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07 जून 2025, नॉर्थ ब्लॉक, गृह मंत्रालय, नई दिल्ली :
गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के अंतर्गत आज एक ऐतिहासिक पहल के तहत भारतीय भाषा अनुभाग का औपचारिक शुभारंभ माननीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह जी के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ। कार्यक्रम का आरंभ राजभाषा विभाग की सचिव सुश्री अंशुली आर्या द्वारा प्रस्तुतिकरण से हुआ, जिसमें उन्होंने भारतीय भाषा अनुभाग के अब तक के कार्यों और भविष्य की योजना का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया।
यह अनुभाग भारत की भाषाई विविधता को समाहित करते हुए उसे एक सशक्त, संगठित और आत्मनिर्भर मंच देने की दिशा में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।
माननीय मंत्री ने कहा कि राजभाषा विभाग अब एक संपूर्ण भाषा विभाग के रूप में उभर रहा है। उन्होंने कहा, “आज जब हम भारतीय भाषा अनुभाग का कार्य आरंभ कर रहे हैं, तब यह केवल एक प्रशासनिक विस्तार नहीं, बल्कि यह विभाग एक समग्र भाषाई मंत्रालय की भूमिका निभाने जा रहा है। यह भारत की सभी भाषाओं को जोड़ने और उनके समुचित विकास का माध्यम बनेगा।”
माननीय मंत्री जी ने अनुवादकों का स्वागत करते हुए कहा कि— “देश का विकास तभी संभव है जब सभी भाषाओं को समान मान्यता और सम्मान मिले। भाषा हमारी चेतना को दिशा देती है, हमारे अंदर की क्षमताओं को निखारती है और हमारी निर्णय-प्रक्रिया को सक्षम बनाती है। प्रशासन की भाषा वही होनी चाहिए जिसे जनसामान्य सहजता से समझ सके।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि राजभाषा विभाग की स्थापना का मूल उद्देश्य प्रशासन को विदेशी भाषा की निर्भरता से मुक्त कराना था और आज का यह आयोजन उसी लक्ष्य की दिशा में एक ठोस कदम है।
भारतीय भाषाओं की सांस्कृतिक महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा: “महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव अंबेडकर, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जैसे राष्ट्रनायकों ने भारतीय भाषाओं की आत्मा को पहचाना। भारत की संस्कृति भाषाओं में बसती है। कोई भी राष्ट्र, यदि अपनी आत्मा से दूर हो जाए, तो वह विकास नहीं कर सकता।”
भाषा की शक्ति और अनुवाद के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा: “नरसिंह मेहता के पदों को अगर अंग्रेज़ी में अनुवादित किया जाए, तो उसका आध्यात्मिक सौंदर्य नष्ट हो जाएगा। सिख गुरुओं के पदों की भावगर्भिता भी केवल भारतीय भाषाओं में ही सुरक्षित रह सकती है। इसी कारण भारतीय भाषाओं के बीच आपसी संवाद और भावानुवाद अत्यंत आवश्यक है।”
भारतीय भाषा अनुभाग की अनुवादक टीम को प्रेरित करते हुए माननीय मंत्री ने कहा—
“महात्मा गांधी जब दांडी मार्च पर निकले थे, तो उनके साथ केवल 85 लोग थे। उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि वे इतिहास रचने जा रहे हैं। उसी प्रकार, आज इस अनुभाग में 30–35 अनुवादक हैं, लेकिन नींव डालने वालों की भावना ही किसी प्रयास को महान बनाती है।”
उन्होंने आगे कहा: “आप सभी के कंधों पर यह दायित्व है कि आप वर्तमान के एक छोटे-से पल को अमरत्व प्रदान करें। जिस कार्य की शुरुआत आज हो रही है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए भाषायी आत्मनिर्भरता का आधार बनेगा।”
इस संकल्पना को भविष्य से जोड़ते हुए उन्होंने कहा: “हमारा रोडमैप स्पष्ट है—भारत को 2047 तक विदेशी भाषाओं की हीनभावना से पूर्णतः मुक्त करना है। जब भारत अपनी भाषाओं में सोचने, निर्णय लेने और संवाद करने लगेगा, तभी वह सच्चे अर्थों में आत्मनिर्भर बनेगा।”
कार्यक्रम का समापन राजभाषा विभाग द्वारा माननीय मंत्री महोदय के प्रति आभार प्रकट करते हुए हुआ। भारतीय भाषा अनुभाग के शुभारंभ के साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि भारत अब अपनी भाषाओं के माध्यम से अपनी संस्कृति, ज्ञान और चेतना को पुनः स्थापित करने की दिशा में तेज़ गति से अग्रसर है।
इस अवसर पर भारत सरकार के गृह सचिव श्री गोविंद मोहन तथा सी-डैक के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे, जिनकी उपस्थिति ने इस ऐतिहासिक क्षण को और अधिक गरिमा प्रदान की।
रिपोर्ट—राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार




















