कॉलेज के एक विद्यार्थी का सवाल?
“जीत… किसकी होती है?
सच की… ज्ञान की… या राजनीतिक सत्ता की?”
एक युवा… सालों तक पढ़ाई करता है, रातें जागकर सपने देखता है – IAS बनने का।
देश की सेवा का। सिस्टम बदलने का।
वो कठिन से कठिन परीक्षा पास करता है, इंटरव्यू क्लियर करता है, ट्रेनिंग से गुज़रता है…
तब जाकर वो देश की नौकरशाही में एक जिम्मेदार पद पर आता है।
लेकिन…
एक नेता…
बिना किसी परीक्षा, बिना किसी मूल्यांकन… सिर्फ वोटों के दम पर सत्ता के सिंहासन पर बैठ जाता है।
और वही नेता… उस अफसर को आदेश देता है।
कभी-कभी…
वही नेता अफसर को निलंबित भी करवा देता है –
सिर्फ इसलिए… क्योंकि उसने सच बोला, या कानून के अनुसार काम किया।
तो बताइए…
किसकी जीत हुई?
जिसने सालों मेहनत की… या
जिसने सिर्फ राजनीतिक गणित साधा?
क्या लोकतंत्र का मतलब यही है?
क्या राजनीति सच और ज्ञान से ऊपर हो गई है?
आज ये सवाल हर युवा को खुद से पूछना होगा।
क्योंकि जो आज चुप है…
कल वही इस सिस्टम का सबसे बड़ा शिकार बनेगा।
सोचिए… और आवाज़ उठाइए।
सच, ज्ञान और नैतिकता की लड़ाई में आप किसके साथ हैं?”





















