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कहानी सेहत

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सेहत

मोहना श्रीभूमि की रहने वाली थी वही प्रफुल सिलचर का रहने वाला था। प्रफुल के पिता का सिलचर में बहुत बड़ा घर था। वे गाड़ियों का कारोबार किया करते थे। प्रफुल ने यही के विश्वविद्यालय से एम.बी.ए की परीक्षा पास की थी। फिर कुछ साल दिल्ली में निजी कम्पनी में नौकरी करने के बाद वह घर वापस आ गया था। माँ की बिगड़ी तबियत तथा पिताजी द्वारा अकेले सबकुछ सम्भाल न पाने के कारण उसने सोचा क्यों न पिताजी के कारोबार को ही आगे बढ़ाया जाए। आखिर उसने कारोबार को आगे बढ़ाने और फलने-फूलने की शिक्षा ली थी तो किसके लिए? प्रफुल जब सिलचर लौट आया तो उसके माता-पिता ने स्थानीय अखबारों में इश्तेहार देकर लड़की की खोज की। काफी ढूँढने के बाद श्रीभूमि की मोहना पसंद आयी। मोहना पढ़ी-लिखी थी और श्रीभूमि के ही एक कॉलेज में पार्ट टाइम लेक्चरर की नौकरी कर रही थी। मोहना के पिताजी नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके थे। घर में छोटा भाई मुकुल और बहन कादम्बरी थी। वे भी पढ़-लिखकर दूसरे कॉलेज में पार्ट टाइम नौकरी ही कर रहे थे। रुपए-पैसे की इतनी दिक्कत नहीं थी लेकिन किसी बड़े खर्चे के लायक कमाई नहीं थी।

मोहना के पिता ने प्रफुल की माता-पिता से बात की और शादी के लिए कुछ महिनों का समय मांगा ताकि वे बेटी की शादी वे अच्छे से कर सके। मोहना भी अपनी शादी की बात से खुश थी। परन्तु उसके मन में कई प्रकार के अनचाहे डर सताने लगे थे। भविष्य कैसा होगा उसे पता नहीं था। उसकी कई अन्य मौसेरी,  ममेरी-चचेरी बहनों की शादी एवं उनका हाल देख मन-ही-मन सोच में पड़ जाती थी। उधर उसके पिताजी अपनी सबसे बड़ी और लाडली बेटी की शादी की तैयारियों में जुट गए थे।

मोहना ने अपने पिताजी को आर्थिक मदद के पेशकश की लेकिन उन्होंने ये कह कर मना कर दिया कि “माँ रे इतने दिनों तक तो तूने दिया ही है। तुम तीनों भाई-बहनों ने हमेशा मेरा साथ दिया है। वरना क्या तुम तीनों को पालना-पोसना और पढ़ाना-लिखाना क्या मैं कर सकता था? अब तुम बस अपने लिए कुछ करना चाहती हो तो करो।”

मोहना को पिताजी की बात छू गयी। वह अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट कर अपने आने वाले भविष्य के बारे  सोचने लगी। कुछ देर बाद वह उठकर आयने के सामने खड़ी हो जाती है। दुबला-पतला शरीर लेकिन सुघड़, लम्बे बाल कमर तक छूते थे। आयने के सामने खड़ी होकर वह सोचने लगी की शादी के दिन वह कैसी दिखेगी, साड़ी तो उसे पहननी नहीं आती थी। कॉलेज जाते समय भी वह साड़ी माँ से बंधवा लिया करती थी। वही उसकी जितनी बहनों की शादी हुई थी वे सभी शादी के बाद से ही साड़ी पहना करती थी, साथ-ही-साथ बहुत जल्दी बच्चे भी हो गए थे उनके। वे कुछ मोटी भी हो चली थी। मोहना को सबसे बड़ा डर इसी बात का था कि वह मोटी ना हो जाए। बच्चा हो या ना हो उसे किसी भी प्रकार से मोटापा पसन्द नहीं था। वजन बढ़ने के नाम से ही वह डरा करती थी। उसे वह दिन याद आ रहा था जब वह शोधछात्रा थी विश्वविद्यालय में तब अचानक कुछ कारणों से वह थाइरायड की बिमारी से ग्रसित हो चुकी थी। तब उसे डॉक्टर ने सलाह दी थी कि उसे अपना वजन घटाना होगा। थाइरायड को कम करने के लिए उसे सही आहार तथा नींद की ज़रूरत होगी। उसने डॉक्टर की सलाह से घर पर उसने अपने आहार को काफी नियंत्रित कर लिया था। नींद की उसे कोई चिंता नहीं थी क्योंकि उसे नींद अच्छी ही आती थी। लेकिन कभी उसे कोई परेशानी या किसी से झगड़ा हो जाता तो उसकी नींद से दुश्मनी हो जाती थी। सिर्फ इतना ही नहीं किसी की कही गयी  कटु बात, ताना या मज़ाक भी मोहना को बहुत परेशान किया करती थी। वास्तव में मोहना बहुत ही स्पर्शकातर व्यक्तित्व वाली लड़की थी। अपने इस व्यक्तित्व के कारण वह स्वयं भी बहुत सावधानी बरतती थी। अपने जीवन को उसने काफी हद तक अनुशासित कर रखा था। बातचीत में भी वह इतना ध्यान रखती कि वापस उसे कोई अनचाही बातें या विचार आदान-प्रदान में न मिले। फिर भी कभी-न-कभी उसे किसी से दो टूक सुनने के मिल ही जाते जिससे कि उसे बहुत परेशानी होती। वह बहुत गहरी सोच में चली जाती और रात-भर सोच-सोच कर नींद को कोसों दूर अपने से कर देती थी। इससे उसकी तबियत अगले दिन ही खराब हो जाती थी। विशेषकर पेट की समस्याएँ उसे होती थी। मोहना अपने इन्हीं विचारों में खोयी हुई थी कि उसकी माँ उसे खाने पर बुलाती है। शाम से रात हो जाती है मगर मोहना को पता ही नहीं चल पाता है। मोहना खाना खाकर अपनी माँ के साथ रसोई समेटने लगती है।

उसकी माँ कहती है –“ जा तू जाकर सो जा। रात के दस बज रहे हैं। कल तुझे कॉलेज भी जाना है। मैं कादम्बरी को बुला लूंगी।” “माँ वह टेबल साफ कर रही है। मैंने उसे कल कॉलेज जाने से पहले अपना और मेरा बैग तैयार करने और साड़ी निकाल कर रखने के लिए कहा है।”

माँ –“तूने उसे साड़ी निकालने के लिए कहा है! तब तो हो गया। अलमारी में सब तितर-बितर कर देगी। तू जा जाकर अपने और उसके कपड़े तैयार रख। मैं रसोई खुद समेट लूंगी। जा ये सब काम अब छोड़ दे। कुछ दिनों में तेरी शादी हो जाएगी। ये सब काम करके अपने हाथ गंदे मत कर। तेरे हाथों को अब थोड़ा आराम दे। थोड़े मुलायम होंगे तो इसमें चूड़ियाँ अच्छी लगेंगी।”

“माँ, बेकार की बातें मत करो। मेरे काम न करने से हाथ मुलायम होने लगे तो हो गया। जैसे मेरे हाथ हैं, वैसे ही रहेंगे।”

“अरे तू जा ना। ये बर्तन मैं धो लूंगी।”

“नहीं माँ, तुम धोती हो तो सारा कपड़ा भिगो लेती हो। इतनी देर तुमसे खड़ा भी नहीं होना चाहिए। पैर दुखेगा। लाओ मैं कर देती हूँ। मैं जल्दी भी कर दूंगी और फिर जल्दी सो जाएंगे।”

काफी मनुहार के बाद मोहना अपनी माँ के साथ रसोई समेटने का काम पूरा करती है। उधर उसकी बहन भी अगले दिन कॉलेज जाने के लिए दोनों के बैग का सामान ठीक करती है तथा साड़ियाँ भी निकाल कर हैंगर में रख देती है। फिर वह घर में इधर-उधर बिखरे सामान को समेट कर पूरा घर ठीक-ठाक कर देती है। दोनों बहनों की आदत एक समान थी। माँ को अकेले घर समेटने या सजाकर रखने में कोई परेशानी न हो इसलिए वे दोनों कॉलेज से आने के बाद तथा रात को सोने से पहले ये सब काम किया करती थी ताकि घर सजा संवरा और व्यवस्थित बना रहे। वही उनके पिताजी रात को सोने से पहले अपने एक पूराने कम्प्युटर में दिन भर का हिसाब-किताब लिखकर रखा करते थे। ये उनकी दशकों पुरानी आदत थी। मध्यम वर्ग का आदमी हमेशा हिसाब-किताब पर ही निर्भर रहता है। उसका भाई भी अपने पिता के साथ बैठकर उनकी मदद में लगा हुआ था। फिर सभी लोग अपना-अपना काम निपटा कर सो जाते हैं। अगले दिन मोहना के घर प्रफुल के फूफा आते हैं तथा वे बता जाते हैं कि मोहना और प्रफुल का मंगलाचरण का दिन जल्द-से-जल्द तय करने का आग्रह किया है प्रफुल के माता-पिता ने। इस पर मोहना के पिताजी भी उनसे बात करते हैं। दोनों के बीच काफी विचार-विमर्श के बाद यह तय होता है कि आज से दो हफ्ते बाद ही मंगलाचरण का अनुष्ठान होगा। मंगलाचरण असम के सिलेटी बंगाली शादी का महत्वपूर्ण अंग होता है। इस दिन विवाह की तिथि तय होती है तथा विवाह से पहले होने वाले अन्य सभी अनुष्ठान पानोखिलि, रूपशी पूजा, काली पूजा, शरषमात्रिका पूजा, गाए हलूद, आद्रीस्नान, अदिवास, नांदी मुखेर बारा, शुंदा-मेथी-बाटा, चुरा पानी, विवाह, बासी विवाह आदि का भी समय इत्यादि भी तय होता है।

तय दिन और समय पर काफी धूमधाम से मंगलाचरण का अनुष्ठान सम्पन्न होता है तथा विवाह का दिन दस दिन बाद तय हो जाता है। मोहना और प्रफुल की बंगाली रीति से दस दिन बाद शादी भी हो जाती है। मोहना जहाँ अपनी शादी से काफी प्रसन्न थी, वहीं उसे अपने माता-पिता को छोड़कर जाने का दुख भी था। बासी विवाह के बाद शाम को विदाई के समय वह बहुत रोती है। सिलेटी परिवारों में रस्म होती है कि बहू ससुराल की छत नहीं देख सकती जब वह पहली बार आती है। माता-पिता तथा अपने भाई-बहन से वह लिपट कर बहुत रो रही होती है। तब उसके पिताजी उसे कहते हैं, अरे, तू तो ज्यादा दूर थोड़े ही जा रही है। बस दो-तीन घंटे का रास्ता है। जब चाहे तू चली आना मुझसे मिलने के लिए। नहीं तो वीडियो कॉल पर बात कर लिया करना। मोहना पिताजी की बात सुनकर रोते-रोते हँसने लगती है।             मोहना के विदाई के समय उसकी बहन उसके साथ ससुराल जाती है जो कि सिलेटियों का नियम था। ससुराल में बेटी को कभी भी अकेले पहली बार विदा नहीं किया जाता था। बल्कि उसके मायके से कोई-न-कोई साथ आता था विशेषकर बहन। काल रात्री के बाद जब ससुराल में चतुर्थमंगल का अनुष्ठान पूरा हो जाता एवं दुबारा से फिराजात्रा में नयी बहू अपने पिता के घर आती तो उसके साथ बहन वापस लौटती थी। मोहना की शादी में भी ये सारी रस्में पूरी की गयी। फिराजात्रा के बाद जब मोहना वापस लौट रही थी तब उसकी बहन ने उसे अपनी तबियत ठीक रखने की हिदायत दी क्योंकि शादी की रस्मों में शामिल होने के कारण वह कई दिनों से अच्छी नींद नहीं ले सकी थी। उसका पेट बहुत खराब हो गया था। विशेषकर शादी के हेवी खान-पान से उसकी दशा बहुत खराब थी। लेकिन मोहना ने ये बात ससुराल में किसी को नहीं बताया कि कही शर्मिंदगी न उठानी पड़े, न ही अपनी बहन या माँ को। लेकिन बहन कादम्बरी को पता लग ही गया था। वही छोटी बहन को ससुराल वालों की कई सारी चीज़े देख समझ में आ चुका था कि उसकी बहन को यहाँ बहुत तकलीफें झेलनी पड़ सकती है क्योंकि वे लोग बहुत ही दिखावा पसंद लोग थे। उन्हें हमेशा अपनी प्रशंसा सुनने वाले लोग ही पसंद थे। मुखर स्वभाव के होने के बावजूद भी वह किसी से कुछ नहीं कहती है कि कही बहन को ससुराल में कोई दिक्कत न हो।

मोहना और प्रफुल की शादी हुए तीन महीने हो चुके थे। आज मोहना और प्रफुल बाज़ार जाने का प्रोग्राम बनाते है। सिलचर में चैत्र सेल लगी है। ये सिलचर में हर साल बांग्ला नव वर्ष से पहले आता है। साथ-ही-साथ बासंती दूर्गा पूजा भी कुछ दिन में शुरु हो जाएगा। बाज़ार की रौनक देखने लायक है। हर तरफ नया-पुराना माल दुकानदारों ने अच्छे से सजा रखा है। लोगों की भीड़ जमा है दुकानों पर। सब कोई अपनी पसन्द  या ज़रूरत की चीज़े लेने में व्यस्त है। विशेष कर चैत्र दूर्गा पूजा और नए साल के लिए नए कपड़े ले रहे हैं। मोहना और प्रफुल भी इसीलिए बाज़ार आते हैं। वही प्रफुल अपने कुछ मित्रों से भी मोहना को मिलवाने की सोचता है। वे लोग बाज़ार में ही मिलने की योजना बनाते  हैं। अपने दोस्तों से मिलवाकर वे दोनों सिलचर के सेन्ट्रल रोड पर खरीदारी करने लगते हैं। मोहना को अपने लिए कुछ घर के कपड़े लेने थे जिसके लिए उसने प्रफुल से कह रखा था। सास से इजाजत लेकर ही वह प्रफुल के साथ खरीदारी करने आती है। एक दुकान पर जब प्रफुल उसे कुछ नाइटी दिखाता है तो वह यह कहकर मना कर देती है कि उसे घर पर सलवार-कमीज़ ही पहनने की आदत है। नाइटी उसे पसन्द नहीं है। इस पर प्रफुल उसकी तरफ मजाकिया हँसी हँसकर चुप रह जाता है। काफी छान बीन कर मोहना अपने लिए चार जोड़ी सलवार सूट लेती है। उसने अपनी सास को बहुत मुश्किल से मनाया था कि वह शादी के बाद बाहर जाते समय साड़ी पहन लेगी लेकिन घर में उसे सलवार सूट ही पहनने दिया जाए। सास ने उसे कहा था कि नयी बहू साड़ी में ही सुन्दर लगती है लेकिन मोहना को पता था कि साड़ी पहनना उसके लिए किसी मल्ययुद्ध से कम नहीं है।मोहना और प्रफुल खरीदारी खत्म कर एक चाट वाले की दुकान पर जाते हैं। प्रफुल अपने लिए समोसा चाट का ऑर्डर देता है। वह मोहना के लिए भी कहता है लेकिन मोहना मना कर देती है।

तब प्रफुल कहता है –“अरे तुम लड़कियों को तो चाट खाने का बहुत शौक होता है। लेकिन लगता है मेरी बिवी को ही पसंद नहीं है।”

“हाँ प्रफुल मुझे पसंद नहीं है। एक-दो बार खाया था कॉलेज की एक दोस्त के साथ लेकिन मेरा पेट खराब हो जाता है। वैसे भी न जाने ये लोग कितना हाइजीन मेंटेन करते होंगे।”

प्रफुल मोहना की बात सुनकर व्यंग्यात्मक हँसी हँस देता है। वो उस समय उसे कुछ नहीं कहता लेकिन मन-ही-मन वह थोड़ा सा क्रोधित हो जाता है क्योंकि मोहना ने दो बार प्रफुल की इच्छा नहीं मानी लेकिन उसने उस समय अपने आप को संयमित कर लिया। प्रफुल ने घर में अपने माता-पिता के लिए कुछ आलू चॉप तथा पकौड़े पैक करवा लिए थे। ताकि वे घर पर आराम से खा सके। घर पहुँचते-पहुँचते दोनों को सात बज जाते हैं। मोहना घर आकर साड़ी बदलती है। उसकी सास उसे बाज़ार से लाए गए सामान को दिखाने के लिए कहती है। मोहना उन्हें सामान दिखाती है जिसमें उसने उसकी सास के लिए सुन्दर-सुन्दर तीन साड़ियाँ ली थी। वही ससुर जी के लिए भी वह दो कुर्ते और पाजामा लेकर आयी थी। उसकी सास उससे पूछती है कि वह अपने लिए क्या लेकर आई है तो मोहना बहुत घबराहट में अपने चार सलवार सूट दिखाती है। इस पर उसकी सास उसे कहती है कि ये घर में ही पहना करना बाहर पहनने की जरूरत नहीं है। तब मोहना स्वीकृति देती है। इसके बाद वह झटपट रसोई में जाकर सबके लिए चाय बनाती है। उधर प्रफुल घर वालों के लिए लाए हुए खाने को गरम करने लगता है। फिर चाय और चॉप-पकौड़ी सर्व करने के बाद सभी चाप-पकौड़ी खाने लगते हैं। ऐसे में जब मोहना को उसकी सास कहती है कि तुम भी एक खाओ तो मोहना मना कर देती है कि वह बाहर का तला-भुना नहीं खाती। उसे पसन्द नहीं है। इस बात पर मोहना की सास उसे कहती है –

“अरे कितने प्यार से लाया है वह। खा लो। एक बार खा लोगी तो कुछ नहीं होगा।”

मोहना फिर भी कहती है कि उसकी इच्छा नहीं है। इस पर प्रफुल थोड़ा चिढ़कर अपनी माँ से कहता है कि –“रहने दो माँ। किसको इतना कह रही हो। बाप के घर में कभी खाया नहीं तो इसको स्वाद का क्या ही पता चलेगा। ओह! सॉरी मेडम को तो हाइजीन पसंद है और ये तो शायद गोबर से बना होगा।”

मोहना समझ जाती है कि प्रफुल बात का बतंगड़ बना रहा है। लेकिन वह नयी दुल्हन है इसलिए कुछ कह नहीं सकती थी। वह चुपचाप सास की तरफ देखती है और सास उसे बाहर से लाए पकौड खाने देती है ताकि यही पर मामला खत्म हो जाए। उस दिन मोहना को पहली बार प्रफुल के वास्तविक व्यक्तित्व का पता चलता है। मोहना वहाँ से उठकर रात के खाने का इंतज़ाम करने रसोई में चली जाती है। वहाँ जाकर वह अकेले में बहुत रोती है। प्रफुल के रूखे व्यवहार से उसका पहली बार दिल टूट जाता है। पर अपने आप को संभाल कर वह काम पर मन लगाने की कोशिश करती है। उसने बहुत जल्दी ही खाना बना लिया था और वह अपने सास-ससुर तथा पति को रात के खाने के लिए बुलाने जाती है। जब वह कहती है कि खाना बन चुका है गरम-गरम सबको खा लेना चाहिए तो सास कहती है –

“अरे अभी तो बस नौ ही बजे है। इतनी जल्दी कोई नहीं खाएगा। फिर तुम्हारे पिताजी को न्यूज देखना है। तुम रख दो और जाकर अपने कमरे में आराम करो। दस बजे खाएंगे।”

मोहना को उस समय तेज़ भूख लगती है। उसे जल्दी खाकर जल्दी सोने की आदत थी ताकि अगले दिन वह कॉलेज जा सके। लेकिन शादी के बाद से जब से वह सिलचर आयी है तो उसकी नौकरी छूट चुकी थी। अगले दिन कॉलेज तो जाना नहीं पड़ता था। मगर मोहना को अपने दिन याद आ रहे थे। बचपन की आदत है समय पर खाना , समय पर सोना। मगर यहाँ तो सबकुछ उलटा था। मोहना अपनी सास से कहना चाहती थी कि रात का खाना जल्दी खाना सेहत के लिए अच्छा है लेकिन वह चुप रह जाती है। कमरे में जाकर वह देखती है कि प्रफुल अपनी लैपटॉप पर पिक्चर देख रहा था। वह उसके पास जाकर प्यार से कहती है –

“सुनो।” प्रफुल के आनन्द में बाधा पहुँचने पर वह थोड़ा झिड़कते हुए क्या हुआ कहकर उसकी तरफ देखता है तो मोहना थोड़ा सा घबरा जाती है लेकिन स्वयं को संभालते हुए कहती है –

“देखो मैंने खाना बना दिया है। तुम सब जल्दी आकर खाना खा लोगे तो मेरा काम आसान हो जाएगा। रसोई भी समेटकर रखनी पड़ती है। फिर रात का खाना देर से खाना अच्छा नहीं है। तुम्हारी-हमारी बात अलग है लेकिन माँ और बाबा को तो जल्दी ही खा लेना चाहिए।”

प्रफुल तब गुस्से में आँखे मींच कर उससे कहता है कि “शाम को चाय-पकौड़ी और आलू चॉप खाकर पेट बहुत भरा हुआ है। अभी इतनी जल्दी कोई नहीं खाएगा। वैसे ही कौनसा तुम्हें सुबह कॉलेज जाना है। काम जल्दी निपटा कर क्या करोगी? वैसे भी खाली दिमाग में न जाने क्या-क्या सोचती रहती हो। अभी जाओ इधर से मुझे डिस्टर्ब मत करो।”

मोहना को यू प्रफुल का उसके कॉलेज जाने की बात पर चुटकी लेना बहुत बुरा लगा। उसने सोचा भी नहीं था कि नयी-नयी शादी के बावजूद भी प्रफुल उसके साथ ऐसा व्यवहार करेगा। हार कर मोहना वहाँ से चली जाती है। रसोई में वह दुबारा वापस आती है। वह फिल्टर से पानी लेकर पीने लगती है। तेज भूख के साथ-साथ सास और पति द्वारा मिले ठण्डे व्यवहार से उसका दिल टूट जाता है। वह पानी पीते-पीते सिसकियाँ लेने लगती है। वह चुपचाप रसोई में ग्लास भर-भरकर पानी पीती है ताकि उसकी भूख की ज्वाला शांत हो सके साथ ही उसका रोना भी थम जाए। लेकिन शादी के महज तीन महिने के अंदर ही उसके ससुराल वालों की हरकतों से वह परेशान थी। उसे तब उसके पिता की कुछ बातें याद आने लगती है कि प्रत्येक लड़की को ससुराल जाने पर वहाँ के माहौल के अनुसार ढलना होता है। वहाँ के रहन-सहन के तौर-तरीके सीखने होते हैं। जो जितनी जल्दी इसमें ढल जाए उसे उतनी ही जल्दी आराम मिलता है। मोहना पिता की बातों के अनुसार ढलना चाह रही थी लेकिन उसे बड़ा अजीब लग रहा था कि ये कैसा ढलना है जहाँ अपनी सेहत और आत्मसम्मान की ही कुर्बानी देनी पड़े। काफी देर तक अकेले रसोई में मोहना अपने आँसुओं को छुपा-छुपा कर पोछती है तथा अपने पिता की बातें याद कर स्वयं को संभालने की कोशिश करती है। इस बीच उसकी सास आती है तथा सबके लिए खाना लगा देने की बात कहती है। मोहना खाना लगा देती है। ससुराल में उसने यह नियम देखा कि घर के सारे मर्द पहले खाते हैं तथा औरतें बाद में खाती है। मोहना अपनी सास के साथ खाना लगाती है तथा एक-एक कर पति और ससुर को परोस कर खाना देती जाती है। वे लोग काफी समय लगाकर खाना खाकर उठते हैं। उनके उठते-उठते लगभग पौने ग्यारह बज जाते हैं। इसके बाद जब मोहना अपनी और सास के लिए थाली लगाती है तो देखती है कि सारा गरम भात तो खत्म हो चुका है, थोड़ा बहुत बचा है। तब वह सास से पूछती है कि क्या दुबारा से भात बनाना पड़ेगा तो सास कहती है कि दुबारा भात बिठाने की ज़रूरत नहीं है। दोपहर का भात बच गया था जिसे उन्होंने गरम कर लिया है उसी से काम चला लेंगे। मोहना ने अपने बचपन में गरीबी देखी थी इसलिए वह बासी भात की भी कीमत समझती थी। खाना बर्बाद करना उसे पसंद नहीं था। इसलिए वह कुछ नहीं कहती है। वह ताज़ा खाना अपनी सास की थाली में परोस देती है और स्वयं वह बासी भात लेकर खाती है। वह थोड़ा सा ही खाना लेकर खाती है लेकिन सास उसे तब बाकी सब्जियाँ तथा मछली की तरकारी खाने को देती है। मोहना मना कर देती है। सास जब पूछती है तो वह कहती है कि इतनी देर रात उससे खाया नहीं जा सकता और पेट में जगह भी नहीं है। सास कुछ नहीं कहती और चुपचाप दोनों खाना खाकर उठ जाती है। मोहना जाकर रसोई समेटने लगती है। सारा काम खत्म कर जब वह सोने आती है तो पौने बारह बजते हैं। ये मोहना के जीवन में पहली बार था कि यह इतनी देर रात तक जगी हो। आम दिनों में वह अब तक सोकर किसी दूसरे लोक में होती थी। मोहना जब सोती है तो उसे दिन भर की बातें याद आती है। वह प्रफुल के व्यवहार से बहुत परेशान तो थी ही साथ ही अपनी सास की उदासीनता से भी। वह रात भर इन्हीं बातों को सोच-सोच कर ठीक से नहीं सो पाती है। उधर प्रफुल की खर्राटों की आवाज़ भी उसे परेशान कर रही थी। जैसे-तैसे रात बीतती है। अगले दिन जब वह उठती है तो सुबह के साढ़े सात बज जाते हैं। उसे उठते ही अपने पेट में तेज़ दर्द सा महसूस होने लगता है। उसका पेट लगभग फूला हुआ सा था तथा उसे चक्कर सा आने लगता है। किसी प्रकार वह स्वयं को संभाल लेती है। जब वह वाशरूम से बाहर निकलती है और अपने बाल संवारती है तो उसे उसके ससुर की आवाज़ सुनाई देती है जो कि अपनी पत्नी को उपदेश दे रहे थे कि बहू को सुबह जल्दी उठने के लिए बोला करो। अब वह आयी है तो तुम क्यों रसोई में सुबह-सुबह लगी हो। मोहना सोच में पड़ जाती है कि कैसे लोग है एक तो न खुद समय पर खाते हैं न ही समय पर सोते है, बाहर का सड़ा खाना खाना इनके लिए अमीरी दिखाने का शौक है, वही ये लोग चाहते हैं कि मैं इस घर में नियम से चला करू। मोहना को तब बहुत गुस्सा आ रहा होता है। वह चिढ़ते हुए रसोई घर में जाती है जहाँ सास उसे देखकर कहती है –

“आ गयी! ठीक है अभी जाकर प्रफुल को ये रोटी और बैंगन की भाजी दे आओ। उसे और पिताजी को दुकान भी जाना है।”

मोहना जाकर चुपचाप दे आती है। फिर वह अपनी सास से पूछती है कि उन्होंने नाश्ता किया या नहीं जिसपर सास कहती है –“अरे कहाँ मैंने नाश्ता किया। रात को पता नहीं क्यों पेट में दर्द हुआ था तो सो नहीं पायी। इस पर भी सुबह-सुबह छः बजे से उठकर तुम्हारे ससुर और पति के लिए खाना बनाने की तैयारी में लगी थी। तुम्हें तो अपनी जिम्मेदारियों का एहसास ही नहीं है।” अपनी सास की इन बातों से मोहना दुखी होती है। वह सास को रोटी और बैंगन की भाजी देती है तथा चाय बनाकर सबको दे आती है। अनिद्रा के कारण मोहना का पेट सुबह से खराब रहने की वजह से वह सुबह का नाश्ता नहीं कर पाती है। लेकिन ससुराल वालों का रवैया वह जानती थी, इसलिए वह चुपचाप घर के कामों में लग जाती है। फिर शाम को जब प्रफुल घर आता है तो उसके हाथों में फिर से बाहर से खरीद कर लाए गए खाने का सामान देखती है तो वह परेशान हो जाती है। चाय पीते समय वे लोग उसे दुबारा खाने के लिए कहते हैं तो वह पिछले दिन की बात याद कर अनिच्छा के बावजूद बाहर का खाना खाती है। इस कारण उसे और अधिक कष्ट होता है। पर वह कहे किससे? कोई सुनने वाला तो है नहीं।

ये अब रोज़ का सिलसिला होने लगा था। मोहना से अब सब्र नहीं हो पा रहा था। वह सोचती है कि उसे कुछ करना होगा वरना उसे मुक्ति नहीं मिलने वाली है। शादी के अब पाँच महीने हो गये थे। इसी बीच मोहना की उसकी एक सहेली की शादी का कार्ड मिलता है। उसकी शादी श्रीभूमि में होगी। मोहना अपनी सास को बताती है। उसकी सास कहती है कि वह प्रफुल को लेकर शादी के एक दिन पहले चली जाए और शादी अटेन्ड करके आ जाए। मोहना पहली बार खुश होती है। शाम को प्रफुल के घर आने पर वह उसे शादी के न्योते के बारे में बताती है। प्रफुल भी तैयार हो जाता है। मोहना कहती है कि वह शादी अपने पिता के घर रहकर अटेन्ड करेगी तो प्रफुल मान जाता है। मोहना सम्मति पाकर शादी में जाने की तैयारी करने लगती है। वह अपनी साड़ियाँ तथा गहने वगैरह निकालकर पहले से ही तय करके रखती है। फिर न जाने क्या सोचकर वह एकाएक अपने आप को आयने के सामने निहारने लगती है। शादी के बाद से उसे आयने के सामने आने के मौके तो कई बार मिले लेकिन उसने कभी अपने आप को अच्छे से देखा नहीं था। वह तो बस किसी तरह नहाँ कर अपने माथे पर सिन्दूर की बिन्दी लगाकर माँग भरकर घर के कामों में लग जाती थी। नौकरी से भी ज्यादा घर के काम होते हैं ये इतने दिनों में वह अच्छी तरह समझ चुकी थी। उसने देखा कि वह बहुत मोटी हो चुकी है। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे इतनी मोटी हो गयी है। खाती तो वह इतना नहीं है कि मोटापा हो सके। वही उसके चेहरे पर भी कुछ मुहासे और दाग पड़ गए थे जिसे उसने कई दिन पहले भी देखा था मगर उसने नज़र अंदाज कर दिया था। फिर अचानक वह अपनी शादी के जोड़े का ब्लाउज निकाल कर उसे पहनती है तो उसे वह तंग लगता है। तब उसे बहुत दुख होता है कि जिस बात का डर था वही हुआ। आखिर वह मोटी हो ही गयी। मोहना कमरे में चारों तरफ इधर-उधर घूर-घूर कर देखती रहती है तथा अपने विचारों में खो जाती है। इतने में उसकी सास उसे बुलाने आती है। सास के कमरे में प्रवेश होते ही मोहना अपने आप को संभालती है। तब उसकी सास उससे पूछती है तो वह बताती है कि उसकी साड़ी के ब्लाउज उसे ठीक करवाने पड़ेंगे। सास उसकी बात सुनकर उसे अपने एक टेलर का पता बता देती है। मोहना शाम तक अपने सारे कपड़े ठीक करवा कर लाती है। मोहना और प्रफुल श्रीभूमि जाकर शादी अटेंड करते हैं जहाँ उसकी कई सहेलियाँ मोहना के मोटी हो जाने पर चिढ़ाती हैं। मोहना उसे हँसी-मज़ाक की तरह ले लेती है लेकिन मन-ही-मन वह बहुत दुखी होती है।एक दिन वह अपने मोबाइल पर वजन बढ़ने के कारणों के बारे में पता लगाने की सोचती है। सारे कारणों को पढ़ने के बाद वह तय करती है कि वह अपना वजन घटाएगी। वह अब बाहर का कुछ भी तला-भुना या पैकेट वाला न खाने की कसम लेती है। वह अपने लिए कुछ नियम बनाती है तथा वह उस पर अमल करती है। तीन सप्ताह तक वह अपने कठोर नियमों का पालन करती है तथा व्यायाम भी करती है, लेकिन जब उसके वजन या सेहत पर कोई भी फ़र्क नहीं आता तो वह सोचती है कि क्यों न वह सीधे किसी डॉक्टर से ही जाकर पूछ ले। अगले दिन मोहना घर का सारा काम खत्म करके अपनी सास से कहती है कि उसे डॉक्टर के पास जाना है। वह किसी गाईनी से मिलना चाहती है। मोहना ने पढ़ रखा था कि मुँह पर होने वाले मुहासे महिलाओं के प्रजनन तथा आंतरिक अंगों में होने वाली गड़बड़ी के कारण होती है जिसका इलाज किसी गाईनी (स्त्री रोग विशेषज्ञ) द्वारा ही संभव है। मोहना की सास ये बात सुनकर समझ बैठती है कि शायद मोहना माँ बनने वाली है। वह तब कुछ नहीं कहती है और मोहना को सीधे लेकर अपने एक परिचित महिला डॉक्टर के पास ले चलती है जो कि स्त्री रोग विशेषज्ञ थी। वहाँ जाकर मोहना के मुँह खोलने से पहले ही उसकी सास कहने लगती है कि लगता है कि बहू उम्मीद से है। डॉक्टर उनकी बात सुनकर मुसकुराती है। परन्तु जब वह मोहना से पूछती है तो मोहना बताती है कि उसे ऐसे कोई लक्षण नहीं दिख रहे हैं। तब डॉक्टर मोहना का परीक्षण करने के लिए अंदर ले जाती है। डॉक्टर मोहना की सास को बाहर प्रतीक्षा करने के लिए कहती है। मोहना मौका देखकर डॉक्टर से बात करती है। वही बताती है कि उसकी शादी को महज छः महीने ही हुए हैं। वही उसे मासिक धर्म भी इन कुछ  महिनों में समय पर नहीं आया है। उसका वजन भी बढ़ गया है तथा मुख पर दाग हो गए है। तब डॉक्टर उससे उसकी दिनचर्या भी पूछती है तो वह सबकुछ बता देती है। जिस पर डॉक्टर उसे कहती है कि वह पी.सी.ओ.डी की बीमारी से ग्रसित हो चुकी है। ये सुनकर मोहना को बहुत बड़ा झटका लगता है। मोहना बहुत निराश होकर वापस डॉक्टर के बैठक में आती है। तब डॉक्टर उसकी सास को बुलाकर बात करती है। डॉक्टर से ये सुनकर मोहना की सास को भी बड़ा झटका लगता है कि मोहना माँ नहीं बनने वाली है। तब डॉक्टर से वह पूछती है कि मोहना को क्या हुआ है तो डॉक्टर बताती है –

“देखो दीदी मोहना को पी.सी.ओ.डी है। ये बिमारी तब होती है महिलाओं में जब वे अनिद्रा, बहार का तला-भुना खाना तथा तनाव पूर्ण वातावरण में रहती है। इसके लक्षण ही है वजन बढ़ना, पेट खराब रहना तथा बालों का झड़ना आदि। इसके अलावा भी कई अन्य लक्षण भी दिखाई देते हैं। आप अपनी बहू को ठीक से 8-9 घण्टे सोने का समय दे। साथ ही उसके खान-पान का ध्यान उसे रखना होगा और व्यायाम भी करना होगा। मैं आपको सभी चीजें समझा दूंगी। आपकी बहू को ये सबकुछ करना होगा। यदि उसने ये सारे नियम मान लिये तो वह जल्दी से स्वस्थ हो जाएगी नहीं तो फिर आप नहीं जानती कि ये बीमारी एक बार होती है तो जल्दी छूटती नहीं है। इसके कारण माँ बनने में भी दिक्कतें आती है। मैं अभी तीन महीने की दवाई और कुछ ज़रूरी परीक्षण लिखकर देती हूँ। कुछ हिदायतें भी दे रही हूँ। आपकी बहू को ये हिदायतें माननी पड़ेगी।”

मोहना की सास ये सारी बातें सुनकर मन-ही-मन सोचने लगती है कि मोहना ने शायद अपनी बीमारी हमसे छुपाई है और यहाँ घर का काम इससे नहीं होता तो उसने डॉक्टर के पास आकर हमें बदनाम करने का बहाना बनाया है। डॉक्टर के यहाँ से जब दोनों महिलाएँ घर आती है तो मोहना की सास उसे रात के भोजन के लिए कहकर कमरे में चली जाती है। वह अपने पति और बेटे को सारी बातें बताती है। जिससे वे दोनों भी बहुत नाराज़ हो जाते हैं। इसके बाद प्रफुल रसोई में जाकर मोहना पर चिल्लाने लगता है कि उसने अपनी बीमारी के बारे में उसे क्यों नहीं बताया और ये सब क्या नया नाटक उसने डॉक्टर के पास जाकर खेला है। अब डॉक्टर को पता चल गया है तो और लोगों को भी पता चलेगा कि प्रफुल की बीवी माँ नहीं बन सकती तो लोग उसका मज़ाक बनाएंगे। तब मोहना का भी पारा चढ़ जाता है। वह भी तब गुस्से में कहती है कि –

“जब से शादी करके इस घर में आयी हूँ तब से तुम लोगों की हर इच्छा का सम्मान किया है। शादी से पहले मेरा रहन-सहन  अलग था लेकिन यहाँ आकर मैंने घर के अनुरूप ढलने की बहुत कोशिश की। क्या कुछ नहीं सहा। तुम्हारा छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होना और ताने मारना। अरे क्या खराबी है रात को जल्दी खाना खाने और अच्छी नींद लेने में? क्या खराबी है बाहर का न खाकर घर का बना खाना खाने में? मैं तेल मसाला ज्यादा नहीं खाती लेकिन तुम लोगों को मसालेदार खाना ज्यादा पसंद है इसलिए मैंने अपना मन मारकर वही खाया जो तुम लोग खाते हो। इतने महीनों से मैंने तुमसे कितनी बार बात करने की कोशिश की लेकिन तुमने एक बार भी समय दिया मुझे। औरतों की बीमारी तो सिर्फ दिखावा होती है ना? अरे औरतों को बीमार करता कौन है? कभी सोचा है अपना व्यवहार, अपना रहन-सहन, रात को देर से आते हो, देर से खाते हो, चलो मान लिया कि तुम लोग बाहर दुकान संभालते हो तो क्या इसके लिए घर की औरतें मर जाए? ”

मोहना इस तरह अपने अंदर छः महीने का गुस्सा जो उसने दबा रखा था वह निकाल रही थी। प्रफुल उसकी बातें सुनकर गुस्से में उसे घर से निकल जाने की धमकी देता है तब मोहना कहती है –“अच्छी बात है। मैं ये घर छोड़कर जा रही हूँ। कम-से-कम मैं अपनी जिन्दगी तो जी पाऊँगी। ये रिश्ता तुमसे क्या निभेगा, तुम तो स्वार्थी हो। मैंने अपनी तरफ से रिश्ता निभाने की कोशिश की है। तुम अच्छी तरह से जानते हो कि मैं अपनी सेहत को लेकर कितनी सजग थी। तुम्हारे तानों तथा दुर्व्यवहार के कारण आज यहाँ तक बात पहुँची है। अब और नहीं सहूंगी।”इधर प्रफुल के माता-पिता अपने बेटे-बहू को झगड़ता देख उन्हें बहुत बुरा लगता है। प्रफुल की माँ को मोहना तथा डॉक्टर की बातों से थोड़ा बहुत अनुभूति होती है। वह तब अपने पति से बात करती है। वे भी बात की गंभीरता को समझते हैं। लेकिन उनके लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी था बहू का घर पर रुकना। भले ही बहू अच्छी हो या बुरी शादी के महज छः महीने में ही घर छोड़ दे तो मोहल्ले में उनकी बहुत बदनामी होगी। फिर वे आकर दोनों बेटे-बहू के बीच मध्यस्तता करते हैं तथा झगड़े को वही खत्म करने की सलाह देते हैं। मोहना को उसकी सास समझाती है कि परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति को कभी-कभी अपनी हार मान लेनी चाहिए। तब मोहना अपनी सास के सामने दृढ़ निर्णय सुना देती है कि वह सबकुछ सहन कर सकेगी लेकिन मानसिक प्रताड़ना तथा सेहत से खिलवाड़ करने का कोई मौका किसी को नहीं देगी। यदि उन्हें पोता चाहिए तो उसे उसके दैनंदिन जीवन शैली में सुधार करने का मौका दिया जाए। मोहना की सास न चाहते हुए भी मान जाती है। इधर प्रफुल को उसके पिता समझदारी से काम लेने की सलाह देकर झगड़े को खत्म करने के लिए कहते हैं।

डॉ मधुछन्दा चक्रवर्ती अतिथि व्याख्याता

सरकारी प्रथम दर्जा कॉलेज, के आर पुरा बैंगलोर

M: 8217797037

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