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क्यों की जाती है विजयादशमी पर शमी वृक्ष की पूजा ?

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क्यों की जाती है विजयादशमी पर शमी वृक्ष की पूजा ?हमारे देश में विजयादशमी के शुभ अवसर पर देवी पूजा एवं शस्त्र पूजा के के साथ ही साथ ‘शमी’ वृक्ष की पूजा की परम्परा भी कायम है। किंतु प्रश्न यह उठता है कि विजयादशमी पर खासतौर से शमी वृक्ष की पूजा क्यों की जाती है और वह भी दशहरा के दिन ही क्यों विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष की पूजा करने के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार जब राजा विराट के गायों को कौरवों से छुड़ाने के लिए  अर्जुन ने अपने अज्ञातवास के दौरान शमी वृक्ष की कोटर में छिपाकर रखे गये अपने गांडीव धनुष को फिर से धारण किया, तो पांडवों ने शमी वृक्ष की पूजा कर गांडीव धनुष की रक्षा हेतु शमी वृक्ष के प्रति आभार प्रदर्शित किया। तभी से विजयादशमी के दिन शस्त्रों के साथ-साथ शमी वृक्ष की पूजा की परम्परा भी कायम हो गयी।एक अन्य कथा के अनुसार राजा रघु के पास एक बार एक साधु दान प्राप्त करने हेतु आया, किंतु जब राजा रघु अपने खजाने में दान देने हेतु धन निकालने गये तो खजाना खाली था। फलत: राजा रघु क्रोधवश इन्द्र पर चढ़ाई करने को तैयार हो गये। इन्द्र ने राजा रघु के डर से शमी वृक्ष के पत्तों को सोने (स्वर्ण) का कर दिया। तभी से यह परम्परा कायम हो गयी कि क्षत्रिय विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष पर तीर चलाते हैं और उससे गिरे शमी के पत्तों को अपनी पगड़ी में धारण कर लेते हैं।मराठा पेशवा अपने शत्रु पर आक्रमण की शुरूआत विजयादशमी के दिन से ही करते थे और शस्त्र पूजा के साथ शमी वृक्ष की भी पूजा करते थे। अर्थात् मराठा इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा कर ‘सीलांगण’ के लिए दसवें दिन प्रस्थान करते थे। सीलांगण का अर्थ होता है ‘सीमोल्लंघन’। अर्थात् वे दूसरे राज्य की सीमा का उल्लंघन करते थे। इस प्रक्रिया में सर्व प्रथम नगर के पास स्थित छावनी में शमी वृक्ष की पूजा की जाती थी। उसके पश्चात पेशवा पूर्व निश्चित खेत में जाकर मक्का तोड़ते थे और तब वहां उपस्थित लोग मिलकर उस खेत को लूट लेते थे।राजपूतों में भी शमी वृक्ष की पूजा की जाती थी। राजपूत लोग ‘सीलांगण’ से ‘अहेरिया’ करते थे और इसकी सफलता के लिए साथ-साथ शमी वृक्ष की भी पूजा करते थे।वर्तमान समय में भी परम्परागत रूप में विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष एवं शस्रों की पूजा की जाती तथा सीलांगण एवं अहेरिया किया जाता है, किंतु यह किसी हमले के रूप में नहीं किया जाता है, बल्कि परम्परा का निर्वहन किया जाता है।हमारे सैनिकों द्वारा आज भी विजयादशमी के दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है।

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