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संबलपुर, उड़ीसा:: उड़ीसा के गंगाधर मेहर विश्विद्यालय में आयोजित दो दिवसीय बहुभाषी राष्ट्रीय साहित्य उत्सव धूमधाम से सम्पन्न हुआ। इसमें विभिन्न प्रदेशों से आए साहित्यकारों ने भाग लिया और साहित्य एवं संस्कृति का आदान प्रदान किया। इसमें जहां असम,उड़ीसा, दिल्ली,त्रिपुरा,पश्चिम बंगाल आदि से आए साहित्यकारों ने अपनी रचनाएं और पुस्तकों का आदान प्रदान किया,साथ ही उड़ीसा,बंगाल के गीत संगीत और असम के बिहू नृत्य की भी झलक पेश की। इस अवसर पर विशेष रूप से असम और उड़ीसा को जोड़ने वाले साहित्यकार स्वर्गीय लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ को याद किया गया और सभी ने संबलपुर स्थित उनके घर को राष्ट्रीय धरोहर बनाने का संकल्प किया।
संबलपुर का यह साहित्य महोत्सव, भाषा विविधता में एकता को बढ़ावा देते हुए आजीर कविता, गुवाहाटी और कलम परिवार, संबलपुर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया । कार्यक्रम 4 बजे से शुरू होना था,मगर असम से आए साहित्यकारों के ट्रेन लेट होने की वजह से 1 घंटा देरी से शुरू हुआ । गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सुशांत दास ने प्रदीप जलाकर महोत्सव का उद्घाटन किया। असम के पूर्व सांसद कुमार दीपक दास, विश्वविद्यालय के उप रजिस्ट्रार डॉ. उमा चरण पाटी, कवि डॉ. प्रदीप पांडा उद्घाटन समारोह में अतिथि के रूप में शामिल हुए। आजीर कविता के भोबेश दास भी मंच पर थे। कलम के अध्यक्ष तफिजुल हुसैन ने बैठक की अध्यक्षता की और सचिव खेतरामणि बीभार ने इसका संचालन किया। बिनय चलिया ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रामेन डेका का साहित्य महोत्सव के लिए एक विशेष संदेश रत्नज्योति दत्ता, जो दिल्ली में विशिष्ट अंतरराष्ट्रीय पत्रकार हैं, द्वारा इस महान सभा के लिए पढ़ा गया। अरुण बर्मन, संपादक, प्रज्ञा मेल, ने इस महोत्सव में दिल्ली के हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र का विशेष अंक दीपक कुमार दास, पूर्व-राज्य सभा सदस्य, को प्रस्तुत किया। ‘बुधि मार गपा’ – लक्षणनाथ बेज़बरुआ द्वारा ‘बुड़ही आंरु साधु’ के ओड़िया अनुवाद पुस्तक का पहले सत्र में विमोचन की गया। जिसका अनुवाद कार्य असम के नब मिश्रा द्वारा किया गया। प्रोफेसर हरिश चंद्र बेहरा ने पुस्तक का विमोचन किया। श्री करुणाकांत रॉय, प्रोफेसर गोवर्धन साहू, दीपक कुमार पांडा ने इस मौके पर बात रखी । ‘ओ’ मोर अपुनार देश’ असम के कवियों द्वारा प्रस्तुत किया गया जबकि सुश्री स्वस्ती होटे ने देवी सामलेस्वरी पर संबलपुरी भजन गाया। अगले दिन अर्थात रविवार को और तीन सत्र का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
अगले दिन का सत्र सुबह 9 बजे से शुरू हुआ। एक के बाद एक कवियों ने अपनी अपनी भाषा में कविताएं सुनाई,जिसमें उड़िया,असमिया,बंगला, हिंदी और अंग्रेजी आदि कविताओ का दर्शकों ने आनंद लिया। कवियों को स्मृति चिन्ह और प्रशस्ति पत्रों से भी सम्मानित किया गया। कविताओं के बीच में विभिन्न भाषा के लेखकों की पुस्तकों का विमोचन किया गया। जिसे विशेष रूप से दिल्ली से आए अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार अतिथि रत्नज्योति दत्ता और प्रज्ञा मेल के संपादक अरुण कुमार बर्मन ने विमोचित किया। इसके अलावा संबलपुर के कवि डॉ.प्रदीप पांडा, कलम परिवार के अध्यक्ष तौफीजल हुसैन, डॉ. भावेश दास आदि ने भी पुस्तक विमोचन किया। बीच बीच में गीत और संगीत का आदान प्रदान हुआ। जहां दर्शकों को संबलपुरी संगीत सुनने को मिला, वहीं असम का बिहू नृत्य पर झूमने को मजबूर होना पड़ा।





















