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“पाण्डुलिपिविज्ञान एवं प्रतिलेखन” विषयक 21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के द्वितीय दिवस का विधिवत् समापन

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नलबाड़ी (24 जून 2025): कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं पुरातन अध्ययन विश्वविद्यालय में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित “पाण्डुलिपिविज्ञान एवं प्रतिलेखन” विषयक 21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का दूसरा दिन आज अत्यंत सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। संस्कृत वाङ्मय एवं भारतीय सांस्कृतिक संरक्षण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण इस कार्यशाला ने अतिथि वक्ताओं के गहन विचारों और प्रतिभागियों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से ज्ञानवर्धन का एक सशक्त मंच प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की शुरुआत विश्वविद्यालय के शोध छात्र श्री लिराज काफ्ले द्वारा भावपूर्ण वैदिक मंगलाचरण से हुई, जिससे संपूर्ण वातावरण पवित्र एवं शांति-पूर्ण हो गया। इसके उपरांत कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक एवं सर्वदर्शन विभागाध्यक्ष डॉ. रणजीत कुमार तिवारी द्वारा आत्मीय शैली में किया गया। कार्यक्रम में प्रमुख सहयोग साहित्य विभाग के सहायक आचार्य डॉ. छबिलाल उपाध्याय तथा धर्मशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. मैत्रेयी गोस्वामी द्वारा प्रदान किया गया।
द्वितीय दिवस का मुख्य आकर्षण नलबाड़ी महाविद्यालय के प्राचार्य एवं पाण्डुलिपिशास्त्र विशेषज्ञ डॉ. बसंत कुमार देवगोस्वामी का गहन एवं व्यापक व्याख्यान रहा। आज कुल चार सत्रों में उन्होंने कार्यशाला में तात्त्विक एवं व्यावहारिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा दी।
प्रथम सत्र:
प्रथम सत्र में डॉ. बसंत महोदय ने सांख्य दर्शन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसमें ‘आप्तवचन’ की प्रकृति पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने ‘एतिह्य’ शब्द की व्युत्पत्ति का विवेचन करते हुए पाण्डुलिपियों में उसके प्रयोग को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि जब हम किसी पाण्डुलिपि की ‘पुष्पिका’ को देखते हैं, तब उस पाण्डुलिपि के लेखनकाल, लेखक एवं शैली आदि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
इस सत्र में असम प्रदेश के प्राचीन मंदिरों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया। डॉ. बसंत कुमार देव गोस्वामी जी ने वहाँ की चित्रलिपियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये केवल लिपियाँ नहीं, बल्कि ‘भावलिपियाँ’ हैं – जो प्रत्यक्ष रूप में भावों की अभिव्यक्ति करती हैं।
द्वितीय सत्र:
इस सत्र में पाण्डुलिपियों की आंतरिक संरचना का शास्त्रीय विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। उन्होंने बताया कि किसी पाण्डुलिपि में केवल पाठ ही नहीं होता, बल्कि पुष्पिका, लेखशैली, ग्रंथनाम संकेत, तथा संपुटबन्धन के रूप में भी अनेक विवरण प्राप्त होते हैं। इन माध्यमों से पाण्डुलिपियों का कालानुक्रमिक वर्गीकरण संभव होता है।
तृतीय सत्र:
इस व्यावहारिक सत्र में पाण्डुलिपि लेखन सामग्री से संबंधित जानकारी प्रतिभागियों को दी गई। विभिन्न प्रकार की लेखन विधियों का प्रदर्शन कराकर छात्रों से उसका अभ्यास भी कराया गया।
चतुर्थ सत्र:
अंतिम सत्र में विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में संरक्षित विभिन्न प्राचीन पाण्डुलिपियाँ प्रतिभागियों को दिखाई गईं। डॉ. बसंत कुमार देव गोस्वामी महोदय ने वहाँ उपस्थित रहकर पठन अभ्यास भी कराया। इस दौरान शैव, वैष्णव, वैदिक एवं आयुर्वेद विषयों से संबंधित दुर्लभ ग्रंथ प्रतिभागियों को दिखाए गए।
सत्रों के माध्यम से पाण्डुलिपियों का महत्व, उनके संरक्षण की विधियाँ तथा प्रतिलेखन का शास्त्र विषयगत चर्चाओं के माध्यम से विस्तार से प्रस्तुत किया गया।
यह दिवस केवल वक्तृत्वप्रधान नहीं, अपितु संवादप्रधान भी रहा। अंतिम सत्र में पाण्डुलिपि विषय पर एक मुक्त चिंतन-मंथन आयोजित कर प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया, जो संपूर्ण कार्यशाला की आत्मा सिद्ध हुई।
दिन का समापन डॉ. रणजीत कुमार तिवारी द्वारा वैदिक शांति मंत्रों के उच्चारण से किया गया। सभी प्रतिभागी प्रेरित एवं उत्साहित प्रतीत हुए। उनके नवीन ज्ञान और अनुभव इस कार्यशाला की सार्थकता को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं।

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