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सत्याग्रही एक राजनीतिक महात्मा 

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गांधी जयन्ती पर विशेष आलेख 

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सत्याग्रही एक राजनीतिक महात्मा 

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आज मैं उस महान विभूति पर अपना मत प्रकट कर रहा हूँ, जो गुजरात की राजकोट रियासत के दीवान की धर्मपत्नी की कोख से जन्मा था, एक अनुमान से कहा जा सकता है कि अपने पिता के दीवान पद पर आसीन होने से जिसे ताउम्र न तो धन की कोई कमी रहती और न किसी सुख सुविधा की। इस बात की पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि जिस गुलामी काल में धनाभाव के कारण तत्कालीन छात्र अपने गाँव में भी शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते थे, उस समय उन्हें सात समुन्दर पार ब्रिटेन में कानून की शिक्षा दिलवाई गई। जो आजीवन सूट-बूट पहनकर ऐश्वर्य से रह सकता था, उसने जिन्दगी में कभी कपड़े न पहनने का संकल्प ले लिया। कोई विवशता न होते हुए सारे सुखों का इतना बड़ा त्याग साधारण मनुष्य के वश की बात नहीं है। इतना ही नहीं भारत को स्वतन्त्रता मिलने के बाद भी उन्हें किसी भी सर्वोच्च पद पर निर्विरोध विभूषित किया जा सकता था किन्तु किसी भी पद के प्रति आकर्षण न होना उनकी महान विभूति के विशेषण को और भी सार्थक करता है।

जिनकी शिक्षाओं को गान्धी दर्शन का नाम मिला जिसे हमारे देश में ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों में पढ़ाया जाता है। इतना ही नहीं उनके पथ पर चलने वाले किसी भी देश के जुझारू व्यक्तित्व को उस देश का गान्धी पुकारकर सम्मानित किया जाता है। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मण्डेला इसके प्रमाण रहे हैं। “सीमान्त गान्धी” या “सरहदी गान्धी” के नाम से खान अब्दुल गफ्फार खान को जाना जाता है, जो महात्मा गान्धी के अनुयायी थे। उनके समान विचारधारा के कारण उन्हें यह उपनाम दिया गया। वह ब्रिटिश भारत के उत्तर पश्चिम सीमान्त प्रान्त (अब पाकिस्तान में है) के पश्तून थे और उन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलकर एक अहिंसक प्रतिरोध आन्दोलन, ‘खुदाई खिदमतगार’, का नेतृत्व किया।

जिस मोहनदास को चम्पारण के एक किसान ने बापू कहा तो वह युग का प्यारा बापू हो गया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने जिन्हें राष्ट्रपिता कहा तो वह भारत का राष्ट्रपिता कहा जाने लगा। गुरुदेव कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोर ने महात्मा कहा तो वह राजनीतिक सन्त के रूप में महात्मा हो गया। विंटन चर्चिल ने जिसे अर्द्ध नग्न फकीर कहा तो “मजबूरी का नाम महात्मा गान्धी” एक लोकोक्त उक्ति बन गया।

हमें विचार करना होगा कुछ तो बात है, जिससे वे हमेशा के लिए अमर हो गए। वे आज भी कीर्तिकाय होकर जीवित हैं। मोहनदास गान्धी ने ऐसे काम किए हैं जिनके कारण भारत राष्ट्र उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाता है।

उनके जीवन को समझते हुए आगे बढ़ते हैं। महात्मा गान्धी का वास्तविक नाम मोहनदास करमचन्द गान्धी था।

गान्धी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के ख्यात बन्दरगाह पोरबन्दर शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचन्द गान्धी और माँ का नाम पुतलीबाई था। उनके पिता राजकोट रियासत के दीवान थे।

महज 13 साल की उम्र में गान्धी जी का विवाह कस्तूरबा से हुआ था। गान्धी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबन्दर और राजकोट में हुई। फिर 1888 में 19 साल की उम्र में गान्धी जी कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। वहाँ यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लन्दन से वकालत की डिग्री ली।

बैरिस्टर बनने के बाद उन्हें 1893 में एक कानूनी मामले के लिए साउथ अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ जब उन्हें नस्लभेदी टिप्पणियों और भेदभाव का सामना करना पड़ा, तो उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय को उनके रंग-रूप के कारण संघर्ष करता देख गान्धीजी ने उनकी लड़ाई लड़ने का फैसला किया। जिन्हें रंग भेद के कारण अपमानित कर ट्रेन से फेंक दिया गया। यही उनके जीवन का वह मोड़ था जिससे गान्धी जी की विचारधारा में सत्याग्रह का जन्म हुआ।

20 साल से अधिक समय तक दक्षिण अफ्रीका में रहने के बाद 1915 में गान्धीजी भारत लौटे। देश वापस आते ही गान्धी जी अपने देश की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। इसके लिए वह भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस से जुड़े और जल्द ही इसके प्रमुख नेता बन गए। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के कई राष्ट्रीय आन्दोलन उनके नेतृत्व में किए गए, जिनसे भारत में पदस्थ गोरों की सरकार ही नहीं अपितु समूची दुनिया प्रभावित रही। इनमें असहयोग आन्दोलन, स्वदेशी आन्दोलन, नमक कानून तोड़ने के लिए दाण्डी यात्रा, भारत छोड़ो आन्दोलन आदि प्रमुख थे।

महात्मा गान्धी ने अपने जीवन में सत्य, अहिंसा, आत्मनिर्भरता, सर्वधर्म समभाव, स्वच्छता, अस्पृश्यता, महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय जैसे सिद्धान्तों को पूरे जीवन में मन से अपनाया। इन सिद्धान्तों का गम्भीर प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ा और जिसे गान्धी दर्शन के नाम से जाना गया। उनके त्याग और सिद्धान्तों को जानकर पीढ़ियाँ की पीढ़ियाँ गान्धी जी की भक्त बनती गईं। उनके एक आह्वान पर समूचा देश खड़ा हो जाता था, दुष्ट अंँग्रेजी सरकार उनके कदमों में आ गिरती थी। सच तो यही है कि दूसरी सहस्राब्दी के 1000 सालों में विश्व में उन जैसा राजनीतिक समझ वाला गुणवान व्यक्तित्व पैदा ही नहीं हुआ। इसीलिए सन् 2000 में दुनिया द्वारा महात्मा गान्धी को सहस्राब्दी का महानायक माना गया। यह भारत के गौरवशाली इतिहास को और भी गौरवान्वित करता है।

4 जून 1944 को सिंगापुर में एक रेडियो मैसेज देते हुए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने महात्मा गांधी को देश का पिता (राष्ट्रपिता) कहकर संबोधित किया था। आगे चलकर भारत सरकार ने इस नाम को मान्यता दी।

भारत को आजादी दिलाने में जिन महान विभूतियों का नाम आता है उनमें स्वयं का बलिदान करने वाले लाखों उन अमर शहीदों का महत्त्व किसी से किसी भी तरह कम नहीं है। स्वयं के अस्तित्व के बलिदान देने से बड़ा दूसरा कोई बलिदान नहीं हो सकता। जिन माता-पिता ने अपनी सन्तानों को अपनी आँखों से फाँसी पर झूलते हुए देखा। जिन बहनों ने अपने भाई और पतियों को खोया। जिन वीरांगनाओं ने बलि पथ का चयन किया उसकी तुलना किसी भी अन्य त्याग से नहीं की जा सकती। यह परम सत्य है। इसीलिए यह भी सच है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति का श्रेय किसी एक व्यक्ति को देना भी उचित नहीं होगा, बात इकतरफा नहीं होनी चाहिए परोक्षापरोक्ष सभी के त्याग महत्त्वपूर्ण हैं।

यद्यपि अखण्ड भारत के बँटवारे का आरोप व शहीदे आज़म सरदार भगतसिंह की फाँसी टालने के लिए अँग्रेजी सत्ता से कुछ न कहने का आरोप उनके व्यक्तित्व को प्रभावित करते रहे हैं। सम्भवतः इन्हीं कारणों से आक्रोशित नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने आज़ादी मिलने के 5 महीने बाद ही 30 जनवरी 1948 को महात्मा गान्धी को दिल्ली में गोली मार दी।

गोडसे ने अदालत में दिए अपने बयान में कहा कि उसने महात्मा गान्धी को इसलिए मारा क्योंकि गान्धीजी की नीतियों ने भारत का विभाजन करवाया और लाखों हिन्दुओं का जीवन बर्बाद किया। गोडसे ने गान्धीजी पर मुस्लिम तुष्टिकरण और देश के बँटवारे में भूमिका निभाने का आरोप लगाया। उसने कहा कि वह गान्धीजी की देश सेवा का सम्मान करता है, लेकिन उन्हें यह अधिकार नहीं था कि वे मातृभूमि को तोड़ें। इतना सब कुछ होते हुए भी स्वतन्त्रता प्राप्ति में महात्मा गान्धी जी के योगदान को कमतर नहीं आंँका जा सकता।

गान्धी जी की मृत्यु की शोक सूचना सिर्फ भारत को ही नहीं अपितु पूरे विश्व को शोक में डालने वाली थी। एक ऐसा राजनीतिक सन्त महात्मा जिस पर हर भारतीय गर्व करता है, जिसने विश्व की राजनीति को दिशा दी, आज हमारे बीच में नहीं होते हुए भी है। आओ हम सब उनके सिद्धान्तों पर चल कर उनकी आत्मा को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करें।

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण” इन्दौर

9424044284/6265196070

(इस आलेख के लेखक हिन्दी के वरिष्ठ कवि व साहित्यकार हैं।)

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