किसी भी एक राष्ट्र का एवं एक समाज का भविष्य युवाओं के ऊपर निर्भर करता है। किसी समाज या राष्ट्र का युवा जितना अधिक शैक्षिक एवं बौद्धिक रूप से सशक्त होगा, सामर्थ्य होगा वह समाज तथा राष्ट्र शक्तिशाली होगा प्रत्येक क्षेत्रों में। हमारी मातृभूमि भारतवर्ष एक विशाल जनसंख्या वाला राष्ट्र है। इसमे अधिकांश नागरिक युवावस्था के है। औपनिवेशिक विदेशी शासक अंग्रेजो से स्वतंत्रता प्राप्ति के ७७ वर्षो के पश्चात भी हम एक विकासशील राष्ट्र है, एक गरीब देश है, पिछड़ा समाज हैं।
इसका कारण यह है कि हमारे युवाओ के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नही है, हमारे देश की युवा विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में जापानी, अमेरिकी, इजरायली, दक्षिण कोरियाई एवं दूसरे युरोपीय राष्ट्र के युवाओ के तुलना में बहुत पीछे है। यह सब भी एक कारण है भारत में युवाओं के बेरोजगारी के लिए, देश में गरीबी के लिए, विनिर्माण क्षेत्र में हम पीछे रहने के लिए। सटीक मानसिकता, कौशल एवं क्षमता के साथ युवापीढ़ी अपने समाज तथा राष्ट्र के विकास में योगदान कर सकते है। युवाओं में एक राष्ट्र को बनाने की या नष्ट करने की शक्ति है। एक राष्ट्र को यदि विकास करना है तो उसे अपने युवाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा। युवाओ को गुणवत्तापूर्ण ज्ञान से शिक्षित करना होगा, उन्हें अपने पसंद के क्षेत्र में कुशल बनाना होगा, युवाओ को भिन्न कार्यक्रमों के द्वारा जागरूक करना होगा जीवन के प्रत्येक विषय के लिए ताकि वह एक अच्छा नागरिक बन पाएँ जिससे वह अपना जीवन ठीक से व्यतीत कर पाएँ साथ ही वह अपने परिवार का भी भरण-पोषण सटीक से कर पाएँ। एक उत्तम कुशल युवा ही एक विकसित समाज तथा राष्ट्र का आधार है। यदि भारतीय युवा / युवतिओं को सटीक दिशा-निर्देश दिया जाएँ साथ ही उन्हे वह अवसर दिया जाएँ अच्छी शिक्षा के लिए, श्रेष्ठ तकनीकी कुशलता प्राप्त करने के लिए तो भारतीय समाज के प्रत्येक क्षेत्र में विकास निश्चित है। पूर्ववर्ती जितने भी सरकारों की शासन थी जो अधिकांश कांग्रेस दलो की सरकार थी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कमार्ग आदि किसी भी क्षेत्रों में उचित विकास नहीं किया। अभी लगातार ११वर्षों से भाजपा नेतृत्ववाली राजग की भारत सरकार की शासन हैं। यह सरकार भी शिक्षा सह दूसरे क्षेत्रों में उल्लेखनीय विकास नहीं कर पायी। दैनिक जागरण में एक आलेख प्रकाशित हुआ हैं शिक्षा संस्थानों की दुर्दशा के ऊपर। राज्यों की शिक्षण संस्थाओं की अवस्था तो ठीक नहीं हैं ऊपर से भारत सरकार के अधीन शिक्षण संस्थानों में भी अध्यापकों की बहुत अभाव हैं। पुस्तकालयों एवं प्रयोगशालाओ की कमी हैं। प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालयों तक तदर्थ या संविदा पर शिक्षकों की नियुक्ति दी जा रही हैं जिससे शिक्षा का स्तर नीचे ही जायेगा। क्या इस प्रकार से हम विकसित राष्ट्र बनेंगे ? भारत के सभी मतदाताओ को, शिक्षित लोगो को यह सब सोचना चाहिए ताकि हम इस प्रकार के जनप्रतिनिधियों का निर्वाचन करे जो शिक्षा सह मानव समाज के मूलभूत सुविधाओ को उपलब्ध करा पाये।
# राजन कुँवर, बिहारा (कछाड़)





















