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शिलचर प्रतिनिधि: एक पत्र—बहुत ही साधारण माध्यम से एक असाधारण संदेश पहुँचा गया। सैयदपुर रायपाड़ा गाँव के एक नागरिक, राजू दास ने हाल ही में माननीय सांसद श्री परिमल शुक्लवैद्य को संबोधित करते हुए एक *“खुला पत्र”* लिखा है। यह पत्र अब सोशल मीडिया और स्थानीय चर्चाओं में विशेष विषय बना हुआ है। पत्र में न कोई आरोप है, न तीखी भाषा, न ही कोई राजनीतिक द्वेष। इसमें बस स्मृतियों में लिपटी एक अपेक्षा की कहानी है।एक कीचड़, एक रास्ता और एक नेता।
2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान श्री शुक्लवैद्य बड़ाबंद क्षेत्र के सैयदपुर रायपाड़ा गए थे। चुनावी माहौल के बीच वह क्षण गाँववालों के मन में स्थायी छाप छोड़ गया—जब उनका वाहन कीचड़ से भरे रास्ते में फँस गया, और उन्होंने नंगे पाँव नहीं, लेकिन कीचड़ सने पैरों से पैदल चलकर जनसभा तक पहुँचना चुना। यह दृश्य एक जागरूक नागरिक के मन में हिंदी फिल्मों के अनिल कपूर जैसे छवि के रूप में बस गया।एक ऐसा नेता जिसे देखकर उम्मीद जन्म लेती है, जो केवल वोट नहीं माँगता, बल्कि भविष्य का वादा भी लाता है।
पर वह वादा केवल कीचड़ में ही अटका रह गया। रास्ता आज भी वैसा ही है—बरसात में कीचड़ से भरा, गर्मी में गड्ढों से जर्जर। स्कूल जाने वाले बच्चे, अस्पताल की ओर जाने वाले बुजुर्ग, बाजार जाती महिलाएँ—सभी अब भी उसी कठिन राह से गुजरते हैं।
पत्र की भाषा में एक प्रकार का आत्मीय प्रेम है, आशा की एक डोर। राजू दास ने लिखा है,आपके पदचिन्ह अब भी मिट्टी से मिटे नहीं हैं। मानो नेता ने अपनी वादे की छाया छोड़ दी हो, पर हकीकत अब भी वैसी की वैसी है। यह पत्र सरकार-विरोधी नहीं, बल्कि एक आत्मिक अनुरोध है। कि वह कीचड़ कभी पक्के रास्ते में बदले, और नेता केवल वादों के नहीं, वास्तविक विकास के प्रतीक बनें।
यह पत्र हमारी राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू उजागर करता है—नेता और जनता का रिश्ता सिर्फ वोटों का नहीं, विश्वास का होता है। और जब वह विश्वास टूटने के कगार पर आता है, तब जनता विरोध नहीं, प्रार्थना का मार्ग चुनती है।
हमारी आशा है कि यह पत्र केवल एक फाइल का नींद न तोड़े, बल्कि कभी देखा गया वह कीचड़ भरा दृश्य सचमुच एक दिन पक्की सड़क की शक्ल ले ले।




















