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सूचना का अधिकार: लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण उपकरण !

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15 जून का दिन हमारे देश के लोकतंत्र के इतिहास में अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्यों कि 15 जून के दिन ही वर्ष 2005 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम(आरटीआई) को मंजूरी प्रदान की गई थी। वास्तव में इस अधिनियम का उद्देश्य प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण के कार्यकरण में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए भारत के नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकारियों के नियंत्रणाधीन सूचना प्राप्त करने का अधिकार देने की एक व्यावहारिक व्यवस्था स्थापित करना है। दूसरे शब्दों में कहें तो सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम भारत में सूचना तक नागरिकों की पहुंच को सुनिश्चित करता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि किसी भी सरकार की प्रणाली और प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये सूचना /जानकारी तक आम नागरिक की पहुँच सुनिश्चित करना बहुत ही आवश्यक कदम है। वास्तव में, यह कानून सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देता है।आरटीआई के तहत, देश का कोई भी व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण से जानकारी प्राप्त करने का अनुरोध कर सकता है, और प्राधिकरण को 30 दिनों के भीतर इसका जवाब देना होता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह अधिनियम भारत के नागरिकों को सशक्त बनाता है, क्यों कि यह कानून जहां एक ओर सरकार के कामकाज में पारदर्शिता लाता है, वहीं दूसरी ओर देश का कोई भी नागरिक सरकार के निर्णयों और कार्यों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो कोई भी भारतीय नागरिक राज्य या केंद्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों और विभागों से किसी भी जानकारी (सार्वजनिक सूचना) को प्राप्त करने का अनुरोध कर सकता है। हालाँकि, यह बात अलग है कि इस अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत सूचना से संबंधित नहीं होनी चाहिये। पाठकों को बताता चलूं कि इस अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण(सूचनाओं/जानकारियों) करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि इस अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) और निर्वाचन आयोग (इलेक्शन कमीशन) जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है।यह कानून सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है, क्यों कि जब किसी व्यक्ति के पास सरकार के कार्यों के बारे में कोई जानकारी अथवा सूचना उपलब्ध हो जाती है तो, कोई भी व्यक्ति सरकार के कार्यों को लेकर सरकार से सवाल पूछ सकता है और यदि कामकाज में कोई खामियां या कमियां हैं तो उन्हें सुधारने के लिए वह सरकार को प्रेरित कर सकता है। इस अधिकार के तहत देश के आम नागरिकों को जब सरकार के कार्यों के बारे में जानकारी होती है तो, आम नागरिक भ्रष्टाचार के मामलों को बखूबी उजागर कर सकते हैं और समाज व देश के सामने ला सकते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह अधिनियम हमारे देश के लोकतंत्र को मजबूत करता है, क्योंकि यह नागरिकों को सरकार के कामकाज में शामिल होने और अपनी आवाज उठाने का अधिकार देता है, लेकिन विडंबना की बात है कि आज कुछ लोग इस अधिकार का दुरूपयोग करते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि इस कानून के दुरूपयोग से सरकारी अधिकारियों में भय और निष्क्रियता पैदा हो सकती है, और अधिनियम का महत्व कम हो सकता है। यह बहुत दुखद है कि आज कुछ लोग आरटीआई का उपयोग किसी सरकारी अधिकारी को परेशान करने, ब्लैकमेल करने या अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए करते हैं और बात-बात पर आरटीआई लगाते हैं। वास्तव में, बार-बार आरटीआई लगाने के कारण बहुत बार लोक प्राधिकरणों (कोई भी सरकारी या सार्वजनिक निकाय या संस्था जो संविधान या संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून से स्थापित या गठित हो) के संसाधन व्यर्थ होते हैं। आरटीआई के दुरुपयोग के कारण न्यायालयों में भी मामले बढ़ सकते हैं। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज जरूरत इस बात की है कि आरटीआई अधिनियम के उद्देश्यों और उपयोगों के बारे में हम लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करें।इस कानून के दुरूपयोग की पहचान करने के लिए एक तंत्र की स्थापना किया जाना आज बहुत आवश्यक हो गया है। अंत में यही कहूंगा कि निश्चित ही आरटीआई लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है, लेकिन इसके दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी बहुत आवश्यक व जरूरी है, ताकि दूसरों को भी ऐसा करने से रोका जा सके।

 

सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व

युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।

मोबाइल 9828108858

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