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‘पाण्डुलिपिविज्ञानं प्रतिलेखनञ्च’ विषयक एकविंशतिदिनीय राष्ट्रीय कार्यशाला का पाँचवाँ दिन सम्पन्न — मैथिली लिपि का जीवंत प्रदर्शन तथा वैष्णव पदावली पाण्डुलिपि का अनुलेखन रहा मुख्य आकर्षण

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‘पाण्डुलिपिविज्ञानं प्रतिलेखनञ्च’ विषयक एकविंशतिदिनीय राष्ट्रीय कार्यशाला का पाँचवाँ दिन सम्पन्न
— मैथिली लिपि का जीवंत प्रदर्शन तथा वैष्णव पदावली पाण्डुलिपि का अनुलेखन रहा मुख्य आकर्षण
नालबारी, 27 जून 2025 — कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं पुरातन अध्ययन विश्वविद्यालय, नलबारी द्वारा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित “पाण्डुलिपिविज्ञानं प्रतिलेखनञ्च” विषयक 21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का पाँचवाँ दिन गरिमामय वातावरण में सम्पन्न हुआ।
इस दिवस की विशेषता यह रही कि प्रतिभागियों को मैथिली लिपि का प्रत्यक्ष अभ्यास करने का अवसर प्राप्त हुआ। साथ ही वैष्णव पदावली पाण्डुलिपि का अनुलेखन पूर्ण हुआ, जिससे प्रतिभागियों में उत्साह की विशेष झलक दिखाई दी।
दिन की शुरुआत गुवाहाटी विश्वविद्यालय के शोधार्थी श्री प्रकाश शर्मा द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण से हुई। कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक एवं सर्वदर्शन विभागाध्यक्ष डॉ. रणजीत कुमार तिवारी ने किया। डॉ. सुधाकर मिश्र (व्याकरण विभाग), डॉ. छबिलाल उपाध्याय (साहित्य विभाग) तथा डॉ. मैत्रेयी गोस्वामी (धर्मशास्त्र विभाग) ने सक्रिय सहयोग प्रदान किया।
इस दिवस के मुख्य वक्ता पं. भवानाथ झा थे, जो मैथिली लिपि परंपरा के विशेषज्ञ माने जाते हैं। उन्होंने चार सत्रों में प्रतिभागियों को पाण्डुलिपि विज्ञान एवं लिपिशास्त्र का प्रशिक्षण दिया।
प्रथम सत्र में पं. झा ने मैथिली लिपि के ऐतिहासिक विकास, प्राचीन पाण्डुलिपियों में उसके उपयोग तथा इसकी लिपिशास्त्रीय विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह लिपि मात्र भाषाई माध्यम नहीं, अपितु हमारी सांस्कृतिक पहचान भी है।
द्वितीय सत्र में उन्होंने स्वयं लिखकर मैथिली लिपि में मंत्र लेखन का अभ्यास कराया। अक्षर निर्माण की सूक्ष्म शैली, स्पर्श बिंदु, संयोगाक्षर आदि के व्यवहारिक पक्षों को स्पष्ट करते हुए प्रतिभागियों को मार्गदर्शन प्रदान किया।
तृतीय सत्र में विगत दिनों से चले आ रहे ‘वैष्णव पदावली’ पाण्डुलिपि के अनुलेखन कार्य का समापन हुआ। पं. झा के मार्गदर्शन में इस पाण्डुलिपि के अंशों का पाठ, निरीक्षण एवं संशोधन भी किया गया।
चतुर्थ सत्र में उन्होंने युवाओं को प्राचीन लिपियों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए प्रेरित किया। पाण्डुलिपि विज्ञान में समर्पण की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए उन्होंने शोध छात्रों को दिशा प्रदान की।
कार्यक्रम के समापन पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. प्रह्लाद रा. जोशी ने पं. भवानाथ झा को विशेष सम्मानपत्र एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया। कुलपति महोदय ने झा जी की निष्ठा, शिक्षण पद्धति और योगदान की भूरी-भूरी प्रशंसा की। उन्होंने सभी प्रतिभागियों को भविष्य के लिए शुभकामनाएँ भी प्रदान कीं।
कार्यक्रम में भारत के विभिन्न राज्यों से आए प्रतिभागियों ने अपनी अनुभूतियाँ साझा कीं। कुछ प्रतिभागियों ने पहली बार मैथिली लिपि को प्रत्यक्ष देखकर उत्साह प्रकट किया, वहीं कुछ अनुलेखन प्रक्रिया से प्रेरित होकर शोध के प्रति प्रतिबद्ध हुए।
इस प्रकार कार्यशाला का यह पाँचवाँ दिन न केवल लिपि प्रशिक्षण की दृष्टि से उपयोगी रहा, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा के संरक्षण की दिशा में भी एक उल्लेखनीय अध्याय के रूप में जुड़ गया।

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