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“75 साल का फर्ज़ी वोटर राज: सीमांचल से रायसीना तक”

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📕 ब्रेकिंग न्यूज़: न्यूज़ रूम के परदे के पीछे
कड़ी नंबर 03 – “75 साल का फर्ज़ी वोटर राज: सीमांचल से रायसीना तक”
✍️ लेखक: डॉ. अजय कुमार पांडेय – पत्रकार | अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया

“ग़ल्फ़ में स्मगलिंग के गैंग से लेकर बिहार में वोट की स्मगलिंग तक — मेरी पत्रकार से वकील बनने की यात्रा में एक सच्चाई हमेशा सामने आई: सत्ता हमेशा शॉर्टकट ढूंढती है, और भारत में ये शॉर्टकट होता है — वोटर लिस्ट।”

कांग्रेस ने शुरू किया था वोट का गोरखधंधा – और बिहार बना इसकी प्रयोगशाला
आज हम ईवीएम हैकिंग की बात करते हैं। लेकिन जरा पीछे जाएं, जब लोकतंत्र नया-नया था — उस दौर में ‘बूथ कैप्चरिंग’ नाम का हथियार ईजाद हुआ। और इसे जन्म दिया गया बिहार की धरती पर, बेगूसराय की धुंए और बारूद से भरी गलियों में।

इस खेल का सरगना था — कम देव सिंह, एक कुख्यात तस्कर, जो कांग्रेस का जानदार भक्त था। उसका मिशन था — कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) को किसी भी हालत में हराना। उस दौर में सीपीआई कोई विचारधारा नहीं, एक जनांदोलन थी — खासकर बेगूसराय-बेगूसराय-बरौनी इंडस्ट्रियल बेल्ट में।

कम देव सिंह ने कांग्रेस की राजनीतिक छाया में बूथों पर कब्जा करना, बैलट भरना, विरोधियों को डराना, और चुनाव को हिंसा का पर्याय बना दिया। सिस्टम आँख मूंदे खड़ा रहा। क्यों? क्योंकि कांग्रेस को डर था कि अगर मेरिट से चुनाव हुआ, तो CPI उन्हें उड़ा देगी। इसलिए ‘कम देव’ जैसे किरदार पूरे देश में उग आए।

आज की विडंबना देखिए — कांग्रेस, CPI और लालू यादव की RJD एक ही मंच पर खड़े हैं।

कांग्रेस ने बूथ कैप्चरिंग को जन्म दिया।
CPI उसकी पहली शिकार बनी।
फिर RJD ने दोनों का अंत किया।
और आज तीनों “धार्मिक सहिष्णुता” के नाम पर गलबहियां डाले घूम रहे हैं।

सीमांचल: फर्ज़ी वोटर बनाने की नई फैक्ट्री
बात यहीं खत्म नहीं होती। कहानी अब सीमांचल की ओर रुख करती है — किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जैसे ज़िले, जहाँ अब बूथ कैप्चरिंग नहीं, बल्कि जनसंख्या कैप्चरिंग होती है।

यहां पूरी की पूरी आबादी वोटर लिस्ट में घुसाई जा रही है — बांग्लादेशी घुसपैठिए, फर्जी राशन कार्ड, एक ही आदमी के कई वोट, और विरोधी जातियों के नाम सुनियोजित तरीके से हटाए जा रहे हैं।

और जैसे ही वोटर लिस्ट की जांच शुरू होती है, ये दल चिल्लाते हैं — “साज़िश है!”

“जो फर्ज़ी के दम पर सत्ता में हैं, वो असली वोटर से डरते हैं।”

मेरी खुद की जंग – मध्यप्रदेश में
2001 में, जब मैं नवभारत और सेंट्रल क्रॉनिकल में पत्रकार था, तब मैंने मध्यप्रदेश में फर्जी वोटर लिस्ट पर रिपोर्टिंग की। दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार बिजली, रोजगार, उम्मीद – सब कुछ गवां चुकी थी। फिर भी जीत गई। क्यों? क्योंकि वोट पहले ही डाले जा चुके थे — कागज़ पर।

मेरी रिपोर्ट से हड़कंप मच गया। नौ IAS अफसर एक रात में सस्पेंड हुए, पूरी वोटर लिस्ट दोबारा बनी। बीजेपी जीती — लेकिन मैं हार गया। न्यूज़रूम ने मुझे सजा दी। अंबिका सोनी, जो कांग्रेस की मीडिया मैनेजर थीं, मेरी रिपोर्ट्स ब्लॉक करवा दीं। मुझे ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। बीजेपी ने भी कोई इनाम नहीं दिया — न ही मैंने मांगा। मेरा इनाम था — सच।

दिल्ली का झुग्गी मॉडल और पूर्वांचली से धोखा
दिल्ली में, HKL भगत, जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार जैसे नेताओं ने झुग्गियों को वोट का कारखाना बना दिया। रातों-रात बस्तियां बसाई गईं, वोट दिए गए — बदले में वफादारी मांगी गई। लेकिन पूर्वांचली? उन्हें कहा गया — “आपके कागज़ अधूरे हैं”, “आपका नाम लिस्ट में नहीं है।”

हमने लड़ाई लड़ी। प्रतिनिधित्व माँगा। वोटर लिस्ट में बदलाव करवाया।

लेकिन जब AAP आई, जिन्होंने हमारे संघर्ष की फसल काटी, हम जैसों को हाशिये पर छोड़ दिया गया। हम मिट्टी खोदते रहे, वो महल बना कर चले गए।

अब 2025 में बिहार में वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन हो रहा है… तो कौन चिल्ला रहा है?
वही कांग्रेस, वही CPI, वही RJD — जो दशकों से फर्जी वोटरों के दम पर सत्ता में हैं। अब जब लिस्ट साफ हो रही है, तो इनके पैर कांप रहे हैं।

“लोकतंत्र के नाम पर फर्ज़ी राज चलाने वाले असली लोकतंत्र से डरते हैं।”

🎯 याद रखने वाले सच्चे पंच:
✔️ बूथ कैप्चरिंग कोई गैंगस्टरों का आइडिया नहीं था — कांग्रेस ने ही इसे गढ़ा।
✔️ सीमांचल आज का वोट-बैंक प्रयोगशाला है — फर्जी नामों से भरी हुई।
✔️ AAP एक साफ-सुथरी वोटर लिस्ट पर आई, पर जो लड़े थे वो किनारे कर दिए गए।
✔️ वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन सांप्रदायिक नहीं — संवैधानिक अधिकार है।

✍️ यह लेख लेखक की पत्रकारिता से न्यायपालिका की यात्रा का सारांश है, जो आज के भारत में लोकतंत्र के असली और नकली चेहरे को बेनकाब करता है।

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