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ब्रह्मपुत्र घाटी के एक प्रोफेसर द्वारा असम विश्वविद्यालय को “असम समझौते का परिणाम” कहे जाने वाली विवादित टिप्पणी ने एक बार फिर से विवाद को जन्म दिया है। इससे पहले भी ब्रह्मपुत्र घाटी के विभिन्न राजनीतिक नेता, राष्ट्रवादी संगठनों के पदाधिकारी और बुद्धिजीवी इस विचार को स्थापित करने का प्रयास करते रहे हैं। इस निरर्थक विवाद को स्थायी रूप से समाप्त करने के लिए बाराक डेमोक्रेटिक फ्रंट (BDF) ने असम विश्वविद्यालय का नाम बदलकर ‘शिलचर विश्वविद्यालय’ रखने का सुझाव दिया है।
BDF कार्यालय में पत्रकारों से बात करते हुए BDF मीडिया सेल के मुख्य संयोजक जयदीप भट्टाचार्य ने कहा कि इस वर्ष 19 मई को असम साहित्य सभा के प्रतिनिधि पहली बार बाराक घाटी आए। उन्होंने भाषा शहीदों को श्रद्धांजलि दी और ‘भाषा शहीद स्टेशन’ की मांग को भी स्वीकार किया। जयदीप ने कहा कि बराक डेमोक्रेटिक फ्रंट बाराक घाटी का एकमात्र संगठन है, जिसने असम साहित्य सभा की इस पहल का गर्मजोशी से स्वागत किया। हालांकि, असम विश्वविद्यालय में ब्रह्मपुत्र घाटी के एक प्रोफेसर की टिप्पणी ने इस पूरी प्रक्रिया को बिगाड़ दिया। उन्होंने कहा कि इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन भी आंशिक रूप से जिम्मेदार है। उनके अनुसार, 19 मई जैसे भावनात्मक और महत्वपूर्ण दिन पर किसे आमंत्रित किया जाए, यह सोच-समझकर निर्णय लेना आवश्यक है। असम साहित्य सभा के प्रतिनिधियों को आमंत्रित करना उचित था क्योंकि इससे दोनों घाटियों के बीच गलतफहमियों को दूर करने में मदद मिल सकती थी। लेकिन अगर उस विवादास्पद प्रोफेसर की जगह अन्य बुद्धिजीवियों और विद्वानों को बुलाया गया होता, तो यह विवाद नहीं होता। इसलिए विश्वविद्यालय प्रशासन जिम्मेदारी से नहीं बच सकता।
BDF के संयोजक हृषिकेश दे ने कहा कि इस विवादित प्रोफेसर ने बराक के लोगों का अपमान किया है और निराधार बातें कही हैं। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर ने असम विश्वविद्यालय का नाम तोड़-मरोड़कर पेश किया और गलत रूप से यह दावा किया कि वहां असमिया विभाग नहीं है और शिलचर में ऐसा विभाग खोले जाने की मांग की। हृषिकेश ने कहा कि उन्हें बराक घाटी में किसी भी कॉलेज में असमिया विषय की पढ़ाई के बारे में जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि बराक में असमिया जनसंख्या लगभग दो प्रतिशत है, जो बहुत ही कम है। इसलिए यदि ऐसा विभाग खोला जाए, तो छात्र नहीं मिलेंगे; यही कारण है कि डिब्रूगढ़ में असमिया विभाग में भी छात्रों की संख्या बहुत कम है। उन्होंने कहा कि बराक के लोग हमेशा समन्वय में विश्वास करते हैं, लेकिन जब बार-बार असम विश्वविद्यालय में असमिया विभाग खोलने की मांग की जाती है, तो तेजपुर विश्वविद्यालय में बंगाली विभाग खोलने की भी मांग की जानी चाहिए, क्योंकि तेजपुर की जनसंख्या का 20% बंगाली बोलती है। उन्होंने कहा कि यदि प्रोफेसर की मंशा सही है, तो उन्हें तुरंत अपनी मांगों को स्पष्ट करना चाहिए। साथ ही, केवल बराक के लोगों को समन्वय की सलाह देने के पीछे कोई व्यक्तिगत स्वार्थ या छिपा हुआ एजेंडा हो सकता है। इसलिए BDF का मानना है कि भविष्य में इस विवादास्पद प्रोफेसर का पूर्ण बहिष्कार किया जाना चाहिए।
BDF यूथ फ्रंट के मुख्य संयोजक कल्पर्णब गुप्ता ने कहा कि असम विश्वविद्यालय की स्थापना शिक्षाविद् प्रेमेन्द्र मोहन गोस्वामी की शिक्षा संरक्षण समिति, ACKHSA अध्यक्ष प्रदीप दत्ता रॉय के नेतृत्व में चले आंदोलन, पूर्व सांसद संतोष मोहन देव की भूमिका और सबसे बढ़कर सभी जाति-धर्म के बराक घाटी के आम लोगों के लंबे संघर्ष का परिणाम है। जो लोग इस इतिहास को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, वे जनता के दुश्मन हैं। उन्होंने कहा कि यदि असम विश्वविद्यालय असम समझौते का परिणाम होता, तो इसके लिए दस वर्षों तक आंदोलन की जरूरत नहीं पड़ती, न ही इसके खिलाफ इतना विरोध होता; विश्वविद्यालय विधेयक के संसद में प्रस्तुत होने पर AGP सांसद सदन से वॉकआउट न करते; विधेयक पारित होने के बाद भी AGP सरकार द्वारा बार-बार भूमि देने में टाल-मटोल नहीं की जाती; और तेजपुर केंद्रीय विश्वविद्यालय को असम विश्वविद्यालय का प्रतिद्वंद्वी बनाकर स्थापित नहीं किया जाता। उन्होंने मांग की कि इस विवाद को स्थायी रूप से समाप्त करने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन को तुरंत असम विश्वविद्यालय की स्थापना के इतिहास पर एक पुस्तक प्रकाशित करनी चाहिए। इस पुस्तक की पांडुलिपि, जो पूर्व कुलपति की पहल पर प्रोफेसर सुबीर कर के संपादन में तैयार हुई है, पहले से ही विश्वविद्यालय प्रशासन के पास है। इसे तुरंत प्रकाशित किया जाना चाहिए। दूसरा, यदि विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट पर असम विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर कोई विकृत जानकारी है और उसे ‘असम समझौते का परिणाम’ कहा गया है, तो उसे तुरंत सुधारना चाहिए। तीसरा, विश्वविद्यालय के राजनीतिकरण की सभी कोशिशें तुरंत रोकी जानी चाहिए।
कल्पर्णब ने कहा कि BDF पहले भी इन मांगों को उठा चुका है। लेकिन हालिया विवाद यह साबित करता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन कोई सुधारात्मक कदम उठाने को इच्छुक नहीं है। यदि ऐसा है, तो अन्य लोकतांत्रिक आंदोलनों पर भी विचार किया जा सकता है। अन्यथा, विश्वविद्यालय का नाम बदलकर ‘शिलचर विश्वविद्यालय’ रखा जाना चाहिए, ताकि इन सभी विवादों का अंत हो सके।
BDF संयोजक हराधन दत्ता ने BDF की ओर से एक प्रेस वक्तव्य में यह जानकारी दी।





















