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मानवरत्न : भारतरत्न भुपेनदा
– उमेश खंडेलिया धेमाजी
डॉ. भूपेन हजारिका—एक ऐसा नाम, जो असम और भारत की सांस्कृतिक स्मृति में संगीत के महाकाव्य की तरह अंकित है। सुधाकंठ, असमरत्न और साहित्याचार्य की उपाधियों से विभूषित यह व्यक्तित्व केवल गायक ही नहीं, बल्कि कवि, गीतकार, फिल्मकार और समाज-चिंतक भी थे।
1926 में सदिया की धरती पर जन्मे भूपेन हजारिका बचपन से ही संगीत की अद्भुत प्रतिभा लेकर आए। माँ शांति हजारिका के लोकगीत और पिता नीलकांत हजारिका की सांस्कृतिक रुचि ने उनके भीतर कला का संस्कार बोया। ब्रह्मपुत्र की विशाल धारा और असम के ग्राम्य जीवन की सहजता ने उनके संगीत को जीवन की सच्चाई और लोकगंध दी।
गुवाहाटी, तेजपुर और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की शिक्षा के बाद कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएच.डी. तक की यात्रा ने उन्हें वैश्विक दृष्टि प्रदान की। कलकत्ता प्रवास ने उनके संगीत को नयी दिशा दी—यहाँ उन्होंने भारतीय जननाट्य संघ के प्रगतिशील आंदोलन से जुड़कर शोषित-वंचित समाज की पीड़ा को आत्मसात किया। साथ ही, रवीन्द्रनाथ टैगोर की काव्य-गंध और काज़ी नज़रुल इस्लाम की विद्रोही स्वर-लहरियाँ उनके गीतों में समाहित हुईं।
भूपेन हजारिका के गीत बहुभाषी और बहुरंगी थे। असमिया, हिंदी, बंगाली, उर्दू और अंग्रेज़ी में रचित उनकी रचनाएँ प्रकृति की छटा, जनजीवन की संवेदना, प्रेम, संघर्ष और सामाजिक चेतना का संगम थीं। उनकी धुनों में गंगा और ब्रह्मपुत्र की लहरों का संगीत गूंजता था, तो कहीं जन-जीवन के सपनों और संघर्षों की प्रतिध्वनि। यही विशेषता उन्हें सीमाओं से परे ले गई। 1968 में असम साहित्य सभा ने उन्हें औपचारिक रूप से “सुधाकंठ” की उपाधि दी।
भूपेन हजारिका ने गीतों के साथ-साथ सिनेमा को भी समृद्ध किया। असमिया फिल्मों शकुंतला, प्रजामति, चीक मिक बिजुली और चमेली मेमसाहब में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। हिंदी फिल्मों में भी उनकी पहचान रुदाली के गीतों से बनी, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता दिलाई। उनके गीत “दिल हूँ-हूँ करे,” “गंगा बहती हो क्यों,” “आज जीवन खुशी से भरा है” जैसे अमर उदाहरण हैं। असमिया में उनका “বিস্তীৰ্ণ পাৰৰে,” या “মানুহে মানুষৰ বাবে” आज भी सामाजिक चेतना का गान माना जाता है।
उनका रचना-संसार किसी जीवन-गाथा से कम नहीं। असम की मिट्टी से उपजा यह स्वर वैश्विक मंच तक पहुँचा और मानवता का संदेश बन गया। उनके गीत हमें यह सिखाते हैं कि कला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज और जीवन के सौंदर्य को गढ़ने का माध्यम है।
भूपेन हजारिका का नाम आज भी असम की सांस्कृतिक चेतना का पर्याय है। वे एक कलाकार भर नहीं, बल्कि एक युग-प्रवर्तक थे, जिन्होंने अपने स्वर से असम की आत्मा को विश्व के हृदय तक पहुँचा दिया।
उमेश खंडेलिया धेमाजी
9954756161
15/9/25





















