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संकट की घड़ी में कौन साथ देता है! मानवता के क्षेत्र में भारत का कोई सानी नहीं

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शिलचर, 23 जुलाई:ढाका के एक स्कूल में हाल ही में हुई वायुसेना के एफ-7 बीजीआई जेट हादसे में कई मासूम छात्रों की मौत हो गई और अनेक गंभीर रूप से घायल हुए। यह त्रासदी पूरे राष्ट्र के दिल को झकझोरने वाली है। ऐसे कठिन समय में यह साफ हो जाता है कि कौन सच्चा मित्र है और कौन केवल औपचारिकता निभाकर भाषण और प्रतीकात्मक सहानुभूति तक सीमित रहता है।

इस संदर्भ में भारत की भूमिका ने एक मिसाल कायम की है। भारत सरकार ने बिना विलंब किए बर्न (झुलसी हुई अवस्था) विशेषज्ञ डॉक्टरों और नर्सों की एक उच्च प्रशिक्षित मेडिकल टीम ढाका भेजी है। साथ ही आधुनिक पोर्टेबल बर्न यूनिट उपकरण और जरूरी चिकित्सकीय संसाधन भी भेजे गए हैं। यही नहीं, जिन बच्चों और नागरिकों की हालत अत्यंत गंभीर है, उन्हें सरकारी खर्चे पर कोलकाता या नई दिल्ली के प्रतिष्ठित अस्पतालों में लाने की व्यवस्था भी की गई है।

यह भारत की ओर से केवल कूटनीतिक सद्भावना नहीं, बल्कि मानवता की सबसे सच्ची और मार्मिक अभिव्यक्ति है। यह वही भारत है जिसने 1971 के मुक्ति संग्राम में भी बिना स्वार्थ के साथ दिया था — और आज भी संकट की घड़ी में वही मित्र भारत सबसे पहले खड़ा दिखा।

अब सवाल यह उठता है—वे लोग जो भारत को “आधिपत्यवादी” कहकर अपमान करते हैं, जो भारत के खिलाफ सस्ते लोकप्रियता के लिए नारे लगाते हैं और उसका झंडा तक जलाते हैं—क्या वे इस मानवता की मिसाल के बाद भी चुप रहेंगे या आत्ममंथन करेंगे?
क्या वे इस विपत्ति की घड़ी में कह सकेंगे—”हमें भारतीय डॉक्टर नहीं चाहिए”? नहीं, वे नहीं कह सकते, क्योंकि मानव संकट झूठे राजनीतिक प्रचार को बर्दाश्त नहीं करता।

भारत ने मदद की। लेकिन पाकिस्तान और चीन ने?
चीन के ढाका स्थित दूतावास ने केवल शोक-संदेश भेजा। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने “X” (पूर्व ट्विटर) पर एक औपचारिक बयान दिया। लेकिन न तो कोई डॉक्टर भेजे, न एक भी एम्बुलेंस। यहां तक कि रेड क्रॉस के माध्यम से कुछ दवाइयाँ तक नहीं भेजीं।

यह सब यह दिखाने के लिए काफी है कि सच्चा मित्र कौन है और कौन केवल औपचारिकता का अभिनय करता है।
भारत की सहायता कोई राजनीतिक सौदेबाज़ी नहीं, बल्कि एक संकटग्रस्त देश के लोगों के लिए नि:स्वार्थ करुणा है।

इस पृष्ठभूमि में अब समय आ गया है कि वे तत्व जो मुक्ति संग्राम के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर भारत विरोधी भावना फैलाते हैं—वे आत्मावलोकन करें। इतिहास और मानवता के सामने सिर झुकाना ही आज की आवश्यकता है।

इस भयावह विमान हादसे में भारत की तत्परता केवल अंतरराष्ट्रीय मित्रता का प्रतीक नहीं, बल्कि भाईचारे और आत्मीयता का एक अनुपम उदाहरण है।
आज जो भारत विरोधी राजनीति करते हैं, उनके लिए यह एक स्पष्ट संदेश है—
कम से कम इन जले हुए मासूम बच्चों की चीखें सुनकर तो समझो कि असली मित्र कौन है।
मित्र को अपमानित करने का नहीं, कृतज्ञता जताने का वक्त है।

सच यह है—इतिहास में कल्पित दुश्मन नहीं होते, सिर्फ सच्चे मित्र होते हैं।

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