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कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं पुरातनाध्ययन विश्वविद्यालय में ‘शास्त्रमन्थनम्’ नामक 108 व्याख्यानों की श्रृंखला का तेरहवाँ व्याख्यान सम्पन्न

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नलबाड़ी, 19 अगस्त: कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं पुरातनाध्ययन विश्वविद्यालय के सर्वदर्शन विभाग द्वारा निरंतर आयोजित ‘शास्त्रमन्थनम्’ नामक 108 व्याख्यानों की श्रृंखला का तेरहवाँ व्याख्यान आज भव्य रूप से सम्पन्न हुआ। यह कार्यक्रम केवल विभागीय स्तर तक ही सीमित न रहकर विश्वविद्यालय की गरिमा एवं वैभव को भी अभिव्यक्त करता हुआ विद्वत्सभा की प्रतिष्ठा में वृद्धि करने वाला सिद्ध हुआ।
इस व्याख्यान के मुख्य वक्ता थे– कृष्णकान्त संदिकै शासकीय संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य, प्रख्यात संस्कृतविद्वान्, मीमांसा शास्त्र के विशेषज्ञ आचार्य गोकुलेन्द्र नारायण देव गोस्वामी महोदय। उन्होंने “सर्वदर्शन का लोकोपकारकत्व” विषय पर अत्यंत गहनता, स्पष्टता और सरलता के साथ विचार प्रस्तुत किए। महोदय की अद्भुत वाणी एवं प्रभावपूर्ण शैली ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। दर्शनशास्त्र के महत्त्व को उन्होंने केवल तात्त्विक स्तर तक सीमित न रखकर सामाजिक कल्याण की दिशा तक विस्तृत किया, जिससे उपस्थित जनमानस में नवीन प्रेरणा एवं जागृति का संचार हुआ।
विभागाध्यक्ष डॉ. रणजीत कुमार तिवारी महोदय ने मुख्य वक्ता का हार्दिक स्वागत करते हुए उनके विभागीय गतिविधियों में विशेष सहयोग एवं सहभागिता की आशा व्यक्त की। विभाग की अध्यापिका सुश्री लोपामुद्रा गोस्वामी ने भी व्याख्यान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मुख्य अतिथि का अभिनंदन किया। अतिथि अध्यापिका सुश्री मयूरी बरकाकती भी इस अवसर पर सप्रेम उपस्थित रहीं। कार्यक्रम में शोधार्थियों, स्नातकोत्तर एवं स्नातक विद्यार्थियों ने श्रद्धापूर्वक भाग लिया।
कार्यक्रम का आरम्भ शोधछात्र श्री लिराज काफ्ले द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण से हुआ। व्याख्यान की समाप्ति पर धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया गया, जिसमें सभी अतिथियों, प्राध्यापकों और विद्यार्थियों को आदरपूर्वक स्मरण किया गया।
अंत में शान्ति मन्त्र के पाठ के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। इसके साथ ही उपस्थित जनों के हृदय में शास्त्र-जिज्ञासा, गहन अध्ययन और दार्शनिक चिन्तन की नई प्रेरणा जागृत हुई।
इस प्रकार कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत एवं पुरातनाध्ययन विश्वविद्यालय में ‘शास्त्रमन्थनम्’ व्याख्यानमाला ने एक नया अध्याय जोड़ते हुए शास्त्रचिन्तन और दार्शनिक विमर्श की परंपरा को और सुदृढ़ किया। विद्वानों, विद्यार्थियों एवं अध्यापकवर्ग द्वारा इस आयोजन की सराहना किया गया।

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