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डॉक्टर की लापरवाही से बुजुर्ग मरीज और परिजन को भारी परेशानी — क्या निजी अस्पतालों की मनमानी पर कोई लगाम नहीं?

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रिपोर्ट: हिबजुर रहमान बरभूइया

शिलचर, 14 जून:
शिलचर के प्रतिष्ठित साउथ सिटी अस्पताल और आरोग्य अस्पताल में एक बुजुर्ग मरीज को घंटों इंतज़ार के बाद भी डॉक्टर से इलाज नहीं मिल पाया। पूरे दिन की भागदौड़ और बार-बार अस्पताल बदलने के बावजूद आखिरकार परिवार को बिना इलाज कराए घर लौटना पड़ा। यह घटना मरीज और उसके परिजनों के लिए अत्यंत अपमानजनक और कष्टदायक रही, जिससे वे काफी आक्रोशित हैं।

करीमगंज से शिलचर तक की कठिन यात्रा और फिर घंटों इंतजार

करीमगंज निवासी एक बुजुर्ग मरीज अपने बेटे के साथ डॉक्टर विकास अग्रवाल से मिलने के लिए शिलचर स्थित साउथ सिटी अस्पताल पहुंचे। अपॉइंटमेंट शाम 5:30 बजे का था, लेकिन डॉक्टर करीब दो घंटे देर से — रात 7:25 बजे पहुंचे। मरीज और परिजनों को उम्मीद थी कि अब इलाज हो जाएगा, लेकिन कुछ ही मरीजों को देखने के बाद डॉक्टर ने बाकी मरीजों को आरोग्य अस्पताल आने को कह दिया।

परिजनों ने जब मरीज की उम्र और शारीरिक कमजोरी की बात कहकर डॉक्टर से अनुरोध किया, तो डॉक्टर ने बिना कोई परवाह किए अस्पताल छोड़ दिया। साउथ सिटी अस्पताल प्रशासन से शिकायत करने पर वहां से जवाब मिला — “डॉक्टर अगर न मानें तो हम कुछ नहीं कर सकते।”

आरोग्य अस्पताल में भी बदइंतजामी का आलम

परिवार ने हार न मानते हुए आरोग्य अस्पताल का रुख किया, लेकिन वहां भी असुविधा का सिलसिला जारी रहा। डॉक्टर के सहायक गोपाल ने पहले मरीज को ग्राउंड फ्लोर में बैठने को कहा, फिर OT रूम के सामने जाने को। साथ ही सलाह दी — “पहली बार आए हैं? पहले एक्स-रे करवा लीजिए, नहीं तो डॉक्टर बाद में फिर भेजेंगे।”

परिजन सोच में पड़ गए कि कहीं और देरी न हो जाए, इसलिए एक्स-रे करवा लिया। लेकिन रिपोर्ट दिखाने के बाद भी सहायक ने बस इतना कहा — “डॉक्टर खुद बुलाएंगे, यहीं इंतजार कीजिए।”

रात 11:30 बजे तक नहीं मिला इलाज, थककर घर लौटे मरीज

घंटों बीत गए। मरीज, जो पहले ही रात भर दर्द से नहीं सो सके थे, रात 11:30 बजे थककर कहने लगे — “अब और नहीं सहा जा रहा, घर चलो।”
आखिरी बार जब OT रूम के पास मौजूद एक नर्स से पूछा गया — “और कितनी देर लगेगी?”
जवाब मिला — “कम से कम 45 मिनट और लगेंगे, डॉक्टर अभी OT में हैं।”

परिजन ने आखिरकार एक ऑटो किराए पर लिया और भारी मन से बिना इलाज कराए घर लौट आए।

क्या मरीजों के साथ ऐसा व्यवहार उचित है?

इस घटना ने एक गंभीर सवाल खड़ा किया है — क्या निजी अस्पतालों की लापरवाही और मरीजों के साथ ऐसा बर्ताव स्वीकार्य है?
एक ओर जहां निजी अस्पताल भारी फीस लेते हैं, वहीं दूसरी ओर मरीजों के साथ इस तरह की उपेक्षा और अव्यवस्था आम होती जा रही है। क्या आम आदमी का इलाज करवाना आज भी एक “विशेषाधिकार” बनकर रह गया है?

➡️ इस पूरे मामले में अब तक न साउथ सिटी अस्पताल और न ही आरोग्य अस्पताल के किसी वरिष्ठ अधिकारी का बयान मिल सका है। हम प्रयासरत हैं कि अस्पताल प्रबंधन की प्रतिक्रिया भी प्रकाशित की जा सके।

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