी शुरू हो गई। दीपक की छवि पर भी प्रश्नचिन्ह लगाए जाने लगे। दबाव इतना बढ़ा कि गांव वालों ने उसे गांव छोड़ने को कह दिया। पहले तो दीपक लड़ा, मगर जब उसे यह कहा गया कि मानवी के परिवार की इज्जत दांव पर लग रही है, तो वह चुप हो गया।

गांव छोड़ने से पहले उसने मानवी से मिलने का निर्णय लिया। भावनाओं से भरे हुए उसने अपने दिल की बात कह दी—प्रेम का इज़हार और विवाह का प्रस्ताव। लेकिन मानवी स्तब्ध रह गई। आंखों में आंसू लिए उसने कहा,
“दीपक, मैं तुम्हारा दिल से सम्मान करती हूं, लेकिन तुम्हारे प्रति ऐसा कोई भाव कभी मन में नहीं आया। मेरे लिए मेरा बेटा ही मेरा संसार है। मैं जीवनभर उसके लिए जीना चाहती हूं, दोबारा विवाह की कल्पना भी नहीं की है।”

दीपक का दिल टूट गया। जिस प्रेम को वह पनपा हुआ समझ रहा था, वह तो एकतरफा था। वह भारी मन से गांव छोड़कर चला गया। कई दिनों तक वह विचलित रहा, भीतर तक टूट गया। मगर फिर, उसकी सामाजिक चेतना ने उसे फिर से खड़ा किया।

उसने निर्णय लिया कि वह मानवी की असल समस्या का समाधान करेगा। वह चुपचाप मानवी के पति से मिला। कई बार बातचीत की, उसे समझाया, उसकी मानसिकता को बदला। फिर एक दिन वह पल आया जब पति-पत्नी के बीच की वर्षों पुरानी गलतफहमियां दूर हुईं। दीपक ने दोनों को पुनः एक किया।

धीरे-धीरे दीपक फिर अपने सामाजिक कार्यों में रम गया। मानवी अपने पति और बेटे के साथ एक नई शुरुआत कर सुखपूर्वक जीवन बिताने लगी।

इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि गलतफहमियां चाहे जितनी भी गहरी हों, यदि मन में सच्ची भावना और संकल्प हो तो उन्हें दूर किया जा सकता है। जीवन कभी भी नई राह पकड़ सकता है, बस किसी दीपक की जरूरत होती है, जो अंधेरे में उजाले की लौ जला दे।

दिलीप कुमार पत्रकार, शिलचर (असम)

M-9435071848

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